प्रयागराज का ऐतिहासिक दशहरा मेला, दुर्गापूजा और दधिकांदो स्थगित किया गया

कोरोना वायरस ने पूरे देश को परेशान कर रखा है। ऐसे में इस महामारी का प्रतिकूल प्रभाव उत्सवों पर भी पड़ रहा है। प्रयागराज का ऐतिहासिक दशहरा मेला, दुर्गापूजा और दधिकांदो पर भी इस बार संकट के बादल मंडराए हैं। यह तीनों प्रसिद्ध आयोजनों को स्थगित कर दिया गया है। इससे हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। उनके परिवार के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाएगा। साल भर में ऐसे लोग इन्हीं त्योहारों पर रोजगार पाते हैं लेकिन दूसरा कोई रोजगार न होने के कारण यह सब हताश और निराश हैं।

रोड लाइट, मंच सज्जा, पंडाल का बड़े पैमाने पर काम होता रहा है

दधिकांदो, दुर्गापूजा और दशहरा मेले में रोड लाइट, मंच सज्जा, पंडाल का बड़े पैमाने पर काम होता रहा है। इसके अलावा झूला, खिलौना, खाने-पीने की दुकानें भी बड़ी संख्या में लगाई जाती थीं। यह आयोजन अगस्त से शुरू होकर दीवाली तक चलते थे। मोहत्सिमगंज के रहने वाले शहबान, अमान, आमिर, बिल्ला, अहमद और शाहगंज के आरिफ मेले में झूला लगाने का काम करते हैं। 100 से अधिक लोगों को अपने यहां रोजगार भी देते थे। इसी कमाई से साल भर का उनका खर्च चलता है। लेकिन कोरोना में उनके पास कोई काम नहीं।

सैकड़ों साल की परंपरा टूटी

सुलेमसराय, चांदपुर सलोरी, रसूलाबाद, तेलियरगंज, राजापुर, कीडगंज, बैरहना में दधिकांदो का आयोजन होता था। पितृ पक्ष समाप्त होने के बाद दुर्गापूजा और दशहरा का आयोजन किया जाता था। हलांकि इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से सैकड़ों साल से चली आ रही परंपरा टूट गई है।

मेले में होता था करोड़ों का व्यवसाय

प्रत्येक दाधिकांदो मेले में अनुमान के तौर पर करोड़ों का व्यवसाय हो जाता था। जबकि दुर्गापूजा और दशहरा मेले में यह तीन से चार गुना हो जाता था। इन पर्वों पर तरह-तरह की खाने-पीने, खेल-खिलौने आदि की दुकानें लगती थी।

1890 से शुरू हुआ था दधिकांदो

1890 में जब रसूलाबाद से दधिकांदो मेला शुरू हुआ तो तब बिजली नहीं थी। लोग रोशनी के लिए मशाल का उपयोग करते थे। इस मेले में भगवान की झांकियां निकलती थीं। मेले के कारण लोगों में तेजी से देशभक्ति की भावना पैदा हुई और अंग्रेजों के खिलाफ धीरे-धीरे विरोध शुरू हुआ।