
इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट की द्वितीय वार्षिक कांफ्रेंस का निम्स विश्वविद्यालय में सफल समापन
जयपुर। निम्स यूनिवर्सिटी राजस्थान के माइक्रोबायोलॉजी विभाग द्वारा ‘राजमाइक्रोकॉन 2023’, इंडियन एसोसिएशन ऑफ मेडिकल बायोलॉजिस्ट का दो दिवसीय वार्षिक सम्मेलन का समापन मुख्य अतिथि डॉ. वी.एम. कटोच और विशिष्ट अतिथि डॉ. सोनल सक्सेना व प्रो. (डॉ.) बी.एस. तोमर- चांसलर व अध्यक्ष, निम्स यूनिवर्सिटी, की अध्यक्षता में निम्स विश्वविद्यालय के राजेश्वरी ऑडिटोरियम में किया गया ।
कार्यक्रम की शुरुआत एक दिन पहले डॉ. सुमी नंदवानी के नेतृत्व में स्वास्थ्य सेवा में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस पर एक छात्र संगोष्ठी से हुई। विशेष रूप से, सम्मेलन ने उभरते संक्रमणों पर चर्चा की गयी, जिसमें कोविड-19 की जीनोमिक निगरानी, गैर-ट्यूबरकुलर माइकोबैक्टीरिया, एक्स.डी.आर ट्यूबरकुलोसिस, इमर्जोमाइकोसिस, फंगल इन्फेक्शन और परजीवी संक्रमण जैसे विषय शामिल रहे । फेज थेरेपी के महत्व और रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एएमआर) से निपटने पर एक प्री-कॉन्फ्रेंस वर्कशॉप में डॉ. एन. रमेश और डॉ. निशा राठौड़ के नेतृत्व में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के 35 छात्रों को प्रशिक्षित किया गया। ए.एम.आर को एक महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती के रूप में मान्यता दी गई थी, जिसमें नए एंटीबायोटिक्स विकसित करने की कठिनाई के कारण वैकल्पिक दृष्टिकोण की आवश्यकता थी।
कार्यशाला चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए बैक्टीरियोफेज को अलग करने पर केंद्रित थी, जो एंटीबायोटिक्स के विफल होने पर आशा प्रदान करती थी। विशेषज्ञों ने बैक्टीरियोफेज के बारे में जागरूकता की तत्काल आवश्यकता और ए.एम.आर को संबोधित करने में उनकी संभावित भूमिका पर प्रकाश डाला। कार्यशाला के समन्वयक डॉ. रमा चौधरी और डॉ. शमा तोमर ने बहु-दवा-प्रतिरोधी संक्रमण वाले रोगियों के लिए फेज थेरेपी को सुलभ बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग के महत्व पर जोर दिया।
प्रतिभागियों ने यौन संचारित संक्रमणों और तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के लिए सिंड्रोमिक दृष्टिकोण पर चर्चा की , सेप्सिस रोगियों की पहचान और उपचार में बायोमार्कर के महत्व पर भी जोर दिया । पैनल चर्चाओं में बीमारी के प्रकोप की जांच और अस्पताल में संक्रमण नियंत्रण के महत्वपूर्ण पहलू पर चर्चा, इसके अतिरिक्त अस्पतालों में एंटीमाइक्रोबिअल मैनेजमेंट कार्यक्रमों (ए.एम.एस.पी) की स्थिति का पता लगाया गया।
राजमाइक्रोकॉन 2023 सिर्फ एक सम्मेलन ही नहीं बल्कि सहयोग, नवाचार और विचारों के आदान-प्रदान का एक मंच भी है। यह सम्मेलन माइक्रोबियल दुनिया पर विजय पाने और स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के सामने अजेय बनने की हमारी खोज में आशा की किरण के रूप में कार्य करने में सक्षम होगा।
