बाप रे बाप.. इतनी गाडिय़ां..!

आगे बढऩे से पहले ‘थुथका फैंकना जरूरी ताकि कोई यह ना समझे कि हम ‘टोकार लगा रहे है। हम तो चाहते हैं कि देश और देशवासी खूब तरक्की करें। आगे बढें। विकास के पथ पर अग्रसर होते रहें। उन्नति की राह पर निरंतर चलते रहेें। कामयाबी की सीढिय़ां चढते-चढते मंजिल पर पहुंचे। फिर विचार आता है कि आशीर्वाद अक्षरस ‘फळ गया तो ‘अजीण हो जाएगी। अभी चादर चल रही हैं, बाद में घासिए-अत्तने-पत्तने और तकिए भी चलने शुरू हो जाएंगे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

अपने यहां ‘टोकार रोकने के जो तरीके अपनाए जाते हैं, उनमें से ‘थुथका भी एक है। कहते हैं कि ऐसा करने से नजर नहीं लगती। इसमें कित्ती सच्चाई है, हम नहीं जानते। हम तो क्या, कोई नहीं जानता मगर ऐसा करने की परंपरा अरसों-बरसों से चल रही है। हम चाहे चांद पे चले जाएं। अंतरिक्ष में झंडे गाड़ दें।

जल और थल में नगाड़े बजा दें। मगर पारंपरिक रवायतें चलती राणी है। इस टोटके की शुरूआत किसने की। कब की। किस मसले-मुद्दे पे की। इस का तो पता नहीं मगर इतना जरूर पता है कि आई की आई और बाबा के बाबा भी ऐसा करते थे। उन्हें यह टोटका अपने आई-बाबा से मिला होगा। इसके माने थुथ्का सैंकड़ों सालों से फिकता आया है और सैंकडो सालों तक फिकता रहेगा। दुनिया की कोई ताकत ‘थुथकापंथी को ना तो रोक पाई है, ना रोक पाएगी।

अपने यहां तारीफ करने की परंपरा रही है तो उसे बुरी नजर से बचाने के लिए ‘थुथके का सहारा लेने का रिवाज भी है। किसी अच्छी चीज की प्रशंसा होते ही-थुथकाबाजी शुरू हो जाती है। किसी के शानदार दिखने पर हम-आप कहते भी हैं-क्या जंच रहे हो या क्या जंच रही हो।इसके जवाब में सुनने को मिलता है- ‘थुथको फैंको।

लिहाजा तारीफ करने वाले को ऐसा करना पड़ता है। काला टीका लगाना या नजर उतारना भी इसी टोटके के संगी-साथी। कई लोग इस परंपरा पे विश्वास करते हैं, कोई नहीं करता। हांलांकि हथाईबाज भी प्रगतिशील विचारधारा के धणी रहे हैं मगर परंपराओं के पहरूए भी। इसी वास्ते थुथका फैक दिया ताकि किसी को यह ना लगे कि निगोड़ों ने नजर लगा दी। थुथका फैंका सो तो फैंका साथ में दुनियाभर का आशीर्वाद भी दे दिया।

शीर्षक में गाडिय़ों का जिक्र है तो आशीर्वाद का रूख भी उन्हीं की तरफ होगा। ऐसा तो है नही कि गाड़ी का हैंडिल या स्टेयरिंग किसी और दिशा में और दुआ किसी और दिशा में। हैंडिल पूरब में और आशीष पच्छम में या कि स्टेयरिंग उत्तर में और आशीर्वाद दक्षिण में। कोई यह सवाल खड़ा कर दें कि गाडिय़ां कौन सी तो बात कुछ और है। जब वाजिब सवाल खड़ा हो जाए तो उसका जवाब देना भी बनता है।

सवाल के आगे वाजिब इसलिए उकेरा, क्यूंकि लोगों को बेतुके सवाल करने की लत पड़ी हुई है। खामखा के सवाल खड़े करना उनकी दिनचर्या में शुमार होता जा रहा है। और कुछ करो या ना करो, सवाल जरूर खड़े कर दो। भले ही उनके बेतुके सवाल आगे चल कर कोई बखेड़ा खड़ा कर दे-कोई तमाशा बना दे। उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता। वो ‘कुछ ना बन सके तो तमाशा बना दिया के अनुयायी।

अपने यहां गाडिय़ों की भरमार है। भांत-भांत की गाडिय़ां पाई जाती है। दो पहिया वाहन से लेकर 36 चक्के वाले ट्रोले की गिनती गाडी में ही होती है। इन के बीच फटफटिए से लेकर विभिन्न मॉडल्स के दुपहिया और वेगनआर या मारूति से लेकर फरारी तक के चौपहिया वाहन गाड़ी की सूची में। मेरी लूणा आप की जुपिटर, इनकी स्कूटी या एक्टिवा भी गाडिय़ों की गिनती में। हमें यह तो पता था कि शहर में गाडिय़ों की भरमार है। अब पता चला कि भरमार ही नहीं भरमार से भरमार और महा भरमार से भी ज्यादा महाभरमार है। पहले रात को गली में पच्चीस-तीस दोपहिया गाडिय़ां खडी दिख जाया करती थी। अब तो आखे शहर की गलियां गाडिय़ों से अटी पड़ी नजर आ रही है।

कोरोनाकाल के चलते पूरा देश थमा हुआ है। कहीं कफ्र्यू-कहीं लॉकडाउन तो कहीं दूसरी पाबंदिया। निर्धारित मियाद के बाद लोग घरों में कैद। छूट के दौरान भी भतेरे लोग बाहर निकलने से परहेज रख रहे हैं। ऐसे में हर गली में गाडिएं खडी नजर आ रही है। ठेठ शहर का नजारा और भी ज्यादा खतरनाक। गली के मुहाने से लेकर एंड तक। घांटी के नीचे से लेकर टॉप तक गाडिय़ां ही गाडिय़ां।

सड़क-गली के इस तरफ गाडिय़ां-उस तरफ लंगरलेण खड़ी गाडिय़ां ही गाडिय़ां नजर आती है। हमें अब पता चला कि हमारी गली में दो सौ से ज्यादा गाडिय़ां है। गली में साठ मकान और गाडि़एं इत्ती सारी। एक घर में औसतन आठ सदस्य तो छह गाडिय़ां पक्की समझो। यह हाल सिर्फ जोधपुर का है तो पूरे राज्य और पूरे देश की गलियों का नजारा कैसा होता होगा-अंदाजा लगाया जा सकता है। यह तो दोपहिया वाहन सागर की बात थी-चार पहिया वाहन अलग। ऑटो रिक्शा और भारी वाहन अलग। तभी तो हैरत हुई। नजर ना लगे इस लिए ‘थुथका भी फैंक दिया।

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