पाकिस्तान में चरमराते सिस्टम के बीच चीफ जस्टिस की अग्नि-परीक्षा

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पाकिस्तान की चरमराती संवैधानिक व्यवस्था के बीच अब सारी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल पर टिक गई हैं। आम लोगों के मन में सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में अपने समर्थक जजों के साथ मिल कर जस्टिस बंदियाल 14 मई को पंजाब में प्रांतीय असेंबली का चुनाव कराने के अपने फैसले को लागू करवा पाएंगे? इसके लिए वे क्या तरीके अपनाएंगे, यह सवाल भी चर्चित है। जस्टिस बंदियाल की एक बड़ी मुश्किल यह है कि इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच भी विभाजन हो गया है।

सुप्रीम कोर्ट के जजों में मतभेद

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पाकिस्तानी मीडिया में छप रही रिपोर्टों से साफ है कि दो गुट में बंट गए सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच मतभेद लगातार गहराते जा रहे हैं। समझा जाता है कि पिछले हफ्ते बात उस मुकाम पर पहुंच गई, जिसके बाद दोनों गुटों में मेल-मिलाप की संभावना लगभग खत्म हो गई मानी जा रही है। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल 15 जज हैं। उनमें से आठ जज एक खेमे में शामिल हैं, जबकि सात जजों का अलग गुट बना हुआ है। इनमें एक गुट चीफ जस्टिस बंदियाल के साथ है, जिसने अपना ध्यान पाकिस्तान के सियासी सिस्टम में ‘संतुलनÓ बहाल करने पर केंद्रित कर रखा है।

मई में चुनाव कराने के पक्ष में नहीं

जस्टिस बंदियाल के समर्थक आठ जज चाहते हैं कि पंजाब की प्रांतीय असेंबली का चुनाव किसी कीमत पर 14 मई को हो। पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार मई में यह चुनाव कराने के पक्ष में नहीं है। इस कारण जस्टिस बंदियाल ने सरकार को कोर्ट की अवमानना का नोटिस जारी किया है। इसके अलावा जस्टिस बंदियाल के नेतृत्व वाली बेंच ने पिछले हफ्ते स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को सीधे निर्देश जारी किया कि चुनाव कराने के लिए वह निर्वाचन आयोग को 21 अरब रुपये जारी करे। जजों के इसी खेमे ने पिछले हफ्ते संसद से पारित उस कानून को निलंबित कर दिया, जिसमें चीफ जस्टिस के विवेकाधीन अधिकारों को सीमित करने का प्रावधान किया गया है।

असेंबलियां भंग होने से शुरू हुआ विवाद

सारे विवाद की शुरुआत पंजाब और खैबर पख्तूनवा प्रांतों की असेंबलियों के भंग होने से हुई। पाकिस्तान के संविधान के मुताबिक किसी सदन के भंग होने के 90 के अंदर आम चुनाव कराना अनिवार्य है। लेकिन निर्वाचन आयोग ने चुनाव कार्यक्रम का एलान नहीं किया। तब चीफ जस्टिस ने अपनी पहल पर मामले की सुनवाई की। इससे नाराज शहबाज शरीफ सरकार ने चीफ जस्टिस के अपनी पहल पर सुनवाई का अधिकार खत्म करने का प्रावधान करते हुए संविधान संशोधन बिल नेशनल असेंबली से पारित करवा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उस बिल को ही निलंबित किया है।

इस बीच सत्ताधारी गठबंधन पाकिस्तान डेमोके्रटिक एलांयस ने कहा है कि स्टेट बैंक सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर निर्वाचन आयोग को धन ट्रांसफर नहीं कर सकता। उसका दावा है कि ऐसा करना संविधान का उल्लंघन होगा। खबर है कि नेशनल असेंबली की वित्त मामलों संबंधी स्थायी समिति ने बैंक के अधिकारियों को समन किया है। इन घटनाओं से साफ है कि पाकिस्तान में कोई पक्ष किसी और की नहीं सुन रहा है। ऐसे मनमाने व्यवहार के कारण पूरी व्यवस्था के चरमरा जाने का खतरा है।

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