दसवां वेद: कर देखा सै कोय

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कर देखा सै कोय

  • कोड़़ सयाणप लाख बुध, कर देखो से कोय।
  • अणहोणी होवै नहीं, होणी हो सो होय।।

सब कोई अपनी लाख बुद्धि और करोड़ चतुराई करके देख ले, इस संसार में कभी अनहोनी नहीं होती है, होनी ही होती है।

इस संसार में कभी अनहोनी नहीं होती है

और जो होनी होने को होती है, वह होकर रहती है। दो किसानों ने साझे में खेती की।

उन्होंने मिल कर खेत का सारा काम जुताई, निराई, लटाई आदि किया। फसल अच्छी हुई। खलिहान अनाज के ढेर से भर गया। लेकिन बंटवारे के समय उनमें झगड़ा हो गया।

खाएगा तो वही जिसके वह पहले से ही निश्चित है

खलिहान में अनाज का ढेर लगा था, लेकिन उसको बांटे कौन? संयोग से उधर एक साधु निकला। उसने किसानों को झगड़ते देखकर सारी बात पूछी।

लेकिन खेत के दोनों मालिक किसी समझौते पर नहीं पहुंचे तो अंत में साधु ने कहा कि अनाज के प्रत्येक दाने पर उसके खाने वाले का नाम दर्ज रहता है।

ऐसी हालत में लडऩा मूर्खता है। भले ही कोई व्यक्ति अनाज से अपना भंडार भर ले, लेकिन उसे खाएगा तो वही जिसके वह पहले से ही निश्चित है।

साधु का यह वक्तव्य एक किसान को बड़ा अटपटा लगा। उसने अनाज के ढेर में से एक दाना उठाया और उसे अपनी हथेली पर रखकर साधु से पूछा कि तब बताइए, इस दाने पर किसके नाम की छाप है? साधु कोई ऐसा वैसा नहीं था, बड़ा पहुंचवान साधु था।

उसने उस दाने को बड़े ध्यान से देखा और फिर किसान से कहा कि यह दाना तो एक मुर्गी खाएगी। यह दाना तो मुर्गी नहीं, मैं खाऊंगा।

किसान ने साधु का कथन झूठा सिद्ध करने के लिए उसी समय वह दाना अपने मुंह में डाल दिया।

लेकिन वह दाना किसी कारण से किसान के गले में अटक गया और नीचे नहीं उतरा।

उसने दाना मुंह से वापस निकालने की बहुत चेष्टा की, लेकिन फिर भी वह सफल नहीं हुआ।

साधु को झुठलाने के प्रयास में किसान संकट में पड़ा गया।

साधु सारी स्थिति देख रहा था। जब किसान को गले में पीड़ा अनुभव होने लगी तो उसका साथी उसे गांव के हकीम के पास ले गया।

वह साधु भी उनके साथ हो लिया। वे तीनों हकीम के पास पहुंचे। आस पास के इलाके में इसी हकीम का इलाज चलता था।

किसान ने उसके सामने अपना कष्ट बताया। हकीम ने उसे छींक आने की सूंघने की दवा दी।

दवा सूंघते ही किसान को जोर से छींक आई और वह अनाज का दाना उसके गले से निकल कर हकीम के आंगन में गिरा।

वहां एक मुर्गी खड़ी थी, जो उस दाने को तत्काल चोंच से उठाकर खा गई। इस घटना को देखकर दोनों किसान चकित हो गए।

साथी किसान की पीड़ा तो मिटी ही, लेकिन साथ ही उनका अनाज के लिए झगड़ा भी मिट गया। दोनों ने साधु को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और सम्मानपूर्वक विदा किया।