आठ के….

अगर सुधि पाठकों से शीर्षक के आगे छोड़ा गया स्थान भरने को कहा जाए तो लगभग सभी का उत्तर एक सरीखा होगा-‘ठाठ। इस पर दो नजरें। पहली शक की नजर ये कि कहीं सामूहिक नकल तो नहीं चली। सबसे ज्यादा सुधि पाठकों ने लिख-कह दिया ‘ठाठ तो उसकी देखा देखी सब ने भर दिया। दूसरी दृष्टि ये कि जब उनके हिसाब से ‘ठाठ सही उत्तर है तो वही भरेंगे। खाट-टाट-बाट के फेर में क्यूं पडऩा। हो सकता है उत्तर पे तीसरी नजर भी गढी हो। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

परीक्षा में सवालों के जवाब हू-ब-हू मिलना शक पैदा करते हैं जबकि थानों-चौकियों और कोर्ट-कचहरियों में इसका उलटा होता है। परीक्षा के दौरान नकल-कारतूस। टीपाटापी और पूछताछ आम बात है। आप भले ही कितने ही पहरे बिठा ल्यो। कहीं ना कहीं तो लोचा रह ही जाएगा। उस एक छेद के कारण दूसरों का भी भला हो जाता है। उदास होते हैं पढोकडे बच्चे, उन्हें उनकी मेहनत पर पानी फिरने का खतरा और जिन्होंन-े पूरे सत्र के दौरान दो चार बार भी किताबों नोट्स के हाथ नहीं लगाया, उनके मजे। अब तो खैर यूपी-बिहार में कमी आई है वरना एक जमाने में ये दोनों राज्य नकलों के गढ हुआ करते थे। कभी यूपी विजेता-कभी बिहार तो कभी दोनों संयुक्त विजेता।

हथाईपंथियों का अनुभव है कि ऐसी कोई परीक्षा नहीं जिसमें टीपाटापी ना चलती हो। हां, सैना और सुरक्षा बलों से जुड़े इम्तिहानों और प्रेक्टिकल के बारे में कह नही सकते, वरना लगभग सारे एग्जाम से थोड़ा बहुत चलता है। कभी परीक्षक ढील देते हैं। सेंटर में किसी नेते या अफसर का बाइक-मोबाइल छाप छोरा परीक्षा दे रहा हो तो पूरे सेंटर की ना सही कम से कम उन की भी बल्ले-बल्ले होणा तय है जो उसके कमरे या हॉल में बैठकर परीक्षा दे रहे होते हैं। किसी परीक्षक या स्कूल-सेंटर वालों के मिलने वालों के बच्चों के साथ परीक्षा दे रहे बच्चों को भी छूट का फायदा मिलता है। परीक्षक अपने चेहते की मदद करें तो दूसरे बच्चों की भी करनी पड़ती है वरना हंगामा तय समझो। कुल जमा आटे में नमक चलता आया है। चल रहा है और चलता रहेगा। यूपी-बिहार में लूण की रोटियां पकाई जाती थी, वहां भी अब कसावट-रूकावट आ रही है। इसके बावजूद शक हैं कि कहीं ‘आठ के… में सामूहिक नकल तो नही चली है।

ऐसे सवालों के जवाब हमने हिन्दी द्वितीय के परचे में खूब दिए। आप ने भी दिए होंगे। उसमें निबंध लिखवाया जाता। प्रार्थना पत्र लिखवाया जाता। विलोम शब्द पूछे जाते। पर्यायवाची शब्द पूछे जाते। रिक्त स्थानों की पूर्ति करवाई जाती। गुरूजी ने गाय पर इतनी बार लेख लिखवाया कि आज भी याद है। प्रार्थना पत्र इतनी बार लिखवाया कि रात को घूप नींद से जगा के पूछ ल्यो-पूरा पन्ना भर देंगे। खाली जगह भी खूब भरी। आज उसी की याद आ गई।

आज-कल याद पर भी खुदगरजी का मुलम्मा चढता जा रहा है। लोगबाग मतलब साधने के लिए ही किसी को याद करते हैं। हम ने कागद कारे करने थे, सो हिंदी द्वितीय के बहाने लेख से लेकर प्रार्थना पत्र और विलोम शब्द-खाली जगह भरों को याद कर लिया वरना किस ने कितनी खाली जगह भरी। जगह खाली मिलें तो भरे। यहां तो उतर भीखा म्हारी बारी वाली स्थिति बनी हुई है। जहां नजर डालो वहां भीड़। ऐसे में अगर खाली जगह भरने का कागजी मौका मिला है तो इसके लिए हथाईबाजों का धन्यवाद।

जहां तक अपना खयाल है आठ के आगे खाली छोड़े गए स्थान में सारे प्रतियोगी पाठक ‘ठाठ ही भरेंगे। जैसे दो दुनी चार। जैसे दस का दम वैसे आठ के ठाठ। आठ के ठाठ का लोकार्पण पिछले बरसों मे हुआ। पहले राज्य में दारू की दुकाने देर तक खुली रहती थीं। पिछले बरसों में समय आठ बजे कर दिया। यह बात दीगर है कि कोने-खड्डे से आधी रात तक दारू मिल जाती है। कागजों में जब से समय निर्धारित हुआ तभी से आठ के ठाठ हो गए। शौकीन लोग फटाफट अपना काम-धाम निपटा के या बीच में छोड़कर आठ बजे से पहले पव्वा-अद्दा या बोतल ले आते उसके बाद ठाठ।

पर हथाईबाज जिस आठ के ठाठ की बात कर रहे हैं। उसपे विराम लग गया। चित्तौडग़ढ़ पुलिस ने ऐसे फरजी आरटीओ का भांडा फोड़ कर दिया जहां पिछले आठ साल से फरजी डीएल और आरसी बनाने का काम हो रहा था। पंद्रह मिनट में ड्राइविंग लाईसेंस तैयार। आधे घंटे में आरसी ले ल्यो। कीमत एक से दो हजार रूपए। इन फरजियों ने 18-20 राज्यों में डीएल-आरसी बना कर चला दिए। पुलिस ने भांडा फोड़ा इसलिए बधाई मगर सवाल ये कि आठ साल तक क्या पांडु ऊंघ रहे थे। मामू सो रहे थे या कि ‘बंधी बंद कर दी इसलिए कार्रवाई हुई वरना फरजीवाड़ा आठ साल और चलता। हथाईबाजों का कहना है कि भले ही लोग आठ के ठाठ मान रहें हो पर यहां अट्ठे पे पैबंद लग गया। आइंदा ऐसे आठ के ठाठ ना हो, इसके लिए छक्के-पंजे सावधान।