जय कुंजर (हाथी) समान विशालकाय जैन विश्व भारती कामधेनु समान

जैन विश्व भारती में होता रहे आध्यात्मिक, धार्मिक विकास : आचार्य महाश्रमण

लाडनूं। जैन विश्व भारती के नवनिर्मित ‘महाश्रमण विहार’ में अद्र्धमासिक प्रवास कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को प्रात:कालीन मंगल प्रवचन कार्यक्रम में ऑनलाइन रूप से जुड़े श्रद्धालुओं को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपने जीवन में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में नैतिकता व ईमानदारी हो तो जीवन की पवित्रता बनी रह सकती है। आदमी को झूठ बोलने और चोरी करने से बचने का प्रयास करना चाहिए। झूठ और चोरी दोनों का साहचर्य है। अर्थ में भी आदमी को पवित्रता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। त्याग की भावना नहीं होने के कारण आदमी गलत तरीके से अर्थार्जन का प्रयास करता है। जिस धन पर दूसरे का हक हो, उसे रख लेना भी एक प्रकार की चोरी ही होती है। टैक्स नहीं चुकाना भी एक प्रकार की चोरी है। जिस धन पर अपना अधिकार नहीं और उसे रख लिया जाए तो वह बात भी चोरी-सी प्रतीत होती है। आदमी को दूसरे के धन को धूल के समान समझने का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर अगर त्याग की चेतना का विकास हो तो आदमी चोरी से बच सकता है।

साधु को तो जीवन भर के चोरी और झूठ का त्याग होता है। गृहस्थ आदमी भी अपने जीवन में त्याग की चेतना का विकास करे। जहां तक संभव हो झूठ बोलने से बचने का प्रयास करे। त्याग की चेतना और दूसरों के धन को धूल के समान समझने की भावना हो तो चेतना की निर्मलता बनी रह सकती है। ईमानदारी का रथ सत्य और अचौर्य रूपी पहिए पर टिका हुआ है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में ईमानदारी के विकास के लिए सत्य और अचौर्य का पालन करने का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने आगे कहा कि संतों के चरण जिस धरती पर पड़ते हैं, वह परम सौभाग्यशाली होती है। मेरा जैन विश्व भारती में प्रवास हो रहा है।

इस धरती पर भी परम पूज्य गुरुदेव तुलसी और परम पूज्य आचार्य महाप्रज्ञजी के चरणकमल टिके थे। इसके अलावा इस जैन विश्व भारती में कितने-कितने साधु-साध्वियां, समणियां व मुमुक्षु बाइयां भी रहती हैं। जैन विश्व भारती द्वारा शिक्षा, संस्कार व साहित्य के क्षेत्र में कितने-कितने उपक्रम चल रहे हैं। यह मानों जय-कुंजर हाथी के समान विशालकाय है। इस परिसर में विशालकाय हाथी का स्टैचू भी बना है, जिसे मैंने किंचित्-किंचित् अवलोकन भी किया। जैन विश्व भारती कामधेनु के समान भी है। योगक्षेम वर्ष का इतना बड़ा उपक्रम यहां हुआ। जैन विश्व भारती की धरती तपोभूमि और गुरुदेव तुलसी की मानों कर्मभूमि ही है। जैन विश्व भारती का आध्यात्मिक, धार्मिक विकास होता रहे।

मंगल प्रवचन के उपरान्त स्वागत समारोह के उपक्रम में सर्वप्रथम जैन विश्व भारती के अध्यक्ष मनोज लूणिया, महामंत्री प्रमोद बैद, लाडनूं प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष शांतिलाल बरमेचा, स्वागताध्यक्ष राकेश कठोतिया, जैन विश्व भारती मान्य विश्वविद्यालय के कुलपति बच्छराज दुगड़, समणी नियोजिका अमलप्रज्ञाजी, राजेश दूगड़ व उमेशसिंह बोकडिय़ा ने अपनी आस्थाभिव्यक्ति दी। समणीवृंद तथा पारमार्थिक शिक्षण संस्था की बहनों द्वारा गीत का संगान किया गया। कार्यक्रम के दौरान जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों द्वारा आचार्य महाप्रज्ञजी की अंग्रेजी की चार पुस्तकें पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित की गईं।