शैतान सदन

हमें लगता है कि कई लोग बैठे-बैठे साजिशें ही रचते हैं। ऐसे लोगों के कार्य को कानूनी जामा पहना दिया जाए तो उनके आगे पद चस्पा हो सकता है। ‘साजिशकारी साजिशों को वैधानिक मान्यता मिलने के बाद पाठ्यक्रम प्रारंभ हो सकते है। कहीं तीन वर्षीय पाठ्यक्रम तो कहीं पंचवर्षीय। किसी कॉलेज में सर्टिफिकेट कोर्स तो किसी यूनिवर्सिटी में डिग्री कोर्स। पण ऐसा होणा नही है। होना भी नहीं चाहिए। दिखती दीदें मक्खी कौण गिटे, लिहाजा तुम साजिश रचो-हम तुम्हारे भांडे फोड़ेंगे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
किसी मसले-मुद्दे पे सलाह देना बड़ा आसान है और उस सलाह को हकीकी जामा पहनाने के लिए दस बार सोचना पड़ता है। बीस बार विचारना पड़ता है। तीस बार मंथन किया जाता है।

चालीस बार चर्चा की जाती है। उसके बाद निर्णय होता है। इतनी कसरत करने के बावजूद फैसला लागू किया जाए, पक्का नही है। कई बार सारी मेहनत-मशक्कत ताक पे रख के निर्णय निरस्त कर दिया जाता है। या कि जिस मुद्दे पर निर्णय लिया जाना है उसपे लाल लाइन फेर दी जाती है। सलाह-मश्विरों पर हथाईबाज इससे पहले भी कई बार चर्चा कर चुके हैं। पेटरोल महंगा पर सलाह साव सस्ती। डीजल महंगा मगर राय फोकट में। दैनिक जरूरतों की हर वस्तु महंगी पण मश्विरा बोरी भर के ले ल्यो। कोई ना मांगे तो भी तैयार। तिस पे तुर्रा ये कि हमारा काम सलाह देना है।

मानो या मानों आप की मरजी। कोई उनसे पूछो कि भाई हम ने आपसे राय कब मांगी थी जो आप दे रहे हों। जब तुम्हारी सलाह तुम्हारे घर-परिवार वाले भी नहीं मानतें हैं तो हमारी तरफ से हरी-झंडी मिलने का सवाल ही नहीं उठता। हमारे घर में भी रायचंद-मश्विरानंद बैठे हैं। तुम कौण होते हो फट्टे में टांग अड़ाने वाले। मगर उनकी सेहत पे कोई फरक नहीं पडऩे वाला। उन्हें पंचायतीगिरी दिखाए बिना रोटी नहीं भाती। खा भी लें तो हजम नही होती। उनके लिए बाकी काम बाद में, थ्हारी-म्हारी पहले।

हमने सुना था कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। यह जुमला किसने उछाला। कब और किस प्रसंग पे उछाला। ईसा पूर्व उछाला या ईसा बाद उछाला इसकी विगत तो ठा नहीं मगर इतना जरूर जानते हैं कि यह जुमला अरसों से कूद रहा है-बरसों से मचल रहा है। हो सकता है इसके रचयिता ने किसी के दिमाग का अध्ययन किया हो। यह भी हो सकता है कि किसी शैतान का पीछा करके यह पता लगाया हो कि उसका अड्डा कहां है। जैसे ही वह किसी खाली दिमाग में घुसा-जुमला तैयार हो गया।

जानने वाले जानते है कि ऐसा कुछ नही है है भी तो आगे चल के दो धाराएं। जिसका ऊपरी हिस्सा खाली होता है उसे येड़ा कहा जाता है। मानसिक दिवालिया-पागल-बुद्व और ना जाने कैसे-कैसे शब्दों से पुकारा जाता है। ऐसा है तो उनके दिमाग में शैतानों द्वारा घर बसाने के बावजूद वो येड़ापंथी क्यूं करते हैं। दिमाग में शैतानसदन बन जाने के बाद उन्हें होशियार बन जाना चाहिए मगर ऐसा नही होता। इससे तो यही शक होता है कि हर खाली दिमाग में शैतान सदन ही होता।

हथाईबाजों ने इस जुमले को पलटा तो अलग ही मेकअप नजर आया। रूप अलग। सिणगार अलग। लगा कि खाली दिमाग वालों पे जो आरोप लगते आए हैं, वो निराधार और तथ्यहीन हैं। सारी तोहमतें बेदम है। सारे इल्जाम बेबुनियाद हैं। सच तो यह है कि भरे दिमाग शैतान सदन बनते जा रहे हैं। जिन का ऊपरी हिस्सा खाली है वो बिचारा क्या शैतानगिरी करेगा और जिन के दिमाग ठसाठस भरे हैं वो शैतानखोरी लांघ कर साजिशगिरी में लगे रहते हैं। ऐसा हम नहीं कहते। उनकी साजिशों से परदा उठने पर यह तथ्य उजागर हुए। जेएनयू में भारत विरोधी नारे किसने लगाए? देश विरोधी साजिशें रचने वालों की गिरफ्तारियां हुई तो कोई इत्ता पढा-लिखा निकला तो कोई उत्ता। आतंकवादी भी ठोट-गवार नही-पढे लिखे। एमबीए और इंजीनियरिंग किए बच्चे उग्रवादियों की टीम में भरती हो गए। उनका भरा हुआ दिमाग खाली कर दिया गया वो बात अलग है तभी तो खाली दिमाग वालों को शैतान कहने पे हम को तो घोर एतराज है।

हम ने तस्करी के नए-नए तरीकों का खुलासा होते पढा-सुना। चावल की भूसी के नीचे लदा नशीले पदार्थ का जखीरा। दूध के टैंकर और रोगी वाहन के जरिए तस्करी। किसी ने गुप्त स्थान पर छुपा कर सोना लाने की कोशिश की तो किसी ने विमान के शैचाालय मे रख कर। यह कुबद खाली दिमाग वालों की नही हो सकती। नया मामला मुंबई से आया। वहां एक डाक साब केक में हशीश मिला कर बेचते पकड़े गए। डाकटर बाबू खुद बेकरी में ड्रग की मिलावट वाला केक बनाते थे। वो डाक्टर भी थे और बेकरी वाले भी। ड्रग के शौकीन बंदे आर्डर करते। डाकसाब बेकरीमैन बन के हशीश मिला केक बनाते और मनचाहा दाम वसूलते। छापा पड़ा तो असलियत चौड़े आ गई। बेकरी में से दस किलो हशीश ब्राउनी बरामद की गई।

अब आप ही बताइए कि डाकसाब का दिमाग खाली था जो शैतान ने डेरा डाल दिया। हमारा सिर्फ यह कहना कि खाली दिमाग शैतान सदन हो, जरूरी नहीं। भरा दिमाग भी शैतान सदन हो सकता है। यूं कहें कि छलकता दिमाग ही शैतान भवन होता है तो भी अतिश्योक्ति नहीं।

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