8952. छिटकासी नहिं बीच में

मोटै मालक रो घणो, मोटो नहचो चित्त।
छिटकासी नहिं बीच में, नेह निभासी नित्त।।

उस बड़े मालिक का चित्त निश्चित रूप से निसंदेह बड़ा है। वह कभी बीच में ऐसे ही नहीं छोड़ देगा, वह तो अपना प्रेम नित्य निभाएगा। इसलिए उस पर भरोसा रख। एक ब्राहृाण शालग्राम का परम भक्त था। वह शालग्राम की नित्य नियमित पूजा करता था। एक दिन उसे विचार आया कि शालग्रामजी को गंगा में स्नान कराना चाहिए। वह शालग्रामजी को लेकर गंगाजी जा पहुंचा। लेकिन वहां चार चोरों ने उसे पकड़ लिया। चोर बोले कि अपने पास जो भी माल है, वह निकालकर हमें देदे अन्यथा हम तुम्हें मारेंगे। ब्राहृाण ने कहा कि मैं तो एक गरीब ब्राहृाण हूं, मेरे पास कुछ भी नहीं है। सिर्फ यह शालग्रामजी की मूर्ति ही है। लेकिन चोर अपनी बात पर अड़े रहे।

बोले कि तुम्हारे पास कुछ नहीं है, तब तो हम तुम्हें अवश्य मारेंगे। अंत में ब्राहृाण बोला कि तुम नहीं मानते हो और मुझे मारना ही चाहते हो तो तनिक ठहरो। मैं शालग्रामजी की इस मूर्ति को गंगाजी में पधरा देता हूं, कारण मेरे मर जाने के बाद इस मूर्ति की पूजा कौन करेगा? मूर्ति पधाराने के बाद इस मूर्ति की पूजा कौन करेगा? मूर्ति पधराने के बाद तुम लोग मुझे मार डालना। यह कहकर ब्राहृाण ने मूर्ति को लेकर गंगाजी में प्रवेश किया और उसने मूर्ति से कहा कि भगवान मैं वर्षों से आपकी सेवा पूजा कर रहा हूं, फिर आप इन चोरों से मेरी रक्षा क्यों नहीं करते? अपने भक्तों को बचाने के तुम्हारे किस्से तो असंख्य है।

फिर आज तुम्हें क्या हो गया है। जो मेरी रक्षा करने को प्रस्तुत नहीं हो रहे हो? ब्राहृाण की बात सुनकर शालग्राम ने कहा हे ब्राहृाण तूने अपने पिछले जन्म में इन चारों को मारा था, अत इस जन्म में वे भी तुझे मारेंगे। मेरी सेवा पूजा करने का फल यह है कि ये चारों तुम्हें चार जन्मों में बारी बारी न मारकर केवल इस जन्म में चारों एक ही बार मारेंगे। चोरों ने देखा कि ब्राहृाण गंगाजी में खड़ा किसी से बातें कर रहा है। तब चोरों ने पूछा कि तुम गंगाजी ने किस से बातें कर रहे हो? तब ब्राहृाण सारी बात उन्हें सच सच बतला दी कि मैं शालग्रामजी से बातें कर रहा था और हमारे बीच ये बातें हुई। फिर ब्राहृाण बोला कि मनुष्य को आखिर अपनी करनी का फल भोगना ही पड़ता है। भले ही अगले जन्म में ही क्यों न भोगना पड़े। सारी बात जान कर उन चारों चोरों का मन शुद्ध हो गया और उन्होंने ब्राहृाण से कहा कि तुम शालाग्रामजी को पधराओं मत, इनकी नित्य पूजा करते रहो, हम तुम्हें नहीं मारेंगे और आज से यह निंद्य कर्म भी नहीं करेंगे। यों कहकर वे चारों चले गए।