अजीब तरीका : जापान में अपराध कर ठिकाना ढूंढ रहे बड़े और बुजुर्ग

अभी कुछ समय पहले जापान के वाकायामा प्रांत के कैनन शहर की पुलिस ने एक 83 साल की महिला को पकड़ा। आरोप था कि उन्होंने एक सुपरमार्केट से खरीदे गए अंडों के डिब्बे पर पहले से लगी कीमत वाली पर्ची (प्राइस लेबल) को बदला। ताकि वे मर्जी और सुविधा से कम भुगतान कर सकें।

पुलिस ने जब उन्हें पकड़कर सवाल किए तो उन्होंने माना कि वे पहले दो बार उत्पादों के प्राइस लेबल से छेड़खानी कर चुकी हैं। हालांकि पुलिस ने उन्हें सख्त चेतावनी देकर छोड़ दिया। उनके खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया क्योंकि उन्होंने जो उत्पाद खरीदे थे, तीनों बार में उनकी कुल कीमत महज 500 येन (लगभग 356 रुपए) थी। मामला दर्ज नहीं हुआ, इसलिए उनका नाम भी सामने नहीं आया।

इस कहानी के अगले सिरे तक जाने से पहले दो-तीन छोटी-छोटी जानकारियों पर गौर करना जरूरी है। पहली- जापान सरकार ने 2005 में अपना एक कानून बदला था। इसमें छोटे-मोटे अपराधों को गंभीर श्रेणी से बाहर कर दिया था। ताकि पुलिस और सरकारी वकीलों पर अनावश्यक बोझ कम किया जा सके। अपराधों की दर कम की जा सके। आंकड़ों में यह कमी दिखने भी लगी है।

दूसरी बात- जापान में ऐसे सुपरमार्केट और दुकानें आदि काफी हैं, जहां कैश काउंटर होता है पर पैसे जमा करने वाला कर्मचारी नहीं होता। ग्राहक वहां रखे हैंड स्कैनर से खुद ही उत्पादों के प्राइस लेबल स्कैन कर भुगतान करते हैं। और तीसरी अहम बात- जापान में बुजुर्गों की आबादी तेजी से बढ़ रही है। अब यह कुल आबादी के 25 फीसदी के आसपास है।

साल 2050 तक लगभग 30 फीसद हो जाएगी, ऐसा सरकारी अनुमान है। अब आगे की कहानी। विशेषज्ञ बताते हैं कि जापान सरकार द्वारा कानून में बदलाव किए जाने के बाद अपराध (7,48,559) और गिरफ्तारी (1,92,607) के आंकड़े द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 2019 में सबसे निचले स्तर पर रहे हैं।