देश के फिल्म तथा डॉक्यूमेंटरी निर्माताओं को निर्देश जारी, सैना के लिए ऊंचा चरित्र और नैतिक मूल्य सर्वोपरि

रक्षा मंत्रालय ने देश के फिल्म तथा डॉक्यूमेंटरी निर्माताओं को एक निर्देश जारी किया, जिसमें बताया गया है कि वेब तथा अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर बहुत-सी फिल्में बिना सेंसर बोर्ड की अनुमति के जारी की जा रही हैं, जिनमें सेना की वर्दी तथा उनके चरित्र को नकारात्मक तथा गलत ढंग से केवल सस्ते मनोरंजन के उद्देश्य से प्रस्तुत किया जा रहा है। भविष्य में सेना पर फिल्म या डॉक्यूमेंटरी को किसी भी माध्यम पर दिखाने से पहले इसकी अनुमति रक्षा मंत्रालय से ली जानी चाहिए।

हालांकि पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया तथा वेब चैनल पर ऐसी फिल्में चोरी-छिपे दिखाई जा रही थीं, पर तब बहुत शोर-शराबा हुआ, जब सेना पर बनी एक फिल्म बिना सेंसर बोर्ड की अनुमति के वेब पर जारी कर दी गई, जिसमें सैनिकों की जीवन शैली को नकारात्मक और अनैतिक रूप में चित्रित किया गया था। एक सैनिक के लिए ऊंचा चरित्र तथा नैतिक मूल्य सर्वोपरि होते हैं, जिनके द्वारा ही वह एक अच्छा सैनिक बनकर देश पर अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तैयार रहता है।

अभी कुछ ही दिन पहले देश ने देखा कि 19,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित लद्दाख की गलवां घाटी में शून्य के नीचे तापमान में भारतीय सैनिकों ने निहत्थे ही चीनी सैनिकों का मुकाबला कर चीन को सख्त संदेश दिया। सैन्य प्रशिक्षण के दौरान हथियारों तथा सेना की कार्य प्रणाली सिखाए जाने से पहले एक सैनिक को आदर्श, नैतिक तथा चारित्रिक मूल्यों की परिभाषा समझाई जाती है।

इन्हीं मूल्यों के आधार पