8756. तूं झल्लै तलवार

दसवां वेद, daswa ved
दसवां वेद, daswa ved

कम्मा उगरसेन का, तो जननी बलिदार।
चंवर न झल्ले शाह पर, तूं झल्लै तलवार।।
हे उग्रसेन के पुत्र कर्मसेन। तुम्हारी जननी को बलिहारी है। तू बादशाह पर चंवर मत डुला, क्योंकि तू तो तलवार डुलाने वाला है।

(गतांक से आगे) घर के पास छुपे राजा ने यह दोहा सुना तो सुनते ही उसके दिल में हलचल मच गई। वह उसी वक्त लौट गया और सेवक को भेजकर उसने उस मनुष्य को बुलवाया। वह आदमी वही बनिया था, जो राजा की हत्या के समय बड़ पर छुपा बैठा था। बनिया भय के मारे कांपने लगा तो राजा ने उसे अभयदान देकर पूछा कि सारी बातें मुुझे सत्य-सत्य बतलाओ। बनिये ने आंखों देखी सारी घटना सत्य सत्य सुना दी। राजा को रात भर नींद नहीं आई। सवेरा होते ही राजा ने मंत्री को बुलवा भेजा। मंत्री के आने में कुछ देर हुई। राजा को पल पल भारी हो रहा था। उसने दूसरा और तीसरा बुलावा भेजा। मंत्री जान गया कि आज राजा को अपने बाप की मृत्यु का भेद ज्ञात हो गया है। उसने अपने बेटों को बुलाकर सारी बात समझाई और उन्हें साथ लेकर वह राजा के पास पहुंचा। राजा के पूछने पर मंत्री सारी घटना सुनाने लगा। जब राजा की हत्या का प्रसंग आया तो मंत्री के बेटों ने कहा कि आरे हत्यारे, तूने यह क्या दुष्कर्म किया? ऐसे धर्मात्मा और न्यायी राजा को तूने अपने स्वार्थ के वशी भूत होकर मार डाला। जिस राजवंश का नमक खाते खाते अपनी पीढियां गुजर गई, उस राजवंश के राजा की तूने हत्या कर डाली। हमारा यह कलंक कैसे धुलेगा? तू हमारा बाप नहीं, कसाई है। हम ऐसे हत्यारे को जीवित देखना नहीं चाहते। यों कहकर मंत्री के बेटों ने अपने बाप को घुरों से वहीं मार डाला। राजा को विश्वास हो गया कि मंत्री के बेटे बहुत भले हैं, यह दुष्ट ही ऐसा था जिसे उसकी करनी का फल मिल गया। यों सोचकर राजा का क्रोध शांत हो गया और उसने मंत्री के बड़े लड़के को दीवान बना दिया। (समाप्त)

भिणाय का राजा कर्मसेन बादशाह अकबर का दरबारी था। अन्य दरबारियों के कहने सुनने और स्वयं बादशाह द्वारा एक बड़े राज्य का प्रलोभन दिये जाने पर कर्मसेन बादशाह के हाथी पर खवासगी पर बैठने और बादशाह को चंवर डुलाने के लिए राजी हो गया। राजपूत सरदारों को जब इस बातका पता चला तो उन्हें बड़ा क्षोभ हुआ, लेकिन वे वे कर भी क्या सकते थे, निरूपाय थे। सवारी तैयार हो गई और कर्मसेन चंवर लेकर हाथी पर बैठ गया। अभी बादशाह के आने देर थी। तभी एक चारण ने उसको संबोधित करके एक दोहा कहा। दोहा सुनते ही, कर्मसेन हाथी से कूद पड़ा और इस प्रकार उसने राजपूतों की शान को बचा लिया।