8939. वचन न लोपै कोय

पदमनाभ पंडित भणै, भावी चंचळ होय।
सज्जन जे अंगी करै, वचन न लोपै कोय।।

पंडित पदनाभ का कहना है कि भावी यानी होनहार तो चंचल होती है, लेकिन सज्जन व्यक्ति यदि कुछ स्वीकार कर लेता है तो फिर वह अपने वचनों से पलटता नहीं, उन पर कायम रहता है। किसी नगर में एक संपत्तिशाली सेठ रहता था। लक्ष्मी की तो उस पर पूरी कृपा थी ही, साथ ही वह स्वभाव से भी बड़ा भला था। राजा के दरबार में उसकी बड़ी इज्जत थी और उसे नगरसेठ का पद मिला हुआ था। नगर के अन्य सेठ साहूकार ऊपर से तो कुछ नहीं कह पाते थे, लेकिन भीतर ही उस नगर सेठ के वैभव और सम्मान को देखकर जलते थे। वे ऐसे अवसर की तलाश में रहते थे, जिससे कि किसी रूप में नगरसेठ को हानि पहुंचाई जा सके। कुछ समय बाद उस नगर के राजा की पुत्री का विवाह निश्चित हुआ। उस जमाने में राजमुत्री के विवाह का भार प्रजा पर भी पड़ता था। ऐसे अवसर पर सेठ साहूकार अपनी इच्छा अथवा अनिच्छा से राजा को भेंट देते थे।

कई बार उन्हें राजा के दबाव से भी अच्छी रकम या कीमती वस्तु राजकुमार के विवाह के उपलक्ष्य में भेंट करनी पड़ती थी। राजकुमारी के विवाह के लिए विविध प्रकार से तैयारियां होने लगी और सामान जुटने लगा। साथ ही दहेज की वस्तुओं पर भी राजा का पूरा ध्यान था। वह अपनी बेटी को उसकी मन पसंद का दहेज देना चाहता था। अत: कई प्रकार के वस्त्र-आभूषण तैयार करवाये गए। राजकुमारी को एक खास किस्म का कपड़ा विशेष पसंद था। उसने वह कपड़ा बडी मात्रा में लेना चाहा। लेकिन उतने कपड़े की कीमत तो उस जमाने में भी लाख रूपसे अधिक होती थी और वह कपड़ा इतनी अधिक मात्रा में एक ही स्थान पर मिलना भी कठिन था। फिर भी राजा अपनी पुत्री की इच्छा पूरी करना चाहता था। उसने अपने नगर के सभी महाजनों को बुलवाया और उनसे उस कपड़े के बारे में पूछताछ की।

महाजनों को इस बात की जानकारी थी कि वह कपड़ा नगरसेठ के पास है, सो उनको नगर सेठ का नुकसान पहुंचाने का मौका मिल गया। उन्होंने राजा को बताया कि वह कपड़ा बड़ी मात्रा में नगरसेठ के यहां आया हुआ है, अत आप उनसे मांग कर ले सकते हैं। तब राजा ने अपने आदमी भेजकर नगरसेठ को बुलवाया। राजा ने अपनी पुत्री के विवाह की बात बताते हुए उसके सामने उस कपड़े की अपनी मांग रखी। राजा की मांग बहुत बड़ी थी, अत: सेठ सुनकर घबरा गया। उस जमाने में एक लाख रूपया कोई मामूली रकम नहीं थी। फिर भी नगरसेठ अपनी प्रतिष्ठा कायम रखना चाहता था। इतनी बडी रकम होने पर भी राजा की मांग के जवाब में वह हां कहना चाहता था, लेकिन उसके मुंह से ना निकल गया। अब क्या हो सकता था? जबान से निकली हुई बात वापस नहीं आती। बनिया एक बार नट गया तो फिर उसी मुंह से हां किस प्रकार करे? (क्रमश:)