चोंचलो का चैलेंज

जिसे जो मानना हैं, माने। जिसे जो समझना है, समझे। हम मानते भी है और जानते भी हैं कि किसी के निजी मामलों में दखल देना ठीक नही है। हम इस आदर्श वाक्य के पक्के समर्थक रहे हैं। हम किसी के व्यक्तिगत मामलों में ना तो दखल देना पसंद करते हैं ना किसी को देने देते हैं, क्यूंकि मामला सोशल मीडिया तक आ गया लिहाजा उस पर हर कोई प्रतिक्रिया जाहिर कर सकता है। शर्त ये कि प्रतिक्रिया मर्यादित हो। हमारा निजी विचार है कि ऐसी चुनौतियों से बचा जाए तो ठीक रहेगा। हमारा निजी विचार ये कि फालतू के चोंचलों में नहीं पडऩे का। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।


निजी मामले और सोशल मीडिया का घालमेल अपने आप में विरोधाभास है। किसी की पर्सनल लाइफ है तो है, उसमें दखल देने का हक किसी को नही है। कानून ने भी हमें निजता का अधिकार दे रखा है। समाज में ऐसे लोग भी है जिन्हें पड़ोसी के फटे में टांग अड़ाने की आदत लग चुकी है। आदत से आगे बढें तो बनेगा-लत लगा चुकी है। पड़ोसी का मतलब यह नही कि जो आप के आस-पास या गली-गुवाड़ी में रहता हो। पड़ोसियों की परिभाषा में अमूमन ऐसों को ही रखा जाता है मगर यहां उनका दायरा विस्तृत। इधर-उधर या सामने-पीछे रहने वालों के साथ सहकर्मी भी पड़ोसी। मिलने वाले और जान-पहचान वाले भी पड़ोसी।

मीत भी पड़ोसी-सखा भी पड़ोसी। नातेदार-रिश्तेदारों से लेकर यार-दोस्त पड़ोसी। वैसे लतबाज इन सबके निजी मामलों में टांग अड़ाने से बाज नही आते। खामखा की पंचायती करना उन की फि तरत में शुमार। भले ही उन्हें एवोइड करो, भले ही उन्हें देख कर नजरें चुरा लो। वो अपनी आदत की झलक दिखाने से बाज नहीं आते। इस की पलट में भतेरे लोग ऐसे हैं जो अपने काम से काम रखते हैं। बात उत्ती ही करते हैं-जित्ती करनी होती है। नो ताका-नो झांकी। दुख-सुख में साथ। वरना ना किसी की हरी में-ना किसी की भरी में। हथाईबाज भी इसी श्रेणी में। क्यूं कि मामला सोशल मीडिया तक पहुंच गया तब तो निजता और प्राइवेसी रही ही नहीं। इस का मतलब यह भी नहीं कि मर्यादा लांघ दो।


सोशल मीडिया का उपयोग और सदुपयोग किया जाए तब तक तो ठीक है- और दुरूपयोग होना शुरू हो जाए तो परिणाम घातक हो सकते हैं। बात महज सोशल मीडिया की नहीं, हर चीज का दुरूपयोग घातक ही होगा। अति हर चीज की खराब होती है। अणूते लाड-प्यार से औलाद इतर जाती है। हलवे में ज्यादा घी और शक्कर डाल दो तो-गले नही उतरता। साक में नमक ज्यादा पड़ जाए तो खाने योग्य नही रहता। कुल जमा अपने हिसाब से चला जाए। भरा-बुरा सोच-विचार के कदम बढाएं जाएं तो सब के लिए ठीक रहेगा।


सोशल मीडिया पर इन दिनों भांत-भांत की चुनौतियां परोसी जा रही है। नाम के चैलेंज और काम के धूड़ धाणी धक्का पाणी। जो इसे स्वीकार करते हैं वो उनका अपना मामला है मगर हथाईबाज ऐसी चुनौतियों को सिवाय चोंचलों के और कुछ नही मानते। पहले एक कतिपय चुनौती परोसी गई उसके बाद पूरा शो रूम सज गया। चुनौती ढंग-ढांग की हो तो स्वीकारने में मजा आता है-पर इन चुनौतियों में ना लूण ना लक्खण फिर भी लोग लगे हुए हैं।


भले ही उन पर-‘हौडाहौड़ गोड़ा फोड़े का मुलम्मा चढे। जिसने ‘तुळी दिखाई वो चासे ले रहा है-बाकी के लोग मुन्ना भाई की तरह लगे हुए है। चोंंचलों की चुनौती स्वीकार कर ऐसी ताल ठोक रहे हैं, मानों कोरोना की वेक्सिन ढूंढ ली हो। सोशल मीडिया पे इन दिनों एक जोरदार नाटक चल रहा है। जिसका नाम रखा गया-‘कपल चैलेंज। इस में जोड़ी के फोटो पेश किए जा रहे हैं। जोड़ी माने पति-पत्नी के फोटो। कोई धोतिए-पोतिए में तो कोई जोधपुरी कोट में। कोई राजस्थानी डे्रस में तो कोई जींस-टीशर्ट में। जिसे देखो वो अपनी जोड़ायत के साथ सोशल मीडिया पर। क्या बांके और क्या बांके बिहारी सब के सब कथित चैलेंज स्वीकार करने में। इसके बाद किसी ने परोस दिया-‘स्माईल चैलेंज। तो भाईसेण उसमे लग गए। इसके बाद सिस्टर्स चैलेंज। ब्रदर्स चैलेंज। अब हवा एकल चैलेंज की चल रही है तो कई लोग उसके साथ उड़ रहे हैं। इस बीच किसी ने दो चौपायों की रोमांटिक फोटो पोस्ट कर के नीचे ‘कपल चैलेंज टांग दिया। एक भाई ने लिख मारा-‘पत्नी के साथ फोटो पोस्ट करने में कैसा चैलेंज। हिम्मत है तो ‘उसके साथ की फोटो पोस्ट कर के दिखाओ।


कुल मिला के ऐसे चैलेंज चोंचलेबाजी के सिवाय कु छ नही। हमारे सामने कई चुनौतियां है। कोरोना के प्रति जागरूक रहने से लेकर आर्थिक मंदी से निपटने का चैलेंज। काम-धंधे की चुनौती। बच्चों की बरबाद होती पढाई को पटरी पे लाने की चुनौती। घर-गिरस्थी को समेटे रखने की चुनौती। समाज में भतेरी चुनौतियां हैं। हम उनसे निपट लेंगे वही बहुत। चौंचलों की चुनौतियों से दूर रहना सब के लिए बेहतर होगा। हथाईबाज चैलेंज करते हैं गरीबों की सहायता का। गिरे को उठाने का। साथी हाथ-बढाना साथी रे का। नारी के सम्मान का। बुजुर्गोंं की सेवा का। पर्यावरण संरक्षण का। अपणायत के प्रचार-प्रसार का। प्रेम-सद्भाव और सहयोग का। देखते हैं कितने लोग इन्हें स्वीकार
करते हैं।