फारूख पिंगपोंग

शीर्षक पढ के ललाट पे सिलवटें पड़ रही होंगी। ऐसा होना लाजिमी है। हैडिंग पढ कर दिमाग में अचकच हो रही होगी। ऐसा होना स्वाभाविक है। वो इसलिए कि ऐसा घालमेल पहली बार सामने आया होगा। होगा नही ऐसा घालमेल पहली बार ही सामने आया। आया अथवा किया। यह बात दीगर है। फिलहाल पूरे शीर्षक में ना कोई घालमेल नजर आता है ना कोई तालमेल। इसके बावजूद हैडिंग के में बणाव-सिणगार किया गया है तो जरूर इसके पीछे कोई ठोस कारण रहा होगा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
एक हिसाब से देखा जाए तो शीर्षक को लेकर सफाई पेश करने की जरूरत ही नही है। जो कुछ है, वह सामने है और जो सामने है, वह किसी से छुपा हुआ नही है। साफ दिख रहा है कि ऐसा कोई नाम तो है, पर वैसा कोई सरनेम नही जो नाम के पीछे चस्पा किया हुआ है।

बाबा शेक्सपीयर ने नाम को लेकर एक जबरदस्त जुमला उछाला था। जिस पर हम इससे पहले भी चर्चा कर चुके हैं। सवाल फिर वही-एक बार चर्चा और हो जाएगी तो कौन सा तूफान खड़ा हो जाएगा। हम बाबा के जुमले के विरोधी नही मगर असहमति जताना हमारा संवैधानिक अधिकार है। एक बार और बाबा ने जब यह जुमला उछाला उस बखत हमारे यहां गौरों का राज रहा होगा। उस समय किसी के पास विरोध करने का अधिकार नही था। हुकूमत अथवा उनकी बिरादरी वालों ने जो कुछ कह दिया वो फुल एंड फाइनल। विरोध करने पर डंडा या गोली या कि जेल की हवा।

इसके बावजूद कई मसलों-मुद्दों पर विरोध हुआ। जम कर हुआ। विरोध करने वालों पर आजादी का जुनून सवार था। मां भारती को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करवाना उन सब का ध्येय। उस बखत हम होते तो आजादी के दीवानों की टोली में होते। अंगरेजों भारत छोड़ों के नारों से फुरसत निकाल कर नाम में क्या रखा है का भी जमकर विरोध करते। वो कहते हैं-नाम में क्या रखा है, हम कहते हैं नाम में बहुत कुछ रखा हैं। अगर नाम में कुछ रखा नही होता तो बाबा इस जुमले के नीचे अपना नाम क्यूं लिखते। नाम में क्या रखा है लिख कर उसे हीरा लाल या भंवरलाल के हवाले कर देते। पर उन्होंने ऐसा नही किया। जुमले के नीचे खुद का नाम उकेरा तभी तो लोगों को पता चला कि यह विरोधाभास किसने परोसा।
एक तरफ नाम में क्या रखा है और दूसरी तरफ खुद का नाम। यह अपने आप में। जोरदार विरोधाभास है। हम तो कहते हैं कि नाम तो नाम सरनेम में भी बहुत कुछ रखा है। हथाईबाज इस पर भी चर्चा कर चुके हैं। सरनेम मानखों की मूंछ के साथ पूंछ भी है। कई लोग पूंछ पर ज्यादा ध्यान देते हैं, कई लोग मूंछ के साथ पूंछ पे भी। नाम के आगे मूंछ और पीछे पूंछ। कई लोगों का पूरा ध्यान पूंछ की ओर। बिन पूंछ सब सून। सचिन कौन। तेंदुलकर की पूंछ लगते ही पहचान हो जाती है। गांधी रूपी पूंछ के बिना राहुल को कौन पूछे। भतेरे लोग तो पूंछ लगी हो तो भी नहीं पूछते। कांगरेस के चंगुओं-मंगुओं को उनकी पूछ करना मजबूरी। नौकरी करनी है तो जी हुजूरी करनी पड़ेगी। नरेन्द्र से मोदी और अमित से शाह हटाकर देख ल्यो, सवालिया निशान लगे नजर आएंगे। कौन नरेन्द्र। कौन अमित।


मगर हथाईबाज जिस नेम-सरनेम या मूंछ-पूंछ की बात कर रहे हैं उस पर जितने टेग टांगें कम है। वो अवसरवादी। वो गद्दार। वो नमकहराम। जिस का खाया-उसे ही लजाया। जिस देश ने उसे मान दिया-सम्मान दिया। उस की तीन पीढिय़ों को राज्य की सत्ता सौंपी। उसने अचार खाया भारत का और अंगुलियां चाटी दुश्मन की अब बुढऊ हमारे दूसरे दुश्मन के नाम की चिटुड़ी-मिटुड़ी चाट रहे है। लगता है उनके दिमाग के परीक्षण की जरूरत है या फिर उन्हें सीमा पे छोड़ दिया जाए। इतकू जाए तो उन की मरजी-उतकू जाए तो उनकी मरजी। कम से कम हमारा तो पिंड छूटे।


हथाईबाज कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला की बात कर रहे हैं। बुढऊ कई बार केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। उनके पिता शेख अब्दुल्ला और पुत्र उमर अब्दुल्ला भी कश्मीर के सीएम रह चुके हैं। भारत ने फारूख परिवार को पूरा मान-सम्मान दिया मगर उनका पाकिस्तान प्रेम नही गया। उन्होंने कई बार हमारे दुश्मन देश पाकिस्तान के ‘बोसे लिए। झप्पियां ली। अचार भारत का खाया-अंगुलियां दुश्मनों की चाटी। अब वो हमारे दूसरे दुश्मन देश चीन की गोद में बैठने को मचल रहे हैं। बुढऊ का कहना है कश्मीर में धारा 370 वापस लगवाने के लिए वो चीन की मदद लेंगे। फारूख भूल गए कि पाक हो या चीन, भारत सब से निपटना जानता है। भारत को भूत भगाना आता है। 370 लगाा तो दूर 3 को छू के दिखा दो। हथाईबाजों का कहना है कि फारूख और उनकी मानसिकता के सारे लोगों को उधर धकेल दिया जाए। चाहो तो खानखुन बने रहो-चाहो तो पिंगपोंग। कम से कम हमारा तो पिंड छोड़ों।