8944. संपत सूं सब की हुवै

संपत सूं सब की हुवै, काज करो जो कोय।
बिन संपत की ना हुवै, लोग हंसाई होय।।


एकता से सब कुछ संभव होता है, भले ही कैसा ही काम क्यों न करो। लेकिन बिना एकता के कुछ भी नहीं होता है, बिना एकता के केवल जग-हंसाई ही होती है।
एक सेठ प्रात: काल उठता था और फिर अपने दैनिक कार्य में लग जाता था। एक दिन जब वह सुबह उठकर शौच-क्रिया के लिए निकला, तो उस समय कुछ अंधेरा था। उस अंधेरे में सेठ ने एक आश्चर्यजनक दृश्य देखा कि एक परम सुंदरी कीमती गहने कपड़े धारण किये हुए एक स्थान बिलकुल ही विपरीत था। उसे देख कर सेठ को भय लगा कि न जाने कौन है। तब उस स्त्री ने कहा कि डरो मत। मैं तुम्हारे घर की लक्ष्मी हूं और अब तुम्हारा घर छोड़कर जा रही हूं। तुम्हारे घर में मै बड़े चैन से काफी समय रही हूं, इसलिए जाते समय मैं तुम्हें एक वरदान देकर जाना चाहती हूं। यही कारण है कि मैंने तुम्हें प्रत्यक्ष दर्शन दिया है। अत: तुम अपनी इच्छा के अनुसार कोई वस्तु मांग लो। सेठ लक्ष्मी की यह बात सुनकर बहुत घबरा गया। वह सोचने लगा कि जब स्वयं लक्ष्मी ही मेरे घर से जा रही है, तो फिर मैं क्या मांगूं? मांगूं भी तो आखिर क्या मांगूं? दुविधा में पड़ा हुआ सेठ हाथ जोड़कर देवी लक्ष्मी से निवेदन करने लगा कि मैं अभी तो कुछ मांगने की स्थिति में नहीं हूं, कल आप से वरदान मांगूंगा। मुझे सोचने का समय चाहिए, इसलिए आप कल तक का समय दें।

देवी लक्ष्मी ने सेठ की बात स्वीकार कर ली और फिर वह अदृश्य हो गई। सेठ भी शौच-क्रिया से निवृत होकर अपने परिवार में घर आ गया। घर आकर सेठ ने अपने घर के सभी लोगों को बुलाया और फिर लक्ष्मीदर्शन की बात बताकर उनसे राय मांगी कि वरदान में आखिर क्या मांगना चाहिए? अलग-अलग लोगों ने अलग-अलग वस्तुएं मांगने की सलाह दी। आखिर में सेठानी ने कहा कि देवी से वरदान के रूप में घर की संपत यानी घर की एकता मांगनी चाहिए। सेठ बड़ा बुद्धिमान था, उसे सेठानी की राय ही सबसे अधिक जंची। अत: उसने तय किया कि वह यही वरदान में देवी लक्ष्मी से मांगेगा। अगले दिन उसी समय और उसी स्थान पर देवी लक्ष्मी ने फिर दर्शन दिया। तब सेठ ने हाथ जोड़कर उससे वरदान मांगा कि देवी, मुझे कोई वस्तु नहीं चाहिए, बस घरवालों में संपत यानी एकता बनी रहे, यही वरदान दीजिए। सेठ की बात सुनकर देवी लक्ष्मी मुस्कराई और बोली कि सेठ, अब तो मैं तुम्हारे घर से निकालने पर भी नहीं जा सकती। जहां संपत यानी एकता होती है, वही मेरा निवास होता है। मैं तुम्हारे घर में ही रहूंगी। सेठ की इच्छा पूरी हुई और वह सेठानी की सलाह से सही अर्थ में सेठ ही बना रहा।