घूसाधिकारी

हम इससे पहले भी कई बार सलाह दे चुके हैं। आइंदा भी देंगे। हमारा फर्ज सलाह देना और देते रहना है। कोई माने तो ठीक-ना माने तो मरजी उनकी। हम फीस-वीस तो ले नही रहे। ना कोई सेवा शुल्क वसूल रहे हैं। घूस की तो बात ही नही की। हां, नया पद सृजित करने का सुझाव जरूर दिया। शासन-प्रशासन चाहें तो नियुक्तियां निकाल सकते हैं। नियुक्तियों के नाम पर लाखों-करोड़ों कमाए जा सकते हैं। पहले कमाई और फिर उसी कमाई से तनखा-वनखा का इंतजाम हो जाएगा। हींग लगे ना फिटकरी-रंग भी आए चोखा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

एक हिसाब से देखा जाए तो ऊपर के एक ही पेरेग्राफ में हथाई का निचोड़ समाया हुआ है। दूसरा अध्याय जोडऩा इसलिए जरूरी कि उसकी वजह से हमें नया पद सृजित करने का आइडिया मिला। उनने अपनी वाहियात हरकत से साबित कर दिया कि वो दोहन के मामले में समानतावादी हैं। बड्डी मछलियां अपने हिसाब से जीमती हैं-हमारा खाता-बही अलग। हमारे पास कोई बंदा पेट्रोलपंप आवंटन की सिफारिश करवाने के लिए तो आने से रहा। हमें कोई किसी काम के लिए लाखों-करोड़ों-क्यूं देगा। देने वाले हजारी लाल-सैंकड़ा प्रसाद। हम उसी में राजी। और फिर लेना ही है तो क्या तेली देखणा और क्या सुथार। क्या श्रमिक देखणा और क्या मेट। इसका जूस बाद में।

पहले रायचंद-सलाहसिंह के किरदार का खुलासा करना जरूरी। आज जब पेटरोल रिकॉर्ड तोड़ महंगा हो रहा है। आज, जब डीजल के दाम खजूर के पेड़ पर पहुंच गए हैं। आज, जब रसोई गैस के दामों ने लकड़ी-कोयले की याद दिला दी। आज, जब महंगाई आसमां छू रही है। आज, जब आम जरूरत की वस्तुएं दिन-ब-दिन महंगी होती जा रही हैं। ऐसे मौसम में राय देना साव सस्ता है। सस्ता क्या फोकट में ल्यो। कोई नही मांगे तो भी दे द्यो। सलाह देणे में कोई कंजूसी नहीं। मनुहार कर-कर के द्यो। कोई भले ही इस पर फट्टे में टांग अड़ाने का टेग टांगे मगर सलाह देने में तनिक भी मूंजीपणा नहीं। पर हथाईबाजों की सलाह एकदम ठोस और ठावी। लोग तो लेणे के लिए चला के आवे हैं। घर के बाहर लाइण लाग्गे से, और यहां एक के साथ पांच सलाह फ्री का ऑफर चल रहा है।

हमारी सलाह कल भी थी। आज भी है। हो सकता है-कल भी कायम रहे। हम जानते हैं कि सलाह पर अमल नहीं होणा है। ना होवे तो ना होवे। कल को मोदीजी-शाहजी-अशोक जी ये ना कह सके कि किसी से सलाह नही दी। हमने तो दे दी, तुम ना मानो तो तुम्हारी मरजी। आज कल राज्य में घूसखोरों की पकड़मपकड़ाई जोरों पे चल रही है। ऐसा लग रहा है कि मानो घूस लेने और घूसखोरों को पकडऩे का मौसम चल रहा है।

तुम मुझे घूस दो-मैं तुम्हारें पंगे सुलटाऊंगा। जवाब में-तुम घूस लोगे तो हम तुम्हें टे्रप करेंगे। कोई दिन ऐसा नहीं जा रहा जब कहीं ना कहीं कोई ना कोई घूसखोर-एसीबी के हत्थे नही चढ रहा। सवाल ये कि जब इतने मामले चौड़े आ रहे हैं तो अंदरखाने कितनी ‘खाऊपंथी चल रही होगी। इसी को लेकर तो सलाह दी थी।

हमारी केंद्र और राज्य सरकारों से सलाह है कि उन्हें विभागवार ‘घूसाधिकारी के पद सृजित कर देेने चाहिए। जब विशेषाधिकारी हो सकते हैं। लेखाधिकारी हो सकते हैं तो घूसाधिकारी क्यूं नहीं। इससे न घूस के नियम का रास्ता खुल जाएगा। खुल्लेखाले में सेवा शुल्क दो और काम करवाओ। घूसाधिकारी बकायदा सेवा शुल्क की रसीद काटेगा उसको दिखाने पर संबंद्ध विभाग का अधिकारी या करमचारी काम में किसी प्रकार के रोडे नहीं अटकाएगा।

उसका कारण ये कि जितने की रसीद कटेगी उसका एक हिस्सा संबंधित अधिकारी का। दूसरा करमचारी का। तीसरा घूसाधिकारी का और बाकी की रकम सरकारी खाते में। ऐसा हुआ तो सभी खुश। फरीग वैसे भी तो घूस दे रहा है। नियमन हो गया तो रास्ता और आसान हो जाएगा। सभी पक्ष खुश। देने वाला राजी-खुशी देगा और हिस्सा लेने वाला राजी-खुशी काम करेगा। सरकार के खजाने में भी इजाफा होगा। यदि कभी जन प्रतिनिधियों की बाड़ाबंदी करनी पड़े तो सेवा खाते से खरचा करने में सहूलियत रहेगी। दलालीप्रथा भी खल्लास हो जाएगी।

कई लोगों को घूस में समानतावादी के तड़के अचकच हो रही होगी। होणी भी वाजिब है। रिश्वत में कैसी समानता और कैसा समाजवाद। तो भाई बात ये कि घूसखोर सब को दुहते हैं। उनके लिए क्या ठेकेदार और क्या श्रमिक। क्या मोटी मुरगी और क्या चूजा। रेट काम और आसामी देख कर। पंच-सरपंच अपने हिसाब से जीमते हैं। आईएएस-आरएएस और पीएस अपने तरीके से। जब वो लाखों ले सकते हैं तो हजारीमल बनने का हक तो उनका भी है।
ताजा हवा बाड़मेर के सालरिया क्षेत्र से आई।

वहां एसीबी ने सरपंच के बेटे को श्रमिकों से घूस लेते गिरफ्तार कर लिया। यह राशि कुछ मजदूरों से हफ्ते के रूप में मांगी गई थी। दलाल ने बीच पड़ कर रकम कम करवा दी। इस बीच दलाल अपने काम से बाहर चला गया तो सरपंच पुत्तर खुद वसूली करने पहुंच गया। इस बीच मजदूरों ने इसकी शिकायत एसीबी को कर दी और सारा कूंडा हो गया। यही कार्य अगर कायदे से होता तो किसी को कोई परेशानी नही होती। कायदा तब तय हो जब घूसाधिकारियों के पद सृजित होणे हैं। ऐसा होणा नही है। ऐसे में वही होणा है जो होता आया है। जो पकड़ा गया वो घूसखोर वरना सारे के सारे सफेदपोश।

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