प्रो. (डॉ.) बलवीर एस. तोमर – चेयरमैन निम्स यूनिवर्सिटी एवं कांफ्रेंस अध्यक्ष ने; निम्स परिसर में उपस्थित मुख्य अतिथियों का स्वागत व राजस्थान से आए प्रसिद्ध माइक्रोबायोलोजिस्ट के प्रति उत्साह प्रकट किया। उन्होंने मायकोलोजी: उभरते फंगल इन्फेक्शन और जलवायु परिवर्तन पर अपने विचार रखते हुए कहा की, “सूक्ष्मजीव विविध होते हैं और लगभग हर स्थिति के अनुकूल होते हैं। मानव जाति के लिए, सूक्ष्म जीव विज्ञान की जानकारी अति-महत्वपूर्ण है। डॉ. तोमर ने आम जनता के लिए औसत सूक्ष्म जीव विज्ञान की समझ पर प्रकाश डाला ताकि यह उन्हें सार्वजनिक निर्णय लेने में बाधा न बने, और गंभीर स्थितियों में सरकार में नीति निर्माताओं के साथ हस्तक्षेप न करे।
कांफ्रेंस के मुख्य अतिथि डॉ. वी.एम. कटोच- पूर्व डायरेक्टर जनरल, आई. सी. एम. आर ने अपने संबोधन में कहा की, “प्रभावी प्रबंधन के साथ स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने, एजेंसियों, क्षेत्रों और सरकार के सभी स्तरों पर सहयोग बढ़ाने और नियामक तंत्र के कार्यान्वयन के माध्यम से ही भारत में माइकोलॉजिकल बीमारियों की चुनौती से निपटा जा सकता है।” डॉ. वीएम कटोच ने 2003 और 2022 के बीच नए क्षेत्रों में मनुष्यों में नए पहचाने गए उभरते संक्रमणों और बीमारियों के उल्लेखनीय प्रकोप की समय-सीमा पर प्रकाश डाला। एक रिसर्च के मुताबिक- “एक दशक भी ऐसा नहीं बीतता, जिसमे एक नयी गंभीर बीमारी का खतरा हमारे सामने ना हो।
कार्यशाला समन्वयक व डिपार्टमेंट ऑफ़ माइक्रोबायोलॉजी की डीन डॉ. रमा चौधरी ने मल्टी –ड्रग रेसिस्टेंट इन्फेक्शन्स का सामना कर रहे रोगियों के लिए फेज थेरेपी को सुलभ बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
राजस्थान मिक्रोकोन २०२३ कांफ्रेंस की थीम माइक्रोब :
इनविजिबल से इन्विन्सिबिल रखी गयी। इस दो दिवसीय कांफ्रेंस में प्री-कॉन्फ्रेंस कार्यशालाएं भी आयोजित की गयी, जिसमें प्रैक्टिकल लर्निंग पैटर्न व राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों की एक विशिष्ट श्रृंखला पर चर्चाएँ आयोजित की गयी। राज माइक्रोकॉन सम्मेलन स्टूडेंट सिम्पोजियम व वाद-विवाद प्रतियोगिता के साथ शुरू किया गया, सेशन का पहला सिम्पोजियम – स्वास्थ्य देखभाल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का महत्व पर आधारित था, प्री-कॉन्फ्रेंस वर्कशॉप में डॉ. एन. रमेश और डॉ. निशा राठौड़ के नेतृत्व में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के 40 छात्रों को प्रशिक्षित किया।
संक्रमणों का मनुष्यों, जानवरों और पर्यावरण से युक्त जटिल विश्व स्तर पर वितरित पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर गतिशील संतुलन और असंतुलन को दर्शाता है। उभरती/पुनः उभरती संक्रामक बीमारियों को सफलतापूर्वक नियंत्रित करने के लिए, सबसे अच्छी रणनीति है की उसके आसार समझना और प्रारंभिक चरण में उनके प्रसार को रोकना है।
डॉ. रमा चौधरी ने आगे बताया की आज का विषय बहुचर्चित होने के साथ साथ एक चिंता का विषय भी है और क्यूंकि हम ग्लोबल वार्मिंग और इससे बढ़ते फंगल इन्फेक्शन पर हम बात कर रहे हैं, तो मैं आपसे कहां चाहता हूँ की, “ग्लोबल वार्मिंग के कारण फंगल इन्फेक्शन का खतरा 90 प्रतिशत तक बाद जाता है और जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न तरह के इन्फेक्शन होने की पूरी संभावना है” और ये पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है, क्योंकि पारिस्थितिकी तंत्र के सभी पहलुओं में फंगस की कुछ प्रजातियां हमेशा मौजूद रहती हैं।
हमारी बदलती जलवायु में फंगल संक्रमण के प्रभाव को समझने और कम करने में हमने जो प्रगति की है, उसका सार्वजनिक स्वास्थ्य और कल्याण पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है।
