सदा न फूलै केतकी, सदा न सावण होय।
सदा न विपता रह सकै, सदा न सुख भी जोय।।
केतकी सदा फूल नहीं देती है और सावन भी सदा नहीं होता है। इसी तरह विपत्ति भी सदा नहीं रहती है और सुख भी सदा नहीं होता है। इस बात को समझदार जीवन जीना चाहिए। एक सेठ धनी होने के साथ ही बहु तबियत वाला भी था। शहर में कोई भी चीज बिकने आती, वह दिन भर में बिके सो बिके, जो न बिके वह सेठ खरीद लेता था एक दिन एक आदमी बाजार में कागज का एक टुकड़ा हाथ में लिये हुए उसे बेचने को घूम रहा था। कागज के टुकड़े पर लिखा था-सदा न रहे। वह आदमी उस कागज के टुकडें को लिये हुए बाजार में आदमी आदमी को दिखाता फिरा, लेकिन जरा से एक कागज के टुकडे को खरीद कौन? आखिर शाम हो गई तब वह आदमी उस सेठ के घर पहुंचा।
सेठ ने वह कागज अपने हाथ में ले लिया और उसे उसकी बतायी हुई कीमत चुका दी। सेठ ने उस कागज के टुकड़े को अपनी पगड़ी के पल्ले बांध लिया। सेठ से राग-द्वेष रखने वाले लोग भी थे। उन्हें सेठ का ऐसा करना बड़ा अखरता था। अत किसी ने जाकर राजा से चुगली कर दी कि महाराज, आपसे भी बड़ा कोई आदमी इस नगरी में रहे, यह आपको शोभता नहीं। राजा नादान बुद्धि का था, इसलए कोई झूठा इल्जाम लगाकर तुरंत सेठ को पकड़वा कर मंगवा लिया और कैदखाने में डाल दिया। सेठ बेचारा क्या करता। अब सेठ कैदखाने में पड़ा पड़ा अपने दुख के दिन बिताने लगा। एक दिन वह सिर पर से पगडी उतारकर उसके पेच का बल निकालने लगा तो उसे ऐसा करते-करते एक गांठ दिखलाई दी। उस गांठ को उसने खेला तो वह कागज का टुकड़ा, जिसको किसी दिन उसने मुंहमांगी कीमत पर खरीद था निकला। सेठ न जब उस कागज का पढा कि सदा न रहे। तो उसको विश्वास हो गया कि यदि वे अपने सुख के दिन सदा नहीं रहे तो ये दुर्दिन के दिन भी सदा रहने वाले नहीं हैं।
सेठ ने कागज के टुकड़े को माथे से लगाकर फिर से पगडी के पल्ले बांध लिया और भगवान को धन्यवाद दिया। सेठ अब अपने दुख की बात भूल गया और उसे हंसी आ गई और वह खूब जोर से हंसने लगा। पहरेदारों ने सोचा कि सेठ दुख न सह सकने के कारण विक्षप्ति हो गया है। उन्होंने जाकर राजा को खबर दी। राजा वहां आया और सेठ के हंसने का कारण पूछा। जब सेठ ने सारी कथा कही तो राजा भी नादान से सयाना हो गया। उसको अपनी भूल दिखाई दी। से से बार बार माफी मांगकर उसे तत्काल छोड़ दिया। सेठ अपनी हवेली आकर पूर्ववत रहने लगा। मनुष्य को सुख में इतराना नहीं चाहिए और दुख में घबराना नहीं चाहिए।