8745. मत कोई करो विसास

कामण नै केकाण रो, मत कोई करो विसास।
जे चढवै नित चालवै, ते ताही का दास।।
‘स्त्री और घोड़े का कभी कोई विश्वास न करे। कारण, इनके साथ रहते हुए मनुष्य इनका दास हो जाता है और इनके अनुकूल चलने लगता है। एक राजा की रानी बड़ी पुण्यवती थी। वह राज उद्यान में कबूतरों के लिए नित्य दाना डाला करती थी। कबूतर वहां निर्भर होकर रहा करते थे। किसी कारण राजा ने रानी को त्याग दिया और नई रानी ब्याह लाया। नई रानी उद्यान में गई तो उसने वहां कबूतरों को देखा।

 

उसे कबूतरों का वहां रहना बड़ा बुरा लगा। उसने उद्यान से लौटकर राजा से कहा कि उद्यान में इतने सारे कबूतर है, उद्यान की शोभा बिगाड़ रहे है और अशांति पैदा कर रहे हैं, इन सभी को मरवा देना चाहिए। राजा ने उसकी बात टाल दी। लेकिन रानी बार-बार कहने लगी और हठ करने लगी। उसके हठ के कारण आखिर राजा की एक न चली। राजा उन कबूतरों को मरवाना नहीं चाहता था, इसलिए राजा उद्यान में कबूतरों के पास गया। उसने कबूतरों से कहा कि देखो, तुम सबको नई रानी मरवाना चाहती है, इसलिए अच्छा यही है कि तुम सब पहले ही यहां से चले जाओ। उस समय कबूतरों का राजा वहां नहीं था, थोड़ी देर में वह भी आ गया। जब वह आया तो राजा ने उससे पूछा कि तुम कहां गए थे? मैं तो यह कहने आया था कि अब तुम सबका यहां रहना ठीक नहीं है, क्योंकि नई रानी नहीं चाहती कि उद्यान में एक भी कबूतर हो।

 

वह तुम सबको मरवाना चहाती है, इसलिए तुम सब यह उद्यान छोड़कर चले जाओ। कबूतरों के सरदार ने कहा कि मैं तो एक मामले में फैसला करने गया हुआ था, अच्छा हुआ समय पर लौट आया और आपसे मिलना हो गया। राजा ने पूछा कि ऐसा क्या मामला था कि तुम्हें फैसला करने जाना पड़ा? कबूतरों का सरदार बोला कि दो कबूतरों में विवाद हो गया था। एक कहता था कि संसार में पुरूष ज्यादा है और दूसरा कहता था कि संसार में स्त्रियां ज्यादा है। तब राजा ने जिज्ञासा से पूछा कि तुमने क्या फैसला दिया? सरदार ने उत्तर दिया कि राजन्, दूसरे कबूतर की ही बात ठीक थी, क्योंकि संसार में स्त्रियों की संख्या ही अधिक है।

 

राजा ने फिर पूछा कि इसका प्रमाण क्या है? कबूतरों के सरदार ने कहा कि जो पुरूष उचित-अनुचित का खयाल किये बिना ही स्त्री की बात मान लेता है, उस पुरूष की गिनती भी स्त्रियों में ही होती है। कबूतरों के सरदार की बात राजा को लग गई। उसने कबूतरों से कहा कि अब तुम अभय होकर यहां रहो, तुम्हारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ेगा। और राजा महल में जाकर रानी से दो टूक शब्दों में बोला कि कबूतर नहीं मरवाये जाएंगे, हां तुम्हें जरूर मैं छोड़ सकता हूं। यह सुनते ही रानी की बोलती बंद हो गई।