अंत का आरंभ

पढा तो ‘पेलिपोत हमें भी अटपटा लगा था। ठीक वैसे-जैसे आप को लग रहा है। हम चाहते तो लग रहा होगा भी उकेर सकते थे, पर ऐसा इसलिए नही किया कि यह हंडरेड परसेंट तय है कि आप को भी अटपटा लग रहा होगा। जैसे हमें बात होले-होले समझ में आई, वैसे आप भी समझ जाएंगे कि अंत की भी शुरूआत होती है। अंत का आरंभ भी होता है। द एंड का भी बिस्मिल्लाह होता है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

यहां कई ऐसे प्रचलित शब्द हैं जो अपन में घुलमिल गए हैं। रोजमर्रा का हिस्सा बन गए है। कई बार शब्दों का ऐसा जुड़ाव हो जाता है कि घुल कहीं नजर आता है-मिल कहीं। कई दफे तो दोनों का पता नहीं। कई बार तो शब्द चल जाते हैं.. कई बार पकड़ में आ जाते हैं। ऐसा सब जगह होता है। लोगबाग अखबार की दुनिया को सॉलिड मानते हैं, है भी। लेकिन लोचे वहां भी होते है। हमारे वरिष्ठनों ने हमें पहले पढने और फिर लिखने की सीख दी थी। हम उस पर चले भी। उसी सीख के कारण चार आखर लिख लेते हैं।

पहले पढने के बाद लिखने से उनका मतलब ये कि जो पढेगा वही लिख सकता है। जो अध्ययन करेगा। जो बांचेगा। जो पढेगा। जो अध्ययन करेगा उसका ज्ञान बढेगा। ज्ञान बढेगा तो वह उस ज्ञान का उपयोग बांटने में करेगा। आज के लड़कों में वो ‘हूंश नहीं है। हमने ऐसे-ऐसे क्राइम रिपोर्टर देख रहे हैं जो दुष्कर्म संबंधी समाचार में ‘जबरदस्ती बलात्कार लिखते रहे। कई बार समझाया। बार-बार समझाया। रे भाई बलात्कार अपने आप में जबरदस्ती होता है। बलात्कार प्रार्थना-पत्र देकर नही किया जाता। वो जब भी जबरदस्ती बलात्कार लिखते, हम एडिट करते समय ‘जबरदस्ती काट देते। लंबे समय बाद भाईजी को समझ में आया।


यह तो थी-अखबार वालों की बात। आम लोगों की बात करें तो ‘टीचरों का प्रचलन आम। महिला शिक्षक कई लोगों की जुबान पे चढा हुआ। हम ने कॉन्वेंट में पढे लोगों के मुंह से ‘गूमड़ा शब्द सुना है। कोई इसकी अंगरेजी करके बता दे। चलो हिंदी में ही बता दे। गूमड़ा आपणी राजस्थानी भाषा की कोख से निकला शब्द है शायद इसका ना तो अंगरेजीकरण हुआ ना किसी ने इसका हिन्दी संस्करण लोकार्पित किया।

इसी प्रकार सिगनल हमारी जुबां पर रचा-बसा। भले ही इसको हिंदी में आवक-जावक सूचक यंत्र कहा जावे, मगर जुबान पर सिगनल ही आया हुआ है। आप ने किसी की जुबान से चालक और परिचालक सुना। लोग सीधे में ड्राइवर और कंडक्टर ही बोलते हैं। एक जमाने के माट्साब आज सर और हमारे बखत की बहनजियां मैडम बन गई। कोई ‘चूरमा को हिंदी-अंगरेजी में ट्रांसलेट कर के बता दे। कुल जमा ऐसे कई शब्द हैं जो हम में रच-बस गए है। उनका प्रयोग-उपयोग होने पर हैरत नही होती मगर अंत भी और शुरूआत भी को लेकर अचकच होना लाजिमी है। ऐसा हो भी रहा है। भला अंत की शुरूआत कैसे हो सकती है। अंत के आरंभ कई से हो सकता है।

जानने वाले जानते हैं कि हथाईबाज हवा में बातें नहीं करते। चासे लेते हैं.. यह बात दीगर है मगर चर्चा ठीमर और ठावी करते है। उन्हें ऐसा लिखने का शौक थोड़े ही आया था। ऐसा हो रहा है तभी तो लिखा और आगे भी लिखेंगे। जब तक अंत का खात्मा नही हो जाता। तब तक लिखते रहेंगे। जो शुरू हुआ उसका अंत निश्चित है। बड़े-सयाने यही कहते रहे हैं। हमारे ग्रंथ-पुराणों में भी यही बात लिखी गई है। जीवन का अंत। बुराई का अंत। अति का अंत। झूठ-फरेब का अंत। मक्कारी का अंत। चार सौ बीसी का अंत। गुंडागर्दी का अंत। हमने गुलामी का अंत कर दिया अंत के आरंभ की तो बिसात ही क्या।

जानने वाले जान गए होंगे कि हथाईबाज क्या कहना चाहते है। नही जाने तो हम बताय देते हैं कि हमारी सभी अंगुलियां कोरोना की ओर। हथाईबाजों ने पिछले दिनों ‘वो घड़ी आ गई.. आ गई.. शीर्षक से छपी हथाई में कोरोना के अंत के लिए हमारे महान विज्ञानियों द्वारा बनाई गई वैक्सीन का जिक्र किया था। तब आखे देश को पता चल गया था कि 16 जनवरी से टीकाकरण शुरू हो जाणा है।

शनिवार से शुरू हो भी गया। थावर कीजै थापना। पहले चरण के बाद दूसरा-तीसरा-चौथा चरण। कोरोना ने हमें खूब सताया। खूब रूलाया। खूब तडफ़ाया। रोजी-रोटी। रोजगार-धंधा-पानी। शिक्षा। सामाजिक व्यवस्था सब चौपट करके रख दी। अब उसके अंत की शुरूआत हो गई है। कोरोना के अंत का आरंभ। मालिक से प्रार्थना है कि अंधेरा जल्दी छटे। सुनहरे दिन वापस आएं। हमें किसी के झांसे-बहकावे-भूलावे में नही आना है। जब भी नंबर आए टीका लगवा कर कोरोना के खात्मे में अपना योगदान दें। टीकाकरण के बाद भी सावधानी रखें। सजग रहें। सचेत रहें। इसी उम्मीद के साथ-‘जय भारत।