4750..अकल सरीरां मांय

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अकल सरीरां मांप, तिलां तेल घ्रित दूध में।
पण है पड़दै मांप, चौड़े काढो चतरसी।।
जिस प्रकार तिलों में तेल और दूध में घी समाया रहता है, उसी प्रकार शरीर में अक्ल समाई रहती है। लेकिन वह पर्दे में होती है, दिखती नहीं है। इसलिए उसको बाहर निकालकर उपयोग लेना चाहिए।
एक सेठ बड़ा कंजूस था। उसने अपने जीवन में कभी दान-पुण्य नहीं किया। अलबत्ता एक बार उसने अपनी सेठानी के हठ पकडऩे पर एक ब्राहृाण को एक गाय दान में जरूर दी। लेकिन उसने ऐसी गाय दान में दी जो मरने वाली थी। वह सवा पहर जीने के बाद मर गई। ऐसा कंजूस सेठ आखिर एक दिन मर ही गया। मरने के बाद उसे धर्मराज के सामने पेश किया गया। धर्मराज ने चित्रगुप्त से कहा कि खाता बही देखकर इसके पुण्यों के बारे में बताओ।

 

तब चित्रगुप्त ने खाता-बही देखकर धर्मराज से कहा किय बहुत ही कंजूस था। इसने अपने जीवन में कोई पुण्य नहीं किया, सिर्फ एक मरणासन्न गाय एक ब्राहृाण को दान दी थी, जो सवा पहर जीने के बाद मर गई थी। तब धर्मराज ने कहा कि उस गाय को यहां हाजिर किया जाए। तुरंत ही वह गाय वहां हाजिर कर दी गई। तब धर्मराज ने सेठ कहा कि सवा पहर तक तुम इस गाय से जो चाहो काम ले सकते हो, इसके बाद तुम्हें नरक भेज दिया जाएगा। सेठ कंजूस तो था ही, लेकिन साथ ही बड़ा चालाक भी था। उसने उस गास से कहा कि गऊ माता, तुम इस धर्मराज को अपने सींगों से उठाओ और पटको, उठाओ और पटको। इस तरह सवा प्रहर तक बिना रूके करती रहो। सेठ का कहा सुनते ही गाय धर्मराज की ओर लपकी तो भय के मारे धर्मराज वहां से भाग खड़े हुए। आगे आगे धर्मराज, पीछे पीछे गाय और उन दोनों के पीछे सेठ भागा। भागते-भागते धर्मराज भगवान विष्णु के पास पहुंचे।

 

बाकी दोनों भी वहां पहुंच गए। विष्णु भगवान को यह देख बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने धर्मराज से पूछा कि आज यह क्या बात है? तब धर्मराज ने हांकते-हांकते संक्षेप में सारी बात कह दी। तब तक सवा पहर बीत चुका था। इसलिए भगवान विष्णु ने कहा कि अब सवा पहर बीत चुका है, इसलिए यह गाय कुछ नहीं करेगी। फिर सेठ की ओर उन्मुख होकर कहा कि सेठ तुम्हारा पुण्य समाप्त हो गया है, अब तुम नरक को प्रस्थान करो। विष्णु भगवान की बात सुनकर सेठ ने हाथ जोड़कर कहा कि प्रभो, धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि आपके दर्शन से तो जन्म जन्मान्तर के पाप कट जाते हैं। तो क्या मेरे पाप नहीं कट गए? अब भला मंै किसलिए नरक जाऊंगा? भगवान विष्णु सेठ की बात सुनकर मुस्कराए। उन्होने धर्मराज से कहा कि धर्मराजजी, सेठ को स्वर्ग भिजवाइए, इसको मेरे दर्शन आपने ही करवाए है।