8748. जात सभाव न जाय

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भावै कितरा हो बडा, व्हो ऊंचो पद पाय।
प्रकृति कदै बदलै नहीं, जात सभाव न जाय।।
”भल ही कोई ऊंचा पद पाकर कितना ही बड़ा क्यों न हो जाए, स्वभाव कभी बदलता नहीं है। जन्मजात स्वभाव जस का तस कायम रहता है। प्राचीन काल में प्रतिष्ठित पुर नगर राजा जितंशत्रु राज्य करता था। उसके राज्य में शोभन नाम का एक नगर सेठ था जो अत्यधिक बुद्धिमान था। राजा उसका बड़ा सम्मान करता था। राजा की एक चामरधारिणी वेश्या थी, जिसका नाम काममंजरी था। एक दिन प्रसंगवश उस काम मंजरी वेश्या ने कहा कि शिक्षा देने पर नीच प्राणी भी अपनी नीच प्रकृति छोड़कर सज्जन स्वभाव के हो जाते हैं।

 

नगर सेठ शोभन उसकी बात से सहमत नहीं था, इसलिए उसने कहा कि कितना भी अभ्यस्त क्यों न करो, नीच अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है। कुत्ते की पूंछ वर्षों नली में रखनी पर भी कभी सीधी नहीं होती। दोनों में ही विवाद होने लगा। तब राजा ने कहा कि विवाद मत करो। फिर काममंजरी से बोला कि अपनी कही बात को सच्चा प्रमाणित करने के लिए कुछ प्रत्यक्ष दिखाओ, तभी तुम्हारी बात मैं सत्य मानूंगा अन्यथा सेठ ने जो कहा कि वही सही है। सेठ सच्चा है और तुम झूठी हो। इसके बाद काममंजरी वेश्या ने अपनी कही बात को सत्य प्रमाणित करने केलिए एक बिल्ली के बच्चे को प्रारंभ से ही पालना और साथ ही सिखाना शुरू किया। उसने उसको सिखाने में खूब मेहनत की। नतीजतन वह पान देना, दीपक पकडऩा, चामर ढुलाना, पानी पिलाना, वस्त्र पहनना आदि सभी राजकीय सेवा कार्यों में निष्णात हो गया।

 

राजा उस बिल्ले को देखकर वेश्या काममंजरी की बड़ी प्रशंसा करते हुए कहता कि इसने पशु का भी चतुर पुरूष की भांति सभी कार्यों में सक्षम बना दिया है। वेश्या काममंजरी मुंहमचकोड़ कर कहने लगी कि तेल, नमक, हींग बेचने वाले बनिये क्या जाने, हम में कुल परंपरा से ही चतुराई पाई जाती है। एक बार राजा रात्रि में चौपड़ खेल रहा था। बिल्ले ने दीपक पकड़ रखा था। तभी सहसा शोभन सेठ ने एक चूहा चुपके से छोड़ दिया। चूहे को देखते ही बिल्ला दीपक छोड़ कर उसकी ओर लपका। दीपक के गिरने से राजाके उत्तम वस्त्र तेल से खराब हो गए, सिंहासन जल गया और खेल नष्ट हो गया। तब शोभन सेठ ने कहा कि स्वामि! देखिए, सुशिक्षित होने पर भी नीच अपनी प्रकृति नहीं छोड़ता।

 

बिल्ले ने क्या किया? आखिर वही किया। बिल्ले चूहे का बैर सर्वत्र प्रसिद्ध है। चंदन, कपूर और कस्तूरी से सुगंधित करने पर भी लहसुन अपनी गंध नहीं छोड़ता है। गीत, नृत्य, ज्ञान, विज्ञान, कला-कौशल सभी सीखने से प्राप्त होते हैं लेकिन स्वभाव नहीं जाता है। तब राजा ने वेश्या काममंजरी के कथन को असत्य और सेठ शोभन के कथन को सत्य माना। उसने सेठ शोभन को सम्मानित किया।