गर्भ में पल रहे शिशु को डेढ़ माह में छह बार चढ़ाया रक्त

महात्मा गांधी अस्पताल में जेनेटिक्स विशेषज्ञ ने किया उपचार

जयपुर । कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अब गर्भ में पल रहे शिशु की बीमारी का पता लगाया जा सकता है । यही नहीं, उसका सफलतापूर्वक उपचार भी किया जा सकता है। इसका एक उदाहरण शहर के सीतापुरा स्थित महात्मा गांधी अस्पताल के जेनेटिक्स विशेषज्ञ के जरिए सामने लाया गया। चिकित्सक ने एक महिला के पेट में पल रहे छह माह के शिशु में रक्त की कमी होने पर खून चढाकर जान बचाने में सफलता अर्जित की। उपचार के बाद महिला ने सुरक्षित प्रसव के बाद स्वस्थ शिशु को जन्म दिया दोनों अब स्वस्थ हैं। अस्पताल की जेनेटिक्स  मेडिसिन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ रेखा गुप्ता ने बताया कि हाइड्रॉप्स फिटेलिस नामक बीमारी मां के नेगेटिव ब्लड ग्रुप के कारण हो रही थी।

शिशु की विभिन्न जाँच में पता चला कि उसके खून की कमी ( एनीमिया) रोग था, पहले  इस गर्भस्थ शिशु की बीमारी की पहचान की गई इसके बाद फीटल मेडिसिन एन्ड  मेडिकल जेनेटिक्स टीम द्वारा गर्भस्थ शिशु के डेढ़ माह में छह बार रख चढ़ाया गया । इस प्रक्रिया को इंट्रायूटराइन फीटल ब्लड ट्रांसफ्यूज़न कहते हैं । इस प्रोसीजर में ब्लड बैंक प्रभारी डॉ राम मोहन जायसवाल, स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ जया चौधरी का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा । इतना ही नहीं शिशु के जन्म के बाद भी दो बार रक्त चढ़ाया गया। शिशु अब पूरी तरह स्वस्थ है।  

डॉ रेखा गुप्ता ने बताया कि जब मां का ब्लड ग्रुप नेगेटिव एवं पिता का पॉजिटिव होता है तब अक्सर इस प्रकार की बीमारी गर्भ में पल रहे शिशु में हो जाती है। जिससे एरीथ्रोसिन ब्लास्टोसिस फिटेलिस या हाइड्रॉप्स फिटेलिस  के कारण शिशु की जान का खतरा बना रहता है। जेनेटिक मेडिसिन, स्त्री रोग एवं ब्लड बैंक विशेषज्ञों की टीम द्वारा चिकित्सकों ने गर्भस्थ शिशु की गर्भ में ही बीमारी की जांच कर रख चढ़ाकर नया जीवन दिया गया । 

बच्चे के पिता अनिल ने कहा कि जब हमें सोनोग्राफी के बाद पता चला कि शिशु के पेट एवं फेफड़े में पानी भरा हुआ था तो हमने बच्चे को बचाने की आज छोड़ दी। क्योंकि पहले हमारा एक बच्चा पेट में ही मर चुका था। महात्मा गांधी अस्पताल के चिकित्सकों की टीम द्वारा हमारे शिशु को जीवनदान औऱ परिवार को खुशहाली दी है । इसके लिए हम अस्पताल के ऋणि है । भवदीय