मुर्गा थाने में

फर्ज करो कि जैसा उनके साथ होता रहा है, वैसा उसके साथ हुआ तो क्या होगा। वो सीन कैसे होंगे। वो मंजर कैसे होंगे। कार्रवाई-दर-कार्रवाई कैसी होगी। अपने यहां एक कहावत आम हैं-‘जब ब्याव मांडा है तो गीत भी गाणे पड़ेंगे। यह कहावत मुकदमें अथवा मुकदमों पर लागू की जाए तो सामने आएगा कि जब मुकदमा दर्ज हो गया तो नियमानुसार कार्रवाई तो करनी पड़ेगी। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

शादी-कहावत-मंजर-सीन-कानून-नियम और कोर्ट के घालमेल पर हैरत हो रही होगी। होणा भी स्वाभाविक। ब्याव और गीत तक तो सही है। कानून और कोर्ट भी थोड़ा-थोड़ा समझ में आता है। इनके साथ दूसरी जमातें दिमागी क्षेत्र के बाहर। जो लोग अपनी रीत-रिवाज और संस्कृति के मुजब शादी करते हैं उन्हें समाज के सारे नियम-कायदों की पालना करनी पड़ती है। इस का प्रोसेस खासा लंबा और खरचीला है।

मगर है टिकाऊ। कुछ अपवाद हो सकते हैं वरन जो आनंद सामाजिक रीति-रिवाजों में मिलता है वह कही नही मिलता। कई लोग घरवालों की मरजी के विरूद्ध जाकर शादी रचा लेते हैं। रचाइए। कई लोग आर्य समाज में शादी करते हैं। कीजिए। कई लोग कोर्ट मेरिज करते हैं। शौक से कीजिए। लड़का-लड़की जब बालिग हो जाते हैं तो कानून उन्हें ऐसा करने का अधिकार देता है। अपने अधिकार के लिए वो लोग फर्ज को भूल जाते है। वो भूल जाते हैं अपने माता-पिता को। वो भूल जाते हैं अपने भाई-बहन को। वो भूल जाते है अपने संस्कारों को। कई जोड़े परिवारबदर कर दिए जाते हैं।

विवाह अगर घर-परिवार वालों की रजामंदी से हो तो बना बिगड़ी होने पर पूरा कुनबा साथ खड़ा नजर आता है और मते-मते शादी करने वाले संकट के समय अपने आप को तन्हा पाते हैं। ऐसे में उन्हें घर-परिवार की याद आती है। कोई यह ना समझे कि हथाईबाज प्रेम और विवाह के विरोधी हैं। प्रेम करो-प्रेम विवाह करो मगर याद रहे कि घर-परिवार के प्रति भी उनके कुछ कर्तव्य हैं।

इस की पलट में सामाजिक रीत के अनुसार विवाह का आनंद ही कुछ और है। पहले दिखाई। हां करने या पसंद आने पर रोका। सगाई सरपण। शादी की तारीख। तैयारियों में दुनिया भर की फां..फूं..। पूरा कुनबा जुटता है। रूठों को मनाया जाता है। गिले-शिकवे दूर होते हैं। रस्में निभाई जाती है। गीत-नृत्य होते हैं। पाट बिठाई होती है। कहीं बारात तो कहीं बारात का स्वागत। सामूहिक प्रीति भोज। सजे-धजे बाराती और घराती। सजी-धजी महिलाएं। बच्चों की अपनी मस्ती। इधर जीमण और उधर स्टेज पर वरमाला की रस्म। स्टेज पर जोरदार धमचक। फोटो सेशन के बाद सात भांवर।

उसके बाद घर-परिवार के सदस्यों का सहभोज। तड़के विदाई। इस पूरी प्रक्रिया को अपने यहां शादी के गीत कहा जाता है। नई नस्ल के छोरा-छोरी अपनी मन की कर के राजी भले ही हो जाएं मगर जो आनंद सामाजिक रस्म-रिवाजों में आता है वह कहीं ढूंढे से नही मिलता। एक महत्वपूर्ण बात ये कि अगर इस तामझाम और दिखावे में करजा लेणा पड़े तो नहीं चाहिए ऐसा दिखावा। करजा लेकर घी पीना और पिलाणे के हम विरोधी थे हैं और रहेंगे। जिस के पास जितनी चादर हैं, उतने ही पैर पसारना ठीक रहेगा। लोग आएंगे-खाएंगे-लिफाफा पकड़ा के चले जाएंगे और आप बरसों-बरस तक करजे में दबे रहेंगे।

ब्याव-गीत-जीमण के चक्कर में खास बात तो भूल ही गए। वो मंजर। वो दृश्य। वो सीन। बीच में कोर्ट कानून और नियम। यदि इन का ख्वाबिया चित्रांकन किया जाए तो सामने आएगा कि पांडु उसे लेकर कोर्ट जा रहे हैं। आवाज लगने पर उसे अंदर ले जाया जाएगा। कोर्ट में दोनों पक्षों की बहस होगी। क्यूंकि मामला हत्या का है तो पुलिस रिमांड मांगेगी और आरोपी पक्ष अपनी दलीलें पेश कर जमानत देने की गुहार लगाएगा। हो सकता है। नजीरें पेश कर मुकदमा समाप्ति की मांग कर दे। हो सकता है कोर्ट उन दलीलों को मान ले वरना रिमांड पर। अगली पेशी पे जेसी। उधर पांडु काळे-पीळे करने में व्यस्त। मौका-ए-वारदात की फर्द। मृतक का पोस्टमार्टम। गवाहों के बयान। हो सकता है तारीख पे तारीख दोहराई जाए। हो सकता है मामला बंद कर दिया जाए। फर्ज करो ऐसा हो तो उसे पहले पेरेग्राफ मे ही परोस दिया गया।

हवा तेलंगाना से आई। वहां के जग्तिअल में येलम्मा मंदिर के पास मुर्गा लड़ाई का आयोजन हुआ था। उस दौरान एक मुर्गे के पैर में बंधा चाकू एक व्यक्ति की जांघ में घुस गया। बाद में उसकी मौत हो गई मगर पांडुओं ने मुर्गे पे हत्या का आरोप मढ के गिरफ्तार कर लिया। उसके वास्ते थाणे में दाने-पानी का बंदोबस्त भी किया गया। आगे क्या होता है उसकी विगत बांची जा चुकी है।

मामला साफ और स्पष्ट है मगर कई सवाल खदाबदा रहे है। यदि रात को टुन्न पांडु के दिमाग में चिकन खाणे की बात आ गई तो। मुर्गा आस-पास के क्षेत्र की मुर्गी के चक्कर में फंस कर उडऩ छू हो गया तो। मुर्गे को छुड़ाने के लिए उसकी कौम सड़क पे उतर गई तो। किसी ने सोचा भी नही कि अपनी बांग से सभी को जगाने वाले को हत्यारा का आरोपी बना दिया जाएगा। पर इतना तय है कि वो फिर परवाज पाएगा। उसे समझा दिया जाए कि आइंदा ऐसे लड़ाई-झगड़े न करें जिसमें किसी की जान चली जाएगी। तुम्हारा काम बांग लगाना है। लड़ाई-पंगों के लिए मानखे ही काफी है।