डाक्टर भुलैया

समझ में नहीं आया कि उन्हें कौन सा नाम दें.. कौनसी उपमा दें और कौन सी संज्ञा दें। पता है कि उनका नाम हमारे बदलने से बदलने वाला नहीं। इसके लिए भी औपचारिकताएं निभानी पड़ती हैं। उसके बावजूद अदलने-बदलने में समय लगता है, क्यूं कि हमें तत्काल बदलना है लिहाजा डॉ भूलैया। डॉ भूलमल। डॉ भूलाराम। डॉ भूलसिंह। डॉ भूलचंद। डॉ तौलिया। डॉ तोला अथवा डाक्टर भूल खान किया जा सकता है। पहले उनका मूल नाम और ब्रेकेट में अथवा उर्फ करके हमारा दिया नाम। मसलन-डाक्टर खंगारसिंह उर्फ डाक्टर तौलिया। आगे-चल कर उर्फ में डाक्टर गोज-डाक्टर सीरिंज अथवा डाक्टर कैंची भी जोड़ा जा सकता है।

शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे। भूल की भूलैया यहां मुख्य किरदार निभा रही है। क्यूं कि हमने उनके किरदार पर नाम का ठप्पा लगाया है तो यह बताना निहायत जरूरी कि नाम बदलने के लिए कुछ औपचाकिताएं पूरी करनी पड़ती है। बाबा शैक्सपियर ने कहा था-‘नाम में क्या रखा है। हमारा यह कहना कि नाम में बहुत कुछ रखा हैं.. नाम तो नाम सरनेम उससे भी ज्याद भारी। बाबा ने ऐसा क्यूं कहा-वो जाणे, पर इतना जरूर है कि यदि नाम में कुछ नहीं होता तो उन्होंने क्या रखा है के नीचे खुद का नाम क्यूं उकेरा। उपदेश दे के नीचे अज्ञात लिख देते और छुट्टी। हां, हम उस उपदेश को मानते हैं जिसमें कहा गया कि गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो, गुलाब तो गुलाब ही रहेगा।

नाम में क्या रखा हैं में लोचा। इस पर हम पहले भी पत्रवाचन कर चुके हैं। वो कहते हैं नाम में क्या रखा है-हम कहें नाम तो नाम पूंछ रूपी सरनेम में भी बहुत कुछ रखा है। राहुल गांधी के पीछे से गांधी हटा के देख ल्यो। सवाल खड़े हो जाएंगे। कौन राहुल.. कौन सा राहुल..। अमित शाह के पीछे से शाह गायब कर दो। लोग पूछने लग जाएंगे। कौन सा अमित। माथुर या गुप्ता या भाटी। तो भईया नाम नाम है और सरनेम सरनेम।


कई लोग अपना मूल नाम बदल कर नया नाम रखे देखे जाते हैं। कई का नाम गलती से गलत लिखिज जाता है। कई लोग मूल नाम की जगह प्रचलित नाम लिखवा देते हैं। मूल नाम कालूराम और प्रचलित नाम कालिया। प्रचलित नाम मनरेगा के मस्टरोल में तो चल जाता है। मगर स्कूली दस्तावेज में लोचानाक। सरकारी दस्तावेज में भी समस्याएं आती है। कई बार गलती से मिस्टैक हो जाती है।

नाम राम लाल और दस्तावेज में रामदास। ऐसे में स्टांप पर हलफनामा देकर अखबार में इश्तिहार देना पड़ता है। मेरा नाम राम बाबू है, आधार कार्ड में राम बाबा अंकित हो गया है। दोनों नाम मेरे ही हैं, भविष्य में मुझे-रामबाबू के नाम से जाना-पहचाना जाए। शादी के बाद नारी शक्ति का सरनेम बदल जाता है। शादी से पहले शर्मा और शादी के बाद भारद्वाज। वो भी अखबार में नाम परिवर्तन की सूचना देती हैं, मगर हम तो फोकट में नाम बदल रहे हैं। नाम भले ही डॉ खंगारदेवी हो, हम ने डा. भूल-भूलैया कर दिया तो कर दिया।


भूल हो जाना मानवीय प्रवृति है। इंसान गलती का पुतला है, उससे गलतियां होती रहती है। देश-दुनिया में ऐसा कोई बंदा नहीं जिसने कभी कोई गलती नही की हो, या जिससे कभी कोई भूल ना हुई हो। मगर कुछ लोगों द्वारा की गई गलतियां आगे चल कर बहुत बड़ा बखेड़ा कर देती है। सावधानी हटी-दुर्घटना घटी। लिखाकड़ों की गलती अर्थ का अनर्थ कर देती है।

अखबारों में एक्सीडेंटल अथवा अन्य दर्दनाक घटनाओं संबंधी समाचारों के आखिर में एक लाइन होती है-‘पोस्टमार्टम करने के बाद शव मृतक के परिजनों को सौंप दिया गया। अब देखो गलती का गलता। यहां परिजनों को गौर से पढना पड़ता हैं, वो इसलिए कि ‘प की जगह ‘ह प्रिंट हो गया तो अर्थ का अनर्थ। इसी प्रकार वकील-इंजीनियर और डॉक्टर्स की भूल-गलती बड़ा बखेड़ा कर देती है। इंजीनियर की गलती पुल-इमारत ध्वस्त कर सकती है। वकील की भूल किसी निर्दोष को सजा भुगतवा सकती है और डाक्टर की भूल किसी को रामप्यारा कर सकती है। गनीमत है कि यहां वैसा कुछ नही हुआ, मगर डाक्टर की भूल से मरीज ने जो दर्द झेला वह उसे ताजिंदगी सालता रहेगा।

हवा कानपुर, यूपी के कल्याणपुर क्षेत्र से आई। वहां एक नर्सिंग होम में महिला डॉक्टर ने सिजेरियन डिलीवरी कर शिशु को तो निकाल लिया मगर तौलिए की तरह का एक सर्जिकल पेड प्रसूता के पेट में ही छोड़ दिया। वह पेड उसके पेट में 77 दिन पड़ा रहा और वह दर्द झेलती रही। दर्द हद से ज्यादा बढ गया तो परिजन उसे दूसरे अस्पताल लेकर गए। वहां अल्ट्रासाउंड करने पर सच्चाई का पता चला।

बाद में पेड रूपी तौलिया पेट से बाहर निकाला गया। अगर यह भूल किसी पुरूष डाक्टर से होती तो नाम भूलाराम क्यूं कि यह भूल महिला डाक्टर से हुई है तो उसका नाम भले ही सुरैया हो, हथाईबाजों ने डॉ भूलैया कर दिया। ऐसे में एक लतीफा याद आ गया। पहले मरीज के पेट में कैंची रह गई। उसे निकाला तो गोज छूट गई। पेट फिर फाड़ के गोज निकाली तो मरीज ने कहा-‘डाकसाब.. टांकों की जगह चेन लगा दो तो ठीक रहेगा।