छूट का समय जंचा नहीं

भाई लोग राजी हो रहे थे कि राहतों का पिटारा खुलेगा। डेढ महिने की घरबंदी से छुटकरा मिलेगा। दुकानदार भी ‘मुळके। व्यापारी भी मुस्कराए मगर मजा नही आया। खोदा पहाड़ निकली चूहिया, वह भी बेहोश। बेहतर तो यह होता कि सुबह छह बजे की जगह नौ बजे खुल जा सिम.. सिम और दोपहर दो बजे बंद हो जा सिम.. सिम.. हो जाता। कुल जमा छूट का मजा नहीं आया। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

करीब डेढ महिने की बंदी के बाद बुधवार को प्रदेश के सारे बाजार खुल से गए। यहां खुल ‘से गए का उपयोग जानबूझ कर किया गया है। सारे बाजार खुल जाते तो ‘से का उपयोग नही किया जाता। किया तो इसके पीछे कोई ठोस कारण जरूर रहा होगा। कारण ये कि सारे बाजार खुले नहीं। खुले भी तो देरी से। जब तक ग्राहकों का आना शुरू होता तब तक वापस बंदी का समय।

हमारे लोग, खासकर जोधपुर वाले कैसे हैं। आखी दुनिया जाणती है। हम आधी रात के बाद तो सोते हैं और सुबह लेट उठते हैं। घरबंदी ने तो हमें और ज्यादा आलसी बना दिया। ना कहीं आणा- ना कही जाणा। आम दिनों में शहरपनाह में देर रात तक हथाईयां चलती है। अब ‘डागळे का सहारा। दिन को खाए और पड़े शाम को थोड़ी देर ताश कूट लिए। रात को टीवी देखदुखा कर छत पे चढ गए। डीनर तिपड़े पर। देर रात कभी अंत्याक्षरी तो कभी-नृत्य प्रतियोगिता। सोते-सोते एक-डेढ-दो बज जाते हैं।

सुबह नौ-दस बजे से पहले उठना नहीं। उठकर करेंगे भी क्या। ना बच्चों को स्कूल-कॉलेज जाना ना हमें ऑफिस। कई बार तो बिस्तर छोड़ते-छोड़ते ग्यारह बज जाते। नित्यकर्म से निपटे तब तक एक-डेढ बजना तय।

घरबंदी की दिनचर्या की विगत इसलिए बांची कि बांचणी जरूरी थी। क्यूंकि इस के तार इन दिनों से मजबूती से गूंथे हुए नजर आते है। कोरोनाकाल से पैदा हुई घरबंदी से पहले की दिनचर्या और घरबंदी के बाद चल रही अथवा चली दिनचर्या में खासा फरक है। हथाईबाजों और उनके टेस्ट के लोगों को छोड़ के सब का अपना टाइमटेबिल है। सुबह इत्ती बजे उठना। निपटना। हिनान हंपाडा करना।

नाश्ता या भोजन कर दफ्तर निकल जाना। शाम को लौटना। उसके बाद के समय का अपना रूटीन। बच्चों की अपनी फिक्स सारिणी। कोई स्कूल। कोई कॉलेज। कोई कोचिंग तो कोई जॉब पे। वापसी के बाद का अपना हिसाब-किताब। घरबंदी ने सारा शैड्यूल बिगाड़ के रख दिया। जो लोग छुट्टी.. छुट्टी करते थे। जो लोग दफ्तरों से फल्लू मार कर घर भाग जाया करते थे। आज वो घर मे पड़े-पड़े अघा गए। ज्यादा सदस्य और छोटे घरवालों के लिए यह स्थिति और ज्यादा समस्याजनक। बाहर जा सको नहीं-घर में स्थान सीमित।

बुधवार से कुछ छूट मिलनी प्रारंभ हुई। सोचा था कि सरकार नरमी बरतेगी। छूट और राहतों का दायरा विस्तृत होगा, मगर ऐसा कुछ नजर नही आया। अलबत्ता पांच घंटे जरूर बजे मगर उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हुई। पता नहीं सरकार को कौन ऐसी सलाह देता है और पता नहीं सरकार उन सलाहों पर अमल कैसे कर रही है। ना लूण-ना लक्खण। ना मिर्च-ना मसाला। हमें ऐसी सलाह फोगट में मिले तो भी नहीं लेवेे और सरकार को सलाह देने वाले लाख-डेढ लाख-दो लाख प्रतिमाह तनखा उठा रहे हैं। लानत है ऐसी सलाह पे। अमल में लाने वालों को भी भूंडे। दांत भींच के कटके।

सरकार ने दुकानें-व्यवसाय-बाजार सुबह छह से ग्यारह बजे तक खोलने की छूट दी है। पहले यह रियायत चुनिंदा दुकानों के लिए थी बुधवार से सारी दुकानें खोल दी गई। कुछ को छोड़ के सभी से बंदिशें हटा ली मगर समय का पहरा बिठा दिया। यह पहरा हमें पसंद नहीं आया। आप ही बताइए सुबह-सवेरे छह बजे कौन सा ग्राहक आएगा। अव्वल तो भाईसेण आठ-नौ बजे से पहले उठने वाले ही नहीं। दूध-दवा और साक-सब्जी को छोड़ द्यो, बाकी की दुकाने नौ बजे खुली। साफ-सफाई कर पूजा की।

पानी की मटकी भरी जित्ते दस बज गई। दो ग्राहक निपटाए जित्ते ग्यारह बज गई और पांडु की पीपियां शुरू। निगम के हरकारे सड़कों पे। कही दुकान सीज हो गई तो जित्ता कमाया नही उत्ता वो ले जाएंगे। हमारे हिसाब से समय को सुबह 9 बजे से लेकर सांय चार-पांच बजे तक कर दिया जाए तो बेहतर है। आज की छूट के दौरान सड़को-गलियों में रौनक जरूर दिखी, मगर दुकानदारों के हाथ निराशा ही लगी।

हथाईबाजों को सोशल मीडिया पर शहर के सेवाभावी इकबाल बैंड बॉक्स का वो तंज ठीक लगा जो उन्होंने छूट के समय को लेकर कसा। कहा-‘सभी दुकानदार भाई कल से तौलिया, साबुन, पेस्ट, ब्रश एवं चड्डी बनियान साथ लेकर दुकान पर आए और नहा धोकर दुकानदारी करने के बाद ग्यारह बजे वापस घर चले जाए। गहलोत सरकार द्वारा ग्राहक घर पहुंचा दिए जाएंगे।
शहर के लगभग सभी व्यापारी इकबाल साहब के साथ। ऐसे में हथाईबाज उनसे अलग कैसे रह सकते हैं। सरकार को छूट का समय बदलने की जरूरत है।

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