ऐसे चमत्कार को धिक्कार

अपने यहां एक जुमला आम था- है भी ‘चमत्कार को नमस्कार। कई बार उसे बदलने का मन करता है। चमत्कार यदि अच्छा और सकारात्मक हो तो नमस्कार-प्रणाम-पगै लागणा सब कुछ करना चाहिए और यदि कालिख पोतणे वाला, समाज विरोधी या राष्ट्र विरोधी हो तो जुमले में बदलाव जरूरी हो जाता है। हमारे हिसाब से उसे ‘चमत्कार को धिक्कार कहना ठीक रहेगा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

एक जमाने में भारत को ओझा-गुणियों का देश माना-समझा जाता था। यहां एक से बढ कर एक-आले से आले पुरूष-महापुरूष हुए। चमत्कारिक पुरूष हुए। आप ने किसी अन्य देश में लोह पुरूष के बारे में सुना। रूस-अमेरिका-इंग्लैंड-जापान या अन्य किसी राष्ट्र में किसी को लोहपुरूष की उपाधि मिली हो तो बता द्यो। किसी अन्य मुल्क की किसी महिला को आइरन लेडी का खिताब मिला हो तो गिना द्यो।

लोहपुरूष या आइरन लेडी के माने यह नही कि वो लोहे के बने हों। हार-पैर लोहे के। पेट-पीठ लोहे की। मुंह-माथा लोहे का। पूरा शरीर लोहे का। वरन ये कि उनके इरादे मजबूत। उनकी सोच सॉलिड। कथनी और करनी में रत्ती भर भी फरक नही। कहा सो कर के दिखाया। जिस काम की तेवड़ ली उसे पूरा करके छोड़ा। सरदार वल्लभ भाई पटेल को लोहपुरूष और इंदिरा गांधी को आइरन लेडी की उपाधि दी हुई है। उनके कार्य चमत्कारिक थे, तभी तो नवाजा गया वरना किसे-क्या पड़ी जो खिताब बांटता।

कहते हैं कि पुराने जमाने में हमारे ऋषि-मुनि हिमालय में जाकर तपस्या किया करते थे। तपस्या में इतने लीन हो जाते कि शरीर में पक्षी घोंसले बना देते। कीड़े-मकाड़े रहवास शुरू कर देते। बिलधारी जीव बिल खोद देते मगर उनकी तपस्या नही टूटती। यह भी अपने आप में चमत्कार था। कहा यह भी जाता है कि उस समय के लोगों की उम्र सैंकड़ों-हजारों साल हुआ करती थी। यह भी अपने आप में चमत्कार। श्रीराम और श्रीकृष्ण जैसे अवतारी अपने यहां हुए। लोक देवता बाबा रामदेव सरीखे अवतारियों ने लोगों का उद्दार किया। हनुमान जैसे भक्त अपने भारत में हुए। यह भी चमत्कार। हनुमान जैसे महाबली अपने यहां हुए। यह भी चमत्कार। बात आखी दुनिया की करें तो जैसा आकाश अपने यहां वैसा अमेरिका-रूस में। जैसा आसमां भारत में, वैसा दूसरे मुल्कों में।

बिना किसी खंभे के इतना विशालकाय आसमां टिका हुआ है, यह अपने आप में चमत्कार नही तो और क्या है। हम घर की छत पर आरसीसी डलवाते बखत खंभे खड़े करवाते हैं और नीला आसमां बगैर किसी सहारे पे खड़ा है। यह अपने आप में चमत्कार है। खगोलविद जानते हैं कि चांद-सूरज कहां से आते है। कहां-कहां का चक्कर निकालते हैं। तारे कैसे टिमटिमाते हैं। आम-लोगों के लिए तो यह सब चमत्कार ही तो है।

अपने यहां चमत्कारिक युग पुरूष हुए। नेता हुए। हुतात्माएं हुई। ज्ञानी हुए। विज्ञानी हुए। लिखाकड़ हुए। महात्मा हुए। जोगी-फकीर हुए। उनके परचों को आज भी याद किया जाता है। भजनों और लोक गीतों में उनकी व्याख्या की जाती है। उन चमत्कारों को नमस्कार किया जाता है। मगर आज चमत्कारों के नाम पे जो सूगला और गंदा खेल खेला जा रहा है, उन पर धिक्कार। उन्हें एक बार नहीं-दस बार धिक्कारणीय कहा जाए तो भी कम। सौ बार लानत-हजार दफे धिक्कार।

सोचने वाले सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या हो गया जो चमत्कार पर सोच बदल गई। ऐसा नही है। अगर असल में कोई चमत्कार हुआ है तो नमस्कार करने में कोई ‘मेणी नही। बारम्बार नमस्कार, मगर कलंकित करने वालों के लिए रत्ती भर भी जगह नही।

आज अपने यहां कई ऐसे खेल खेले जा रहे हैं जो ‘चमत्कार को धिक्कार की श्रेणी में आते हैं। सड़क बनी नही और लाखों-करोड़ों के बिल उठ गए। पौधे रोपे ही नही और बिल उठ गए। मकान बने ही नही और आवंटित हो गए। मिट्टी हटी ही नही और भुगतान हो गया। मृतक आए और वोट दे के चले गए। अमर आत्माएं मनरेगा में कार्य कर रही है। यह सब चमत्कार ही तो है। इन में एक चमत्कार और जुड़ गया।

बाड़मेर के गुढ़ामालानी क्षेत्र के कंडी की ढाणी में टापरे में रह रहे एक किसान के नाम से 18 करोड़ के फर्जी बिल कट गए। क्षेत्र के एक व्यापारी ने जीएसटी में फर्जीवाड़ा करने के लिए यह चमत्कार करके दिखाने की कोशिश की मगर भांडा फूट गया। हथाईबाजों का कहना है कि लोग भले ही ऐसे कृत्यों को चमत्कार को नमस्कार से जोडऩा चाहें, मगर हमारी नजर में धिक्कारणीय थे-हैं और रहेंगे।