8943. म्हैं हूं संख डफोळ

वाही संखी सोवणी, म्हैं हूं संख डफोळ।
देण-लेण नै कुछ नहीं,हामळ भरूं करोड़।।


वह तो छोटी सी सुंदर शंखी थी, लेकिन मैं ढपोलशंख हूं। मेरे पास देने को कुछ नही है, लेकिन मैं करोड़ देनेकी बात कहता हूं। तात्पर्य यह कि मैं बेकार का शंख हूं। एक गरीब ब्राहृाण था। वह बड़ा भगवान का भक्त था। उसने भगवान की बहुत सेवा पूजा की। आखिर भगवान प्रसन्न हुए उन्होंने प्रकट होकर ब्राहृाण को एक शंख दिया और कहा कि इस छोटे से शंख की पूजा करके तुम जो भी चीज इससे मांगोगे, वही तुम्हें प्राप्त हो जाएगी। शंख पाकर ब्राहृाण तो निहाल हो गया। अब भला उसे किस चीज की कमी हो सकती थी।

उसने अपने रहने के लिए अच्छा सा मकान बनवा लिया, खाने-पीने और पहनने-ओढने की सभी मनचाही चीजें शंख से प्राप्त कर ली। अचानक उसकी बदली हुई दशा को देखकर उसके पड़ोसी को ईष्र्या हो गई। उसकी समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि ब्राहृाण अचानक इतना मालामाल कैसे हो गया? उसने अपनी स्त्री को ब्राहृाण के घर इसका भेद लाने के लिए भेजा। ब्राहृाण की स्त्री भोली थी। उसने बातों बातों में उसको सारी बात बता दी। अब क्या था, पड़ोसी ने ब्राहृाण का वह शंख चुराने का निश्चय किया। उसने अपनी स्त्री से कहा कि तुम ब्राहृाण के जाकर, उसकी स्त्री को उलझा कर तुम वह शंख चुपके से ले आओ। पड़ोसी की स्त्री अक्सर ब्राहृाण के घर जाती थी, अत: एक दिन मौका पाकर वह शंख को चुरा ले गई। अब तो ब्राहृाण मुश्किल में पड़ गया। शंख के बिना वह कुछ भी प्राप्त नही कर सकता था।

उसने और कोई उपाय न देख कर फिर से भगवान की आराधना की। भगवान ने उसे दुबारा दर्शन दिए और कहा कि ऐसी अलभ्य वस्तु को इस प्रकार लापरवाही से नही रखना चाहिए था। खैर, इस बार तुम्हें एक बड़ा शंख देता हूं, जिससे तुम्हें मिलेगा तो कुछ नहीं लेकिन तुम्हारा वह शंख तुम्हारे पास वापस आ जाएगा। ब्राहृाण ने शंख घर लाकर उसकी पूजा की और उससे सौ रूपये मांगे तो शंख ने बड़ी जोरदार आवाज में कहा कि सौ ले, दो सौ ले, हजार ले, दस हजार ले। लेकिन दिया एक पैसा नहीं। इसी प्रकार वह ब्राहृाण जब कोई वस्तु उससे मांगता तो वह उसे कई वस्तुएं देने की घोषणा करता, लेकिन देता कुछ भी नहीं। पड़ोसी ने देखा कि अपने पास वाला शंख तो छोटा है और मांगने पर सिर्फ एक ही वस्तु देता है और ब्राहृाण जो शंख अब लाया है वह सौ रूपये मांगने पर दस हजार रूपये देता है। इसलिए उसने वह शंख प्राप्त करने का निश्चय किया। उसने फिर अवसर पाकर अपनी स्त्री के जरिये वह शंख चुरवा लिया और छोटा शंख वहीं रखवा दिया। अब उसके हर्ष का कोई पार नहीं था। शंख घर आ जाने पर उसने पूजा करके उससे एक घोड़ी मांगी। शंख ने कहा कि एक घोड़ी ले, दो घोड़ी ले, दस घोड़ी ले, ऊंट ले, हाथी ले। लेकिन देने को वहां क्या था। उसने शंख से बार बार मांग कर देखा, लेकिन शंख ने उसे कुछ भी नहीं दिया। अब पड़ोसी पछताने लगा कि हाय रे मैंने लालच में वह छोटा शंख भी गंवा दिया।