घूस में उबाल

शीर्षक पढ़ के ऐसा लगेगा मानों इसे बाजार से निकाला हो। बाजार के माने आर्थिक और अर्थतंत्र से जुड़ी हुई खबरों में से। आगे चलकर इसमें एक और धारा फूटती नजर आएगी। पहली वही, जिसे हैडिंग बना के लटकाया गया और दूसरी मामलों से जुड़ी हुई। नंबर एक-घूस में उबाल और नंबर दो-घूस के मामलों में उछाल। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

देश और राज्यों के बड़े अखबारों में अर्थजगत से जुड़े समाचारों के लिए एक अलग पेज होता है। कुछ में दो भी हो सकते हैं। कुछ में आधे पेज दिए जाते हैं। जिस के पास जैसी सहूलियत वैसा स्पेस। अर्थशास्त्रियों की माने तो बाजार से जुड़े पन्ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं। वैसे हर पाठक का अपना टेस्ट होता है। खेल प्रेमी सबसे पहले किरकिट-हॉकी-फुटबॉल व अन्य खेलों से जुड़ी खबरों का वाचन करते हैं। सिने प्रेमी सिनेमा से जुड़ी हुई। किस हीरों की नई फिलिम कब रीलिज हो रही है। फलां गाने की रिकॉर्डिंग कहां हुई।

ढीमका फिलिम की शूटिंग क्यूं रूकी। कौन सी हिरोइन का किसके साथ पंगा हुआ। सियासत से जुड़े लोग राजनीति संबंधी समाचार सबसे पहले पढते हैं। किस पारटी में क्या चल रहा है। किस ने कौनसी पारटी छोड़ी। कौन किस पारटी में घुसा। किस पारटी में बगावत चल रही है। किस पारटी का कौन सा नेता किस नेते से नाराज हैं। पढोकड़े युवक शिक्षा से जुड़ी खबरों पे सबसे पहले नजर डालते हैं। कौनसी कॉलेज में दाखिले शुरू हो गए-किस में शुरू होने वाले हैं। किस में कित्ती कट ऑफ लिस्ट गई। किस विवि में कौन से नए कोर्सेज शुरू हुए। किस संस्थान में पढाई के साथ-साथ दीगर एक्टीविटिज को बढावा दिया जाता है। किस कोर्स में कितना स्कोप है। कई लोग अपराध जगत से जुड़ी खबरों को चटकारे लेकर पढते हैं।

हर पाठक का अपना अलग नजरिया होता है। कई जन सिरफ धर्म-आध्यात्म से जुड़ी खबरें देखते हैं। फलां संत कहां बिराजे हैं। किस महात्मा की भागवत कथा कहां चल रही है। कहां, कौन सा यज्ञ चल रहा है। धार्मिक आयोजन घर के आजू-बाजू हो तो उपस्थिति दर्ज करवा दी जाती है, नितर बाबजी के प्रवचन अखबारों में बांच लिए जाते हैं। बात करें व्यापारियों की तो उनकी नजर सबसे पहले ‘वाणिज्य दीप पर पड़ती है। यह जलतेदीप का आर्थिक समाचारों से जुड़ा पेज है। दीगर अखबारों में इन्हें ‘वाणिक विथी ‘अर्थतंत्र अथवा अन्य नाम दिए गए हैं। इन पृष्ठों पर अर्थ तंत्र-बाजार-शेयर और व्यापार संबंधी समाचार परोसे जाते हैं। किस कंपनी ने कौनसा वाहन लांच किया। कौनसा फोन मार्केट में आ रहा है।

कौन से बिल्डर्स कौनसी नई आवासीय कॉलोनी का लोकार्पण कर रहे हैं। इस पन्ने पे चाय से लेकर सोना-चांदी के भाव पढने को मिल जाते है। नून-तेल-लकड़ी के हालचाल जानने हैं तो इन पेजों को बांच ल्यो-पूरे बाजार की स्थिति साफ दिख जाएगी। किस के शेयर गिरे-किस में मजबूती आई। किस कंपनी के शेयर्स बाजार में उतरने वाले हैं। संबंधित समाचारों के शीर्षक भी जोरदार। शक्कर की मिठास फीकी पड़ी-गोटा उछाला। तेल ने तेल निकाला-सोने में उबाल। मिर्च और तीखी हुई-धनिया धीमा पड़ा। जब वहां उछल-कूद हो सकती है तो यहां क्यूं हीं। जब मसूर की दाल में उबाल आ सकता है तो घूस-रिश्वत में क्यूं नहीं। ऐसा तो है नहीं कि किसी को डराने के लिए उबाल या उछाल का सहारा लिया जा रहा है। किसी के दाम उछले या उबले तभी तो शीर्षक में तड़का मारा। घूस में भी तो यही हो रहा है।

राजस्थान में पिछले दिनों से घूसखोरी से जुड़ी खबरें अखबारों की सुरखियां बनी हुई है। कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा तब रिश्वत से जुड़े समाचार अखबार में ना हो। ऐसा लगता है मानों घूस लेने का मुकाबला चल रहा हो। हैरत की बात ये कि जो पकड़ में आए वो तकरीबन सारे लोग ऊंचे ओहदों पे बिराजे हुए। सरकार उनको हजारों-लाखों में पगार देती है। दुनिया भर के भत्ते और सुविधाएं अलग से। इसके बावजूद हाय धन.. हाय धन..। मानों सात पुश्तों के लिए जमा करने का टेंडर इनके नाम निकल गया हो। पांडु बिचारा समन वापस भेजने के बदले सौ-दो सौ ले ले तो हाकादडबड़ और यहां लाखों से नीचे बात ‘इज नहीं। क्या आईएएस और क्या आरएएस। क्या आईपीएस और क्या आरपीएस। राजस्व अधिकारी। अभियंता। डॉक्टर्स।

प्रिंसिपल। तहसीलदार। चेयरमेन। सीइओ और ना जाने कैसे-कैसे तुगमे वाले अफसर घूसबाजी में लिप्त। यह तो पकड़ीजे और मामले चौड़े आए। अंदरखाने ना जाने कितने अफसर-करमचारी वन-टू-का फोर करने में व्यस्त होंगे। हथाईबाजों ने चारों तरफ का जायजा लेने के बाद शीर्षक लटकाया। सौ टका खरा। हंडरेड परसेंट सही। किसी को शक हो तो खुली बहस कर सकता है।

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