
पांच बिंदुओं में जानें इस नतीजे के मायने
गांधीनगर। गुजरात में हुए विधानसभा चुनाव की मतगणना जारी है। शाम तक नतीजे घोषित भी कर दिए जाएंगे। अब तक आए रुझानों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है। इस बार कांग्रेस 20 सीटों से कम पर सिमटते हुए दिखाई दे रही है। यह देश की सबसे पुरानी पार्टी का राज्य में अब तक यह सबसे बुरा प्रदर्शन है। इससे पहले, 1990 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे नीचे गिरा था। तक पार्टी को सिर्फ 33 सीटें मिली थीं। साल 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 50 सीटें, 2007 में 59 सीटें मिली थीं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं।

वहीं, भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर की धारणा को धता बताते हुए अपने पिछले रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है। भाजपा इस बार गुजरात विधानसभा की कुल 182 सीटों में 150 पर जीत हासिल करते हुए दिखाई दे रही है। भाजपा को इससे पहले साल 2002 के चुनाव में 127 सीटें मिली थीं, लेकिन इसके बाद हुए चुनावों में पार्टी की सीटें घटती गईं। 2017 के चुनाव में भाजपा को 99 सीटें मिली थीं।
भाजपा की प्रचंड जीत से कांग्रेस की दो दशक बाद गुजरात की सत्ता में वापसी करने की उम्मीद को तो धक्का लगा ही है, राज्य में पार्टी के फिर से उभरने की उम्मीदें भी लगभग खत्म होती दिख रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के बीच ऐसी चर्चा है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी (आप) के चुनावी मैदान में उतरने से कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा है। इसका सीधा फायदा पिछले दो दशक राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा को मिला।
कांग्रेस की शर्मनाक हार को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा और बहस शुरू हो गई है। आइए इन पांच बिंदुओं से देश की सबसे पुरानी पार्टी की हार के कारणों को समझते हैं…
1. तीसरे दल के रूप में आप की एंट्री
गुजरात में अब तक सिर्फ दो दल- कांग्रेस और भाजपा, चुनाव में प्रमुख रूप से आमने सामने होते थे। लेकिन इस बार के चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की एंट्री से मुकाबला त्रिकोणीय हो गया था। साथ ही आप ने चुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी। केजरीवाल ने न सिर्फ सभी 182 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, बल्कि बड़े पैमाने पर चुनाव रैलियां भी कीं। माना जा रहा है कि इसका सीधा असर कांग्रेस के वोट बैंक पर पड़ा। वहीं, भाजपा के परंपरागत मतदाता उसके साथ जुड़े रहे। कांग्रेस का वोट विभाजित होने से भाजपा की सीटें और बढ़ गईं।
2. राहुल गांधी की कम रैलियां
गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में ही व्यस्त थे। उन्होंने गुजरात में पार्टी के लिए चुनाव प्रचार न के बराबर किया। कांग्रेस ने अपने प्रमुख राहुल गांधी की राज्य में एक-दो जनसभाएं ही आयोजित की थी। इसके उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने गृह राज्य में डेरा डाल लिया था।
3. सीएम चेहरे के बिना चुनाव लडऩा
गुजरात में पार्टी का कोई फायरब्रांड नेता या बड़ा चेहरा न होने का भी नुकसान कांग्रेस को हुआ। साथ ही पार्टी ने किसी नेता को सीएम पद का उम्मीदवार भी नहीं घोषित किया था।
4. कमजोर संगठन
गुजरात में कांग्रेस लंबे समय आंतरिक कलह और संगठनात्मक चुनौतियों से जूझ रही है। विधानसभा चुनाव से पहले कई प्रमुख नेताओं ने कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया था। इन नेताओं में युवा पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर व अन्य शामिल थे। कांग्रेस के इन नेताओं को खोने से गुजरात में पार्टी संगठन को नुकसान पहुंचा।
5. पीएम मोदी पर विवादित बयान
गुजरात में दूसरे चरण की वोटिंग से पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक विवादित टिप्पणी पर काफी विवाद हुआ था। भाजपा ने इस मुद्दे को जोरशोर उठाया और इसे प्रधानमंत्री मोदी की छवि व गुजरात से जोड़ कर पेश किया। जानकारों का मानना है कि खरगे की प्रधानमंत्री मोदी पर की गई टिप्पणी से पार्टी को नुकसान पहुंचा। खरगे ने कथित तौर पीएम मोदी की तुलना रावण से की थी।
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