चला (ना) पाक, पाक बनने!

ना सोचना है, ना विचारना है। अपनाने की बात तो दूर की कोड़ी। वो भले ही अतीत को दफनाने का समय आ जाने की राग छेड़े और छेड़ता रहे। हमने जहरीले पड़ोसी पे विश्वास नहीं करना है तो नहीं करना है। सोचेंगे तुम्हें माफ करें कि नहीं.. का सवाल नही उठता। हम छाछ के जले आग निगल सकते हैं। हम बर्फ के जले आग निगलने का माद्दा रखते हैं मगर गले मिल कर जेब काटने वालों पे विश्वास करना अब हमारे बस की बात नहीं। बहुत प्यार कर लिया.. बहुत लिहाज कर लिया। अब अगर किसी ने हम पर गंदी नजर डाली तो आंखें निकाल कर कंचों की तरह खेलने से बाज नही आएंगे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

ऊपर के इस एक पेरेग्राफ में बहुत कुछ छुपा है। साफ और स्पष्ट भी है। संदेश है तो खुल्ला खेल खिलाड़ी का भी। सुधि पाठकों के लिए ‘क्लू ही काफी है। जो समझ गए उन्हें समझाने की जरूरत नहीं। जो नही समझे उनके लिए हम हैं ना और जो समझना ही ना चाहें उसका कोई इलाज नहीं। पर हमें समझाना आता है। हमें झाड़ फूंक करना आता है। टोने-टोटके करने आते हैं। अंतर-मंतर-जंतर करना आता है। हाथ हलका करना आता है। इलाज करना आता है। ऑपरेशन करने में तो हमारा कोई सानी नही। आखी दुनिया कहती है कि कुत्ते की दुम कभी सीधी नही होती। हम भी कहते हैं। हम भी जानते हैं-पहचानते हैं। साथ में परमानेंट इलाज करना भी हमें बखूबी आता है। ना रहेगा बांस.. ना रहेगी बांसुरी.. वाली कहावत किसने कही थी? हमारे पुरखों ने। हम उस पर चल सकते हैं। जब पूंछ ही नहीं रहेगी। तो कैसी सीधी और कैसी टेढ़ी। लेकिन हमारे संस्कार ऐसा करने की इजाजत नही देते वरना क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा।

शुरूआती पेरेग्राफ में जिन बातों का जिक्र है, उनमें जहरीला पड़ोसी मुख्य। उससे जानने वाले जान गए। पहचानने वाले पहचान गए कि कौन क्या कहना चाहता है। यह थी उसकी एकमेव पहचान बाकी रही छाछ- बर्फ-अतीत-दफनाने और गंदी नजर डालने वालों की आंखें निकालने की बात तो हम इससे चार कदम आगे भी जा सकते हैं। हमें आंख-जुबान-प्राण निकालना बखूबी आता है-मगर हम ठहरे अहिंसा के पुजारी। सनद रहे-अहिंसा का मतलब कायरता नही है। हम आगे-आगे इसका उदाहरण दे चुके हैं। घर में घुस के ठोक के आ चुके हैं। जरूरत पडी तो आइंदा भी वैसा करने से बाज नहीं आएंगे। यह बात फरेबी पड़ोसी अच्छी तरह जानता है तभी तो अतीत को दफनाने की राग छेड़ रहा है मगर हमें उसकी गिड़गिड़ाहट पर भी विश्वास नहीं। जैसा वो कमीना-वैसा उसका उस्ताद।

बात पाकिस्तान की। जहरीला और फरेबी पड़ोसी का सुनते ही भाईसेण जान गए कि इशारा उसी की तरफ है। गंदी और सूगली सोच वाले इस पड़ोसी मुल्क ने हमारे साथ कैसे-कैसे खेल खेले, आखी दुनिया जानती है। आज पूरा विश्व पाक की नापाक और ओछी हरकतों से परेशान है। अगर कोई पूछे कि भारत ने दुनिया को क्या दिया तो जवाब इतना जोरदार कि कॉपी भर जाए। पूरक कॉपी भर जाए। भारत ने दुनिया को प्यार दिया। शांति और सद्भाव का पैगाम दिया। मौहब्बत दी। सहयोग दिया। हर देश के सुख-दुख में भारत उसके साथ खड़ा नजर आता। आज जब पूरी दुनिया कोरोना संक्रमण से ग्रस्त है, भारत सहयोग रूपी वैक्सीन बांट रहा है। यही सवाल (ना) पाक के लिए पूछा जाए तो जवाब मिलेगा-आतंक दिया। आतंकवादी दिए। आतंकवाद दिया। आतंकवाद की फैक्ट्रियां दी। आज भारत दुनिया की आंख का तारा और (ना) पाक दुनिया की आंख्ंा की किरकिरी।

जाहिल और जहरीले पड़ोसी ने भारत को अस्थिर करने के भतेरे प्रयास किए मगर हम आन-बान और शान के साथ खड़े थे। खड़े हैं और खड़े रहेंगे जबकि पड़ोसी अतीत को दफना कर आगे बढने की बात करने का ढोंग कर रहा है। हम तो पिछले लंबे समय से ऐसा कह भी रहे हैं और कर भी रहे हैं। वो युद्ध मे हारा। छद्मयुद्ध में हारा। सर्जिकल स्ट्राइक में ठुका। एयर स्ट्राइक में पिटा फिर भी नहीं सुधरा। आज वो अतीत को दफनाने की बात कर रहा है तो इसमें कोई राग है। प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर सेनाध्यक्ष कमर जावेद बाजवा तक का यही राग। कल तक जो हम पर परमाणु बम बरसाने की धमकियां देते थे, आज वही लोग लस्ती-पस्ती का नाटक कर रहे हैं। पर हमें उस पर एतबार नहीं। भले ही वो पाक-साफ बनने की कोशिश करने का नाटक करे। दुनिया यही तंज कसेगी-चला (ना) पाक, पाक बनने।