भाजपा ने आप को उलझाया या आप ने भाजपा को, कहां फंसा पेच?

विधानसभा चुनाव परिणाम
विधानसभा चुनाव परिणाम

गुजरात 24 साल से भाजपा का गढ़ है, लेकिन इस बार की जीत अलग है। इस चुनाव ने गुजरात को भाजपा का ऐसा किला बना दिया, जिसे अगले एक-दो चुनाव तक भेद पाना बाकी दलों के लिए बेहद मुश्किल होगा। यहां दो रिकॉर्ड भी बने हैं। पहला गुजरात के चुनावी इतिहास में किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी जीत है। दूसरा कांग्रेस का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। वहीं, हिमाचल में पेच फंसा हुआ नजर आ रहा है।

सबसे पहले जानते हैं कि गुजरात के लिए यह चुनाव क्यों महत्वपूर्ण था?

विधानसभा चुनाव परिणाम
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पहली वजह
इस चुनाव की सियासी अहमियत जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं। 2017 यानी गुजरात का चुनावी साल। तब पाटीदार आंदोलन को दो साल हो चुके थे। इसका असर यह रहा कि भाजपा 16 सीटों के नुकसान के साथ 99 पर आकर ठिठक गई। पार्टी के लिए राहत की बात बस यही थी कि उसका वोट शेयर दो फीसदी बढ़कर 50त्न हो गया था। इस वजह से 2022 के चुनाव पर सबकी नजर थी।

दूसरी वजह
सितंबर 2021 में भाजपा ने गुजरात में सीएम-डिप्टी सीएम समेत पूरा मंत्रिमंडल ही बदल दिया, ताकि सत्ता विरोधी लहर खत्म की जा सके। नतीजे बता रहे हैं कि उसकी यह रणनीति सफल रही।

तीसरी वजह
इस बार आम आदमी पार्टी ने 182 में से 181 सीटों पर उम्मीदवार उतारे। इस वजह से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया और सवाल उठा कि आप भाजपा की सीटें घटाएगी या कांग्रेस को कमजोर करेगी?

चौथी वजह
राज्य में मतदान के आंकड़ों ने चुनाव को और दिलचस्प बना दिया। पहले चरण में 89 सीटों पर 15 साल में सबसे कम मतदान हुआ। अब दूसरे चरण पर आते हैं। इसमें भी 93 सीटों पर 2017 की तुलना में पांच फीसदी कम मतदान हुआ।

गुजरात के इस चुनाव ने क्या रिकॉर्ड तोड़ा?

रुझानों के मुताबिक, गुजरात में भाजपा 150 सीटों के पार जा रही है। यह राज्य में अब तक किसी भी दल को मिलीं सबसे ज्यादा सीटों का रिकॉर्ड है। यानी 1985 में माधव सिंह सोलंकी के समय कांग्रेस को मिलीं सबसे ज्यादा 149 सीटों का रिकॉर्ड टूट रहा है। तब कांग्रेस को 55.5 फीसदी वोट मिले थे।
इस बार भाजपा का वोट शेयर 53 फीसदी से ज्यादा होने जा रहा है। यानी भाजपा ने अपने वजूद में आने के बाद गुजरात में 42 साल के दौरान सबसे ज्यादा वोट हासिल करने का रिकॉर्ड बना लिया है।
कांग्रेस को 32 साल में सबसे कम वोट मिले हैं। 1990 में जब भाजपा राम मंदिर आंदोलन चला रही थी, तब गुजरात में हुए चुनाव में कांग्रेस को 31 फीसदी वोट मिले थे। इस बार उसे 1990 से भी कम यानी करीब 26 फीसदी वोट मिल रहे हैं। उसे 50 से ज्यादा सीटों का नुकसान हुआ है।

3प्त आम आदमी पार्टी का क्या हुआ?

182 में से 181 सीटों पर चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी छह-सात सीटें जीतती नजर आ रही है। उसका वोट शेयर 13 फीसदी के आसपास है। उसने सबसे ज्यादा सेंध कांग्रेस के वोटों में लगाई है। आप का वोट शेयर यही बना रहता है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिलना तय है।

बड़ा सवाल : किसने-किसे उलझाया?

