त्याग, संयम और तपस्या द्वारा सुगति प्राप्ति का हो प्रयास : महातपस्वी महाश्रमण

महातपस्वी महाश्रमण
महातपस्वी महाश्रमण

विशेष प्रतिनिधि, छापर (चूरू)
एक बार भगवान महावीर के समक्ष दूसरे देवलोक के इन्द्र पहुंचे। उनके जाने के बाद गौतम स्वामी को जिज्ञासा हुई कि ऐसा क्या कर्म किया होगा अथवा क्या किया होगा। भगवान महावीर ने इस संदर्भ में जानकारी देते हुए कहा कि पिछले जन्म में भारतवर्ष में ताम्रलिप्ति नाम की नगरी थी। उस नगरी में एक तामली नाम का गृहस्वामी रहता था। वह बड़ा समृद्ध, तेजस्वी व अपरिभूत था। एक रात उसके मन में विचार आया कि वर्तमान में जो मुझे वैभव प्राप्त हुआ है, वह मेरे पूर्वकृत पुण्य के कर्म हैं, उनसे मुझे यह वैभव प्राप्त हो रहा है, जिसके कारण मेरा वह पुण्यकर्म क्षीण कर रहा हूं। ऐसा विचार आते ही उसने अपने बड़े बेटे को परिवार का मुखिया बनाया और साधक बन गया। उसने संकल्प किया कि अब मैं जीवन भर बेले-बेले की तपस्या करूंगा और पारणा अत्यंत संयम करते हुए केवल चावल 21 बार धोकर खाऊंगा। दोनों भुजाएं ऊपर कर सूर्य से आतापना लूंगा। ऐसा तप करते हुए एक दिन वह अनशन ग्रहण कर लेता है।

महातपस्वी महाश्रमण
महातपस्वी महाश्रमण

अनशन सम्पन्न होने पर वह मरकर दूसरे देवलोक का इन्द्र बनता है। तामली तापस ने प्राणामा प्रर्वÓया स्वीकार की। यह संन्यास की एक विधा है। इसमें जो भी मिले जीव हो, पशु हो, पक्षी हो सभी को प्राणाम करते रहो। मैंने इस पर चिंतन किया तो मुझे लगा कि इसमें अहंकार के परित्याग की मूल बात है। तामली ने हजारों वर्षों तक प्राणामा प्रर्वÓया से अहंकार को नष्ट कर दिया। इससे यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि आदमी जो वर्तमान में सुख-वैभव भोग रहा है, वह तो पहले की पुण्याई है, किन्तु आगे क्या होगा, इसके लिए आदमी क्या कर रहा है। आदमी का यह चिन्तन आगे के लिए कुछ करने का दिशा-निर्देश दे सकता है। आदमी को चिंतन करते हुए आगे की तैयारी करने का प्रयास करना चाहिए। पुण्य तो फिर भी छोटी बात हो सकती है, आदमी आत्मा और मोक्ष प्राप्ति के लिए क्या करता है।

आदमी को आगे के बारे में सोचने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए आदमी तपस्या ही नहीं, स्वाध्याय, सेवा आदि के माध्यम से साधना कर आगे की गति को अ’छा बनाने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगलवार को आचार्य कालू महाश्रमण समवसरण में उपस्थित जनता को प्रदान किए। आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के उपरान्त कालूगणी की जन्मधरा पर आरम्भ की गई ‘कालूयशोविलासÓ के आख्यान क्रम को भी आगे बढ़ाया।

इस दौरान आचार्यश्री ने कालूगणी अभिवन्दना सप्ताह के दिनांक की घोषणा करते हुए कहा कि 17 अक्टूबर से 2& अक्टूबर 2022 तक मनाया जाएगा। कार्तिक कृष्णा सप्तमी से कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी तक यह ‘कालूगणी अभिवन्दना सप्ताहÓ का आयोजन होगा। उसके अलग-अलग ‘की नोट स्पीकरÓ बनाए जाएंगे। उपासक श्री धनराज मालू ने गीत का संगान किया। श्री विनोद नौलखा ने आचार्यश्री से 28 की तपस्या का प्रत्याख्यान किया।

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