8932. नर क्रितघण मानै नहीं

  • कीघोड़ा उपगार, नर क्रितघण मानै नहीं।
  • लानतियां ज्यां लार, रजी उड़ावौ राजिया।।


जो कृतघ्न मनुष्य होते हैं, वे किसी के किये हुए उपकार को नहीं मानते हैं। ऐसे लोग लानत के योग्य होते हैं। ऐसे लोगों के पीछे तो धूल उड़ानी चाहिए। बहलसर नामक गांव में एक अत्यंत निर्धन ब्राहृाण रहता था। वह बहुत ही सरल स्वभाव का था। गांव में उसको पर्याप्त भिक्षा नही मिलती थी, इस कारण वह अपने परिवार का पेट भरने में असमर्थ था।

अत: एक दिन वह भिक्षा के लिए अन्य गांवों को निकला। चलते-चलते वह एक कुएं के पास पहुंचा तो उसे पता चला कि वह कुआं सूखा है और उसमें बाघ, बंदर, सांप और एक मनुष्य पड़े हुए हंै। वे सभी उसे देखकर बचाने की प्रार्थना करने लगे। सरल स्वभाव के ब्राहृाण को उनकी करूण पुकार सुनकर दया आ गई और वह एक-एक करके उनको निकालने में लग गया। उसने पहले बाघ, फिर वानर और उसके बाद सांप को निकाला। अब मनुष्य जो कि सुनार था, उसको निकालने लगा। तब बंदर ने कहा कि हे परोपकारी यह सुनार कृतघ्न है, यह उपकार करने योग्य नहीं है।

इसे मत निकालिए। लेकिन उसकी बात पर ध्यान न देकर ब्राहृाण ने सुनार को भी निकाल लिया। अपने-अपने स्थान जाते हुए उन चारों ने कहा कि हे उपकारी, तुम कादंबदरीपुरी अवश्य आना। जब ब्राहृाण कादंबरीपुरी के पास पहुंंचा तो बाघ ने उसे बहुमूल्य आभूषण दिए। ये आभूषण उसने एक युवा को मार कर प्राप्त किए थे, जो कि एक राजकुमार था। बंदर ने ब्राहृाण को बहुत से मधुर फल लाकर भेंट किए। जब ब्राहृाण नगर में पहुंचा तो सुनार ने उसे अपनी दुकान में बुलाया। तब ब्राहृाण ने सोचा कि क्यों न बाघ द्वारा किये गए आभूषण बेच दिये जाएं। उसने वे आभूषण बेचने के लिए सुनार को दिए। सुनार ने देखा कि ये तो वही आभूषण हैं जो राजा के लिए बनाए थे। तब बेचकर आने की कहकर, ब्राहृाण को अपनी दुकान पर बिठलाकर वह सीधा राजा के पास पहुंचा। राजा ने तब समझा कि राजकुमार का हत्यारा यह ब्राहृाण है।

उसने तुरंत अपने अपने सैनिक भेजकर उसे पकड़ मंगवाया और उसका वध करने का आदेश दे दिया। ब्राहृाण को मारने के लिए वध स्थल ले जाया जाने लगा। तब सांप ने ब्राहृाण को विपत्ति में पड़ा देख जाकर खेलती हुई राजकुमारी को काट खाया। राजा ने सांप का विष उतारने के लिए गारूडि़कों को बुलवाया। तब सांप ने राजकुमारी से कहा कि यदि वह ब्राहृाण तुम्हें जिलाएगा तो तुम जीवित होगी, तुम अपने पिता से कहो कि उस ब्राहृाण को बुलवाए। ब्राहृाण को बुलवाया गया। ब्राहृाण के स्पर्श से राजकुमारी निर्विष होकर उठ बैठी। राजा ने तब अपनी पुत्री के जीवन दाता ब्राहृाण को सम्मानित और पुरस्कृत किया। फिर ब्राहृाण ने कहा कि आपने मेरे वध का आदेश क्यों दिया? मुझे तो वे आभूषण एक बाघ ने दिए थे, जिसको मैंने बचाया था। ब्राहृाण नेतब सारी बात बतला दी। इसके बाद राजा ने कृतघ्न सुनार को देश-निकाला दे दिया।