आखर में साहित्यकार ठाकुर नाहरसिंह जसोल हुये रूबरू

राजस्थानी को मिले राजस्थान में दूसरी भाषा का दर्जा

प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा ग्रासरूट मीडिया फाउंडेशन के सहयोग से राजस्थानी साहित्य, कला और संस्कृति से रूबरू कराने के उद्ेदश्य से आखर नाम से आयोजित पहल के अंतर्गत आज ठाकुर नाहरसिंह जसोल के साथ साहित्यकार गिरधरदान रतनू दासोड़ी ने बातचीत की। श्री सीमेंट की ओर से समर्थित यह कार्यक्रम आखर राजस्थान के फेसबुक पेज पर लाइव आयोजित किया गया।

वरिष्ठ राजस्थानी साहित्यकार ठाकुर नाहरसिंह जसोल ने कहा कि, राजस्थानी भाषा बहुत ही मीठी और सारगर्भित है। इसकी होड़ कोई भाषा नहीं कर सकती है। राजस्थानी और गुजराती बहुत हद तक समान होते हुए भी गुजराती को मान्यता मिल गई लेकिन राजस्थानी को मान्यता नहीं मिली है। सीताराम लालस का तैयार किया हुआ राजस्थानी शब्दकोष जैसा दुनिया में नहीं है। राजस्थानी साहित्य के बारे में नई पीढ़ी को जानकारी देना बहुत जरूरी है। इससे हमारे जीवन मूल्यों का भी संरक्षण होगा।

कार्यक्रम के दौरान जोधपुर के भूतपूर्व महाराजा गजसिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि, राजस्थानी साहित्य मायड़ भाषा की ताकत है। ज्ञान और संस्कृति भाषा के कारण ही है। राजस्थान में भाषा को मान्यता की कमी है। भाषा ही संस्कृति की जड़ है।

संस्कृति की रक्षा के लिए भाषा की सुरक्षा बहुत जरूरी है। आठवीं अनुसूची में राजस्थानी को मान्यता मिले इसके लिए जोर लगाए रखना जरूरी है। इसके लिए मुख्यमंत्री गहलोत को पत्र भी लिखा और इसका जवाब भी आया है कि इस पर विचार किया जा रहा है। राजस्थान में शासन की दूसरी भाषा का दर्जा मिलना चाहिए।

राजस्थानी को बोलने वालों की संख्या 15 करोड़ है। अमेरिका के न्यूयार्क और नेपाल में भी राजस्थानी को मान्यता है। इसके साथ ही महाराजा गजसिंह ने जोधपुर में आखर की शुरूआत भी की। इससे हमारे जीवन मूल्यों का भी संरक्षण होगा। अंत में अहसास वुमन जोधपुर की संयोजक शैलजा सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

आखर में प्रतिष्ठित राजस्थानी साहित्यकारों डॉ. आईदान सिंह भाटी, डॉ. अरविंद सिंह आशिया, रामस्वरूप किसान, अंबिका दत्त, मोहन आलोक, कमला कमलेश, भंवरसिंह सामौर, डॉ. गजादान चारण आदि के साथ साहित्यिक चर्चा की जा चुकी है।