जैन संस्कार विधि की मूल आत्मा सादगी, संयम है : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री महाश्रमण
आचार्यश्री महाश्रमण

जैन संस्कारक के राष्ट्रीय सम्मेलन के संभागियों को आचार्यश्री ने प्रदान की पावन प्रेरणा

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टमाचार्य कालूगणी की जन्मधरा छापर में वर्ष 2022 का चतुर्मास कर रहे तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान में श्रद्धालुओं को भगवती सूत्र आगम के माध्यम से मंगल पाथेय प्रदान कर रहे हैं। बुधवार को समवसरण में उपस्थित श्रद्धालुओं को आचार्यश्री के मंगल पाथेेय से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित श्रद्धालुओं पर अपनी अमृतमयी वाणी से मंगल अभिसिंचन प्रदान करते हुए कहा कि भगवती सूत्र में प्रश्न किया गया कि छदमस्थ आदमी हंसता है क्या और उसमें उत्सुकता भी पैदा होती है क्या? उत्तर प्रदान किया गया कि हां, वह हंसता है और उत्सुक भी होता है। प्रतिप्रश्न किया गया कि जिस तरह छदमस्थ प्राणी हंसता है और उत्सुक होता है, उसी प्रकार केवलज्ञानी भी हंसते और उत्सुक होते हैं क्या?

आचार्यश्री महाश्रमण
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उत्तर दिया गया कि नहीं, केवली हंसता नहीं और उत्सुक भी नहीं होता। हंसना भी साधना का बाधक तत्त्व होता है। उत्सुकता यदि अवांछनीय रूप में होती है तो वह भी वीतरागता की साधना में बाधक तत्त्व है। छदमस्थ अवस्था तो बारहवें गुणस्थान तक होता है, किन्तु छठे गुणस्थान से आगे बढ़ा हुआ मनुष्य इस प्रकार नहीं हंसता। हालांकि हंसना तो पूर्णतया बंद न हो, किन्तु सामान्य और सभ्य समाज के व्यक्ति को कब हंसना और कैसे हंसना इस बात पर ध्यान दे सकता है। कोई यदि चलते-चलते गिर जाए तो तुच्छ आदमी हंसता है और जो सज्जन लोग होते हैं, उसे संभालते हैं। हास्य के चार प्रकार बताए गए हैं- कि ध्यानी पुरुष हृदय में हंसता है, मुनि मुस्कुराहट के रूप में, पंडित की हंसी आंखों में होती है और गंवार, निर्लज्ज आदमी जोर-जोर से हंसता है। आदमी को कभी भी अवांछनीय रूप में नहीं हंसना चाहिए। इसी प्रकार आदमी को अवांछनीय उत्सुकता से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री महाश्रमण
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आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त वरिष्ठ श्रावक श्री कन्हैयालाल जैन पटावरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के तत्त्वावधान में आयोजित दो दिवसीय जैन संस्कारक राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह का भी क्रम रहा। इस संदर्भ में अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री पंकज डागा व जैन संस्कारक उपक्रम के राष्ट्रीय संयोजक श्री राकेश जैन ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। जैन संस्कारकों ने समूह स्वर में गीत का संगान किया।

आचार्यश्री ने समुपस्थित जैन संस्कारकों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि जैन संस्कारक सम्मेलन हो रहा है। जैन संस्कार विधि की मूल आत्मा सादगी, संयम तथा इसका आभूषण नवकार महामंत्र लोगस्स आदि पाठ हैं। जैन संस्कार विधि के कार्यक्रमों में संयम रहे, सादगी रहे। अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद अनेक धार्मिक गतिविधियों का संचालन करती रहे। धार्मिक-आध्यात्मिक क्रम चलता रहे। श्री अनिलकुमार भूरा ने आचार्यश्री से 22 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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