पगे लागणां पे बट्टा

बातें भतेरी। जितने मुंह उतनी बातें। कई बार तो एक जुबान से भांत-भांत की बातें निकाल दी जाती है। ऐसा होने पर जितने मुंह उससे ज्यादा बातें वाला टोटका लागू हो जाता है। यह जंतर अगर आधी आबादी पे लागू हो जाए तो क्या कहने। ऐसा होने पर बातें ही बातें। ऐसे में जुबान गौण हो जाती है और हवा में बातें ही बातें तैरती नजर आती है। हवा के साथ बातें गूंजती सुनाई पड़ती है। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
हथाईबाज इससे पहले भी बातों का बखान कर चुके हैं। बातें भी ऐसी-वैसी नहीं वरन उनको ऐसी सूची में डाला कि एकबारगी होजकोज होणा तय।

आज अगर किसी चीज के सस्ती होने की बात सुनाई पड़ जाए तो हजारों-लाखों जोड़ा कान उस तरफ मुड़ जाएंगे। आप ने गांवों से शहर आने वाले प्याज से भरे ट्रेक्टर यहां-वहां खड़े अवश्य देखे होंगे। हो सकता है खरीददारी भी की हो। टे्रक्टरों पर बाजार की अपेक्षा सस्ते प्याज बेचे जाते हैं। ऐसा लोग मानते हैं। ऐसा होता भी है तो बाजार में सौ रूपए के पांच किलो प्याज तो ट्रेक्टर पे छह किलो। याने कि एक किलो ज्यादा। इस चक्कर में कई दफे टे्रक्टर वालों के आस-पास भीड़ जमा हो जाती है।

वहां एक किलो प्याज ज्यादा जो मिल रहे हैं। बाजार में बीस रूपए किलो तो यहां पर सोलह-साढे सोलह रूपए। एक किलो पे साढे तीन-हजार रूपए का फायदा। इस सस्ताई के अंदर घुसा जाए तो भाव बाजार से मिलते-जुलते ही निकलेंगे। बाजार में कांदे साफ और छांटछूट कर लिए जा सकते हैं मगर टे्रक्टर वाले ऐसा नही करने देते। वो ढेर में ताकड़ी घुसा के भरने के बाद तोल के थैले में डाल देते हैं। ट्रेक्टरों में ऊपर तो साफ और बड़े प्याज दिखते हैं मगर नीचे छोटे। घर ले जा के देखोगे तो लगभग एक किलो प्याज खाने योग्य नहीं मिलेंगे तो भाव वही पड़े जो बाजार में चल रहे हैं मगर सस्ते के चक्कर में सारी मशक्कत।

मगर हथाईबाजों ने जो सूची तैयार की उसमें वाकई में सस्ती और सस्ती से सस्ती चीजें शुमार है। कोई चाहें तो उन पर फोकट का ठप्पा भी ठोक सकते हैं। बातें बनाना साव सस्ता। रंग चौखा आए या ना आए यह बाद की बात पण ना हींग लगा ना फिटकरी। ऐसा करने वाले यह नहीं सोचते कि उन की बनाई बात कई के घर में चिंगारी डाल सकती है। समझदार लोग तो मुस्करा के रह जाते हैं, तकलीफ उन लोगों को होती हैं जो सुनी-सुनाई बात पे एतबार कर बैठते हैं। लिहाजा हमारा आग्रह है कि भाड़ में जाए ऐसा सस्तीवाड़ा। अपन को ऐसे लोगों और उनकी बनाई गई बातों से कोसों दूर रहने का है। पण हथाईबाज जो बात कर रहे हैं उसमें से कई धाराएं फूटती नजर आ रही है।

अपने यहां चरण छूना। पगै लागणां करना। पायं लागी करना संस्कारों में शुमार है। बच्चे-मोट्यार बड़े-बुजुर्गों और वरिष्ठजनों के चरण छूते हैं, बदले में जीवता रो..। खूब उन्नति करो..। खूब पढाई करो..। खूब तरक्की करो..। सरीखे आशीर्वाद मिलते हैं। चरण छूने को आदर करने की अंतिम सीढी माना जाता है। कई लोग प्रणाम करके ओछी काट देते हैं। कई लोग राम-राम सलाम और नमस्ते सा कह के इतिश्री कर लेते हैं। चरण स्पर्श करने के माने श्रद्धा से नतमस्तक हो जाना।

अगर पगै लागणां का दुरूपयोग होने लग जाए तो कैसा लगेगा। अगर पांव छूने की आड़ में धोखा मिलने लगे तो कैसा महसूस होगा। इसको पलटें तो दूसरी कहानी नजर आ सकती है। किसी ने कहा-यह पगै लागणां करने के नाम पे धोखा है। कोई बोला-इससे तो चरण छूने से विश्वास उठ जाएगा। कोई पगै लागणां करेगा तो बदले में धक्के भी मिल सकते हैं। परे हट सुनने को मिल सकता है। कोई खूसट हुआ तो ‘आगो बळ भी कहा सकता है।
‘पांय लागी ‘ पे इतनी बातें बनती देख हैरत होणा लाजिमी है। क्यूंकि हथाईबाजों ने मसला उठाया है तो यकीनन इसके पीछे कोई ठोस वजह रही होगी वरना आदर-सत्कार पर चासे लेणे का सवाल ही नहीं उठता।

दागी किस्सा आपणे जोधपुर के गोल्फ कोर्स क्षेत्र का। वहां बने एक चबूतरे पर आस-पास के क्षेत्र की बुजुर्ग महिलाएं बैठ कर समय व्यतीत करती है। यह रोजमर्रा की बात। कल-परसों एक युवक आया और वहां बैठी एक अम्मा के पांव छूकर किसी का पता पूछा और मौका देखकर उनके गले में पहनी सोने की चैन लूट कर फरार हो गया। हांलांकि वहां लगे सीसीटीवी कैमरों की मदद से वो लुटेरा देर-सवेर पकड़ा जाएगा। वो बाद की बात। फिलहाल बातें बननी शुरू हो गई कि लुटेरा संस्कारी था जिसने पहले मां ‘सा के पांव छूकर क्षमता मांगी फिर लूट को अंजाम दिया। किसी ने इसे पगै लागणा करने के नाम पे धोखा बताया। किसी ने कहा अब लोग चरण स्पर्श करवाने से बिदकेंगे। कुल जमा बातों का बहना जारी। मां सा और उनके परिजन उस लुटेरे के पकड़ में आने के इंतजार में, जिसने पगै लागणां पर बट्टा लगा दिया।

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