अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबानी शासन काबिज होते ही उसका फंड फ्रीज कर दिया। आईएमएफ ने भी फंडिंग पर रोक लगा दी। ऐसे में बंदूक की भाषा से समझाने वाला तालिबान खुद मदद की आस लिए घुटनों पर आने लगा है। उसने आर्थिक मदद के लिए चीन से गुहार लगाई है। दूसरी तरफ, अफगानिस्तान की बढ़ती आर्थिक आपदा के बीच चीन भी अपने लिए बड़े मौके की फिराक में है।
दोनों पक्षों की आपसी बातचीत इसी ओर इशारा करती है। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने शुक्रवार को कहा कि चीन ने अफगानिस्तान में शांति और सुलह को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभाई है। इसलिए अब वह देश के पुनर्निर्माण में भी योगदान दे।
तालिबान से सौदेबाजी में चीन का पलड़ा भारी दिखाई देता है। ऐसे में चीन लाभ उठा सकता है कि रूस-अमेरिका के विपरीत उसने अफगानिस्तान में लड़ाई नहीं लड़ी है, तो उसे फायदा मिलेगा। हालांकि चीन की अपनी चिंता भी है। वह पश्चिमी शिनजियांग क्षेत्र में धार्मिक उग्रवाद को अस्थिर शक्ति बताता रहा है।
साथ ही लंबे समय से चिंतित है कि तालिबान-नियंत्रित क्षेत्र का उपयोग अलगाववादी ताकतों को बढ़ाने के लिए किया जाएगा। इसीलिए पिछले महीने चीन के विदेश मंत्री और तालिबान की बैठक में शाहीन ने आश्वस्त किया था कि अफगानिस्तान उदारवादी इस्लामी नीति अपना सकता है। ऐसे में संभव है कि तालिबान और चीन में सहमति बन जाए।