अब समय आ गया है कि हमें किसी भी जोखिम भरे व्यवहार के बारे में जागरूक होना चाहिए जो हमें खतरनाक फंगस के संपर्क में लाता है और इसका पता लगाने के साथ-साथ बचाव और चिकित्सा सलाह लेनी चाहिए।
डॉ. सुमी नंदवानी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग, पी.जी.आई.सी.एच नोएडा ने सिम्पोजियम के विषय पर अपने विचार रखते हुए कहा की स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने और प्रबंधित करने के तरीके में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस महतवपूर्ण क्रांतिकारी बदलाव ला रहा है, ए.आई स्वास्थ्य देखभाल एक्सपर्ट्स को डेटा-संचालित निर्णय लेने में मदद करता है, जिससे बेहतर संसाधन का इस्तेमाल, बेहतर रोगी अनुभव और समय पर जीवन बचाने की क्षमता प्राप्त होती है। उन्होंने साथ ही ए.आई सुझाव व चुनोतियों पर भी चिंतन पर जोर दिया।
कांफ्रेंस में पैनल डिस्कशन के विषयों में: कोविड -19 प्रकोप की जांच, बढ़ते वायरल संक्रमण, राजस्थान के विभिन्न अस्पतालों में ए.एम.एस.पी की ट्यूबरकुलोसिस तीव्र एन्सेफलाइटिस के लिए नया और पुराना, यौन संचारित संक्रमणों के लिए सिंड्रोमिक दृष्टिकोण, रोगाणुरोधी प्रतिरोध का बढ़ता भार – क्या प्रोबायोटिक्स समाधान का हिस्सा हो सकता है? इंफ्लेमेटरी में फीकल माइक्रोबायोटा ट्रांसप्लांट थेरेपी रोग, रोगी से वकील तक: भारत में फेज थेरेपी का विकास, एंटीबायोटिक प्रतिरोध और बैक्टीरियोफेज थेरेपी में हालिया रुझान आदि शामिल रहे।
कांफ्रेंस में राजस्थान के विभिन्न संस्थानों से 50 ओरल प्रेजेंटेशन व 50 पोस्टर मेकिंग प्रतियोगी शामिल रहे। ओरल प्रेजेंटेशन में डॉ. आयुषी को पहला स्थान, डॉ. प्रियम बत्रा को दूसरा व डॉ. सौम्या निगम को तीसरा स्थान मिला वही पोस्टर कम्पटीशन में पहले स्थान पर मैत्रयी नारायण, दुसरे स्थान पर डॉ. हर्षिता पाण्डेय व अयेक्पम हिनेवा, मुस्कान भारद्वाज दोनों तीसरे स्थान पर रहे।
विशेषज्ञों ने बैक्टीरियोफेज के बारे में जागरूकता की तत्काल आवश्यकता और ए.एम.आर को संबोधित करने में उनकी संभावित भूमिका पर प्रकाश डाला। कार्यशाला समन्वयक व डिपार्टमेंट ऑफ़ माइक्रोबायोलॉजी की डीन डॉ. रमा चौधरी ने मल्टी –ड्रग रेसिस्टेंट इन्फेक्शन्स का सामना कर रहे रोगियों के लिए फेज थेरेपी को सुलभ बनाने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों के साथ सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।
सम्मलेन का समापन सांस्कृतिक कार्यकर्मों के साथ किया गया। इस कांफ्रेंस में आयोजक समिति व मॉडरेटर के रूप में डिपार्टमेंट ऑफ़ माइक्रोबायोलोजी, निम्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल एंड रिसर्च से डॉ. आर.के. माहेश्वरी- IAMM- राजस्थान चैप्टर कार्यकारी व आयोजन सह-अध्यक्ष, डॉ शिव प्रसाद रेड्डी -कोषाध्यक्ष, साइंटिफिक कमिटी व आयोजक कमिटी से डॉ. विभोर टाक, डॉ. संजना सुमानी, डॉ भारती मल्होत्रा, डॉ. आर.के. माहेश्वरी, डॉ. योगेश कुमार गुप्ता डॉ. श्रुति शर्मा, डॉ. बबीता, डॉ. अंकित प्रधान, डॉ. ग्रेस, डॉ. योगेश श्रीवास्तव, डॉ. किशोरी, शामिल रहे।
राजमाइक्रोकॉन 2023′ यह सम्मेलन माइक्रोबियल दुनिया पर विजय पाने और स्वास्थ्य देखभाल चुनौतियों के सामने अजेय बनने की हमारी खोज में आशा की किरण के रूप में कार्य करने में सक्षम होगा।