8942. दगा किसी का नहिं सगा

दगा किसी का नहिं लगा, कर देखो रे भाई।
चिटठी बामण ऊतरी, नाक कटायो नाई।।

दगा किसी का भी सगा नहीं हुआ करता है। यदि किसी को विश्वास न हो तो वह करके देख सकता है। अब देखिए, चिटठी तो ब्राहृाण के लिए लिखी गई थी, लेकिन नाक नाई को कटाना। दो ब्राहृाण भाई थे। एक पढा हुआ, दूसरा अनपढ। दोनों अलग-अलग हुए तो घर की चीजें बांट ली गई। उनके पास एक खेत था और यजमानी भी थी। पढे हुए ने यजमानी ली तो अनपढ ने खेत ले लिया। पढा हुआ राजा के यहां भागवत बांचने के लिए जाने लगा। राजा ने उसका पेटिया बांध दिया। लेकिन अनपढ ने खूब ठाठ से खेती की और घर धन धान्य से भर गया। अब पढे हुए ने कहा कि खेत मैं लूंगा, तुम कथा सुनाया करो।

अनपढ राजा को कथा सुनाने के लिए बगल में पुस्तक दबाकर चला, लेकिन वह तो फूटा अक्षर भी नहीं जानता था। फिर भी जाकर उसने राजा से पूछा कि राजाजी, आप भागवत सुनना चाहते हैं या भागवत का सार? राजा का मन अधिक देर बैठने में नहीं लगता था, अत: उसने कहा कि पंडितजी, मुझे तो सार ही सुना दीजिए। पंडित बोला कि सार इतना ही है-करंता सो भोगंता। राजा को यह बात बहुत अच्छी लगी और उसने एक सोने की मुहर पंडित को दे दी। तुम काहे के पंडित हो? यह राजा मांस-मिटटी खाता है, शराब पीता है और तुम उसके मुंह में मुंह दिये रहते हो। कल से मुंह पर पटटी बांधकर आया करो।

पंडित ने कहा कि कल से ऐसा ही होगा। उधर नाई ने राजा से कहा कि राजाजी, आपने यह कैसा पंडित बुलाया है? वह कहता था कि राजा के मुंह से बड़ी बदबू आती है सो कल से नाक पर पटटी बांधकर आया करूंगा। यह बात सुनकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। उसने पंडित को दंड देने का निश्चय किया। दूसरे दिन पडित पटटी बांधकर आया तो उसने सोचा कि नाई ठीक ही कह रहा था। पंडित ने सार सुनाया दगा किसी का सगा नहीं। राजा ने उस दिन दो मोहरें दी और साथ ही पंडित कोएक चिठटी देकर कहा कि यह चिटठी कोतवाली जाकर कोतवाल को दे देना, भूल मत करना। डयोटी पर नाई मिला। नाई के पूछने पर ब्राहृाण ने कहा कि आज दो मुंहरें मिली हैं। नाई तुरंत बोला कि एक मुहर मेरी है, क्योंकि मैंने ही तुम्हें कल तरकीब बताई थी। ब्राहृाण ने एक मुहर नाई को दे दी और कहा कि यह चिटठी अभी कोतवाली पहुंचा दो तो बड़ी कृपा होगी, आज मुझे जरा जल्दी घर पहुंचना है। नाई ने चिटठी ले ली और खुशी-खुशी कोतवाली गया। चिटठी देकर जब वह लौटने लगा तो कोतवाल ने उसे पकड़ा और छुरे से उसकी नाक काट ली, क्योंकि चिठटी में राजा ने कोतवाल के नाम यही हुक्म लिखा था। दूसरे दिन जब राजा को सारी बात बालूम हुई तो उसने पंडित से कहा कि पंडितजी, आपने कल सच ही कहा था कि दगा किसी का सगा नही है।