घूस दो – स्टे लो

अगर वो बात सही है तो उससे प्रेरणा लेनी चाहिए। अब तक तो यह परंपरा दुकानदारों के लिए ही थी, क्यूं ना इसका उपयोग लाल बस्ताधारी संप्रदाय के लिए शुरू कर दिया जाए। पहले प्रयोग-फिर उपयोग। इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए तो -सिंचाई कर दी जाए वरना खल्लास। जहां इतने प्रयोग होते है, वहां एक और सही। जरूरी नहीं कि उसे कायम रखा जाए। आगे बढ़ाना या ना बढ़ाना परिणामों पर निर्भर। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

बात सही है के आगे ‘अगर इसलिए लिखा कि वहम है। कारण ये कि लोगों को बातें बनाकर परोसने में मजा आता हैं। पुराने लोग ठावे हुआ करते थे। ठीमर हुआ करते थे। मजाल पड़ी जो जुबान से कोई हलकी बात भूल से भी निकल जाए। अपने यहां एक बात आम है कि किसी को अपना दर्द बताने से मन हलका हो जाता है। ऐसा होता भी है। सच तो यह है कि मेरी खाज मेरे को ही खिणनी है। मेरा दर्द मुझे ही सहना है।

उनकी तकलीफ उन्हें ही भुगतनी है। उनका दुख उन्हें ही भोगना है। कहने-सुनने से मन का बोझ कुछ कम हो जाता है। हो सकता है दर्द-दुख की दवा भी मिल जाए। पुराने बखत के लोग बंद रास्तों में से कोई कोना-खांचा तलाश लेते थे। अगर किसी ने अपने मन की बात कह दी तो दूसरे से तीसरे के पास नहीं पहुंचती। अब तो बातें नहीं रही। अगर कोई किसी को अपना समझ के अंदर के छाले दिखा दे तो पूरे मौहल्ले में चावा। छालों में पांच पच्चीस छोले खुद की ओर से मिला के परोसने वालों की संख्या भी कम नहीं। कई लोग तो बिना बात की बात बनाकर परोसने में पीएचडी है। इसीलिए ‘अगर लिख कर उसे इनवरटेड कोमा में बंद किया।

ऐसा इसलिए किया कि वैसा हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है। नहीं हुआ अथवा नहीं हो सकता के माने कि नारी ब्रांड पुरूष ने अफवाहें फैला रखी है। इस नए ब्रांड पर सवाल उठ सकते है। एक से बढकर ब्रांड एक सुने। आले से आले सुने। वापरे भी मगर ऐसा ब्रांड पहली बार सुना। असल में यहां की बातें वहां और वहां की बातें यहां करने-कराने पर एक टेम में नारीशक्ति का एकाधिकार हुआ करता था। हमारी गुवाडी में एक पंचायती बुआ रहती है। ऐसी बुआएं लगभग हर टोले-मौहल्ले में चांतरियों पर बैठकर प्रमाण-पत्र वितरित करती मिल-दिख जाएंगी। अगर किसी के यहां शांति है। सुखर चैन है। प्रेम-सद््भाव है।

उसपे नजर लगानी हो तो पंचायती बुआ को चार दिन वहां भेज द्यो। पांचवे दिन जेठाणी-देराणी में रार ना हो जाए तो हमें बताइ्यो। पांचवे दिन सास-बहु और भाई-भाई में झगडा ना हो जाए तो हम भी यहीं है और आप भी। अब कई पुरूष भी उनके नक्शे कदम पर चलने लग गए है। उन्हें भी लुगाईगिरी करने की आदत पड़ चुकी है। कई लोग इस लत में इतने ग्रस्त हो गए कि उन्होंने चुगलीपंथी में आधी आबादी को पीछे छोड दिया। लिहाजा उन्हें नारी ब्रांड पुरूष की संज्ञा दी गई। ऐसे लोगों के कारण ही बात के आगे ‘अगर लगाया गया। रही बात, बात की तो बात ये कि लाल बस्ताधारियों को भी रेट लिस्ट लगा देनी चाहिए। पहले दुकानदारों के लिए ऐसा करना अनिवार्य था। वस्तुओं के भाव बोर्ड पर प्रदर्शित किए जाते थे। कारखानों और फैक्ट्रियों में भी कुशल-अकुशल श्रमिकों की संख्या दर्शानी पड़ती थी। दूध के चौहटे में आज के भाव उकेरे जाते है। वैसा वहां करने में क्या हर्ज है।

अब कोई पूछे कि ऐसा क्यूं तो जवाब मिलेगा कि ऐसा यूं कि वहां बकायदा रेट तय की हुई थी। उस केस में राहत के लिए इत्ती घूस। इस केस में राहत के लिए उत्ती। हथाईबाज देख रहे है कि इन दिनों घूसखोरी करने वालों की जोरदार पकडम-पकडाई चल रही है। खास कर आरएएस अधिकारियों की ‘ओती आई हुई है। आईपीएस और आईएएस भी लपेटे में आ रहे है। ताजा मामला बाडमेर जिले के गुडामालानी का। वहां का एसडीएम घूस लेता पकडा गया। घूस लेना और पकडा जाना नया नहीं है। कोई पकडा जाता है कोई आगे से आगे ले देकर सेटिंग कर लेता है। अफवाह ये कि इस बंदे ने रेट तय कर रखी थी। स्टे के पांच हजार और दस हजार। इसके माने पुराने और नियमित ग्राहक रूपी वकीलों से पांच हजार और नए से दस हजार। पैसे दो – स्टे लो।

यहां बात आती है ‘अगर की। ‘अगर यह सही है तो क्यों ना रेट लिस्ट टांग दी जाए। स्टे के इत्ते। एनओसी के उत्ते। जमानत के इत्ते। अग्रिम जमानत के उत्ते। समझ में नहीं आता कि जब सरकार उन्हें मोटी तनखा दे रही है। उसके बावजूद ये लोग हजार-पांच हजार के लिए अपना जमीर और ईमान क्यूं बेच रहे है। ऐसे लोगों को तो घर बिठा देना चाहिए। आपका क्यां विचार है!