जब आम आदमी पार्टी गुजरात के चुनावी मैदान में उतर गई तो भाजपा ने राज्य में पूरा जोर लगा दिया। 30 सितंबर से देखें तो प्रधानमंत्री मोदी ने 39 रैलियों के जरिए गुजरात की 134 विधानसभा सीटों को कवर किया। वहीं, गृह मंत्री अमित शाह ने 23 रैलियों के जरिए 108 विधानसभा क्षेत्रों को कवर किया। इसी बीच, तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन के वीडियो सामने आते रहे, जिससे गुजरात में आम आदमी पार्टी बैकफुट पर आती दिखी और उसने बाद में दिल्ली पर पूरा जोर लगा दिया।

इससे दो निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। पहला- भाजपा ने आप को एमसीडी के चुनाव पर ही ध्यान केंद्रित करने पर मजबूर कर दिया। दूसरा- आप ने गुजरात के पहले चरण के मतदान से पहले शुरुआती जोर लगाकर भाजपा का ध्यान एमसीडी से हटा दिया। जब गुजरात में दूसरे चरण का मतदान होने वाला था, तब आम आदमी पार्टी अपना फोकस दिल्ली पर शिफ्ट कर चुकी थी।

यह कहा जा सकता है कि या तो आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के लिए गुजरात को हाथ से जाने दिया या गुजरात के लिए भाजपा ने दिल्ली कुर्बान कर दी।

किस तरह सत्ता में सबसे लंबे वक्त तक बने रहने की तैयारी में भाजपा?

भाजपा गुजरात में पिछले 24 साल से सत्ता में है। अगले चुनाव तक भाजपा यहां सत्ता में अपने 29 साल पूरे कर चुकी होगी। यानी वह आपातकाल के दौर के बाद लगातार सत्ता में रहने के वाम दलों (पश्चिम बंगाल में 34 साल) के रिकॉर्ड की तरफ आगे बढ़ रही है। साथ ही पांच साल बाद वह सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (सिक्किम में 24 साल) को पीछे छोड़ चुकी होगी।

गुजरात के नतीजे इस बात पर मुहर लगाते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात में कम से कम अगले लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव तक भाजपा को हराना किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

हिमाचल में कैसे फंसा पेच?

शांता कुमार, प्रेम कुमार धूमल, वीरभद्र सिंह के दौर के बाद हिमाचल में यह पहला चुनाव था, जिसमें पहाड़ी राज्य की दूसरी पीढ़ी के नेताओं के हाथों में कमान थी। ट्रेंड की बात करें तो हिमाचल में 1980 से 1990 तक कांग्रेस की सरकार थी। यानी कांग्रेस ने वहां लगातार दो चुनाव जीते। इसके बाद हर चुनाव में एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस जीतती रही। राजस्थान की तरह यहां भी हर पांच साल में सत्ता बदल जाने का रिवाज है। इस बार हिमाचल में कांग्रेस जीत को लेकर आश्वस्त नजर आ रही थी। यहां प्रियंका गांधी और प्रतिभा सिंह और प्रतिभा के बेटे विक्रमादित्य सिंह ने प्रचार में पूरा जोर लगाया।

अब तक के रुझान और नतीजे बताते हैं कि यहां कांग्रेस ने भाजपा को बहुमत हासिल करने से रोक दिया है। 68 सीटों वाले हिमाचल में सरकार बनाने के लिए 35 का आंकड़ा चाहिए। हिमाचल में कांग्रेस का वोट शेयर 42 फीसदी के साथ यथावत है। नुकसान भाजपा को हुआ है। उसका वोट शेयर 43 फीसदी के आसपास है, जो पिछली बार के 49 फीसदी से कम है।

हिमाचल में क्या बागियों के भरोसे बनेगी सरकार?

भाजपा ने इस बार 11 विधायकों के टिकट काट दिए थे। इनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया था। कई नेता टिकट मांग रहे थे। भाजपा से 21 नेता बागी हो गए थे, वहीं कांग्रेस से भी सात बागी उम्मीदवार थे। किसी भी दल को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में चुनाव जीतने वाले बागियों के पास सत्ता की चाभी रहेगी।

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