कृषि कानून वापस लेने से किसानों में खुशी

कोटा। केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लेने पर किसानों ने खुशी जताई है। किसान सर्वोदय मंडल के पदाधिकारियों ने आतिशबाजी की एक दूसरे का मुंह मीठा कराकर खुशी का इजहार किया। मंडल के जिला संयोजक अब्दुल हमीद गौड ने कहा कि तीनों कृषि कानून किसानों के के हित में नहीं थे। अगर तीनों कृषि कानून लागू हो जाते तो लघु व सीमांत किसान बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मजदूर बन जाते। उनकी पुश्तैनी जमीन छिन जाती।

उन्होंने चेतावनी दी कि इस कानून को किसी भी हालत में भी लागू नहीं करने देंगे भले ही, चाहे इसके लिए दोबारा फिर से आंदोलन क्यों ना करना पड़े। वरिष्ठ किसान नेता एवं हाड़ौती किसान यूनियन के महामंत्री दशरथ कुमार ने कहा कि इस फैसले से देश के किसानों और नागरिकों का लोकतंत्र के प्रति भरोसा बढ़ेगा।

वरिष्ठ किसान नेता दुलीचंद बोरदा ने इस जीत पर संयुक्त किसान मोर्चा के सभी पदाधिकारियों व किसानों को बधग् दी। साथ ही आगे भी इस तरह ही अपनी मांगों के लिए एक साथ रहने की अपील करते हैं। इस दौरान महेंद्र नेह, कीर्ति माथुर, मधु शर्मा समेत अन्य किसान प्रतिनिधि मौजूद थे।

मोदी सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने पर किसान संगठनों के पदाधिकारी व किसान कांग्रेस शहर जिलाध्यक्ष रविन्द्र त्यागी के निवास पर पहुंचे और आतिशबाजी कर मिठाई खिलाकर खुशी जाहिर की। त्यागी ने कहा कि किसान 1 साल से दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं।

लगभग 700 किसानो ने अपना बलिदान दे दिया। अब कई राज्यों में करारी हार से भाजपा को बड़ा झटका लगा है। इसके बाद मोदी ने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की हैं। केंद्र को एमएसपी कानून लागू करना चाहिए। किसान नेता अब्दुल हमीद गौड ने कहा कि तीनों कृषि कानून किसानों के हित में नहीं थे, ये जबरन किसानों पर थोपे जा रहे थे। देवा भडक ने कहा कि शहीद हुए 700 किसानों के परिवार को उचित मुआवजा मिले और उनके परिजनों को सरकारी नौकरी मिले।

पूर्व कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने तीनों कृषि कानून जनहित में वापस लिए हैं। तीनों कृषि कानून का सिर्फ किसानों की आमदनी को दोगुना करने का लक्ष्य था। पूर्व मंत्री सैनी निजी कार्यक्रम में भाग लेने कोटा आए थे।

मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कई बार देश व राज्य में कई कानून बनते हैं और कई कारणों से वापस भी लिए जाते हैं। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव को देखते हुए यह निर्णय किया गया है, जो बिलकुल गलत है। मोदी सरकार ने कभी भी दबाव में कोई फैसला नहीं किया है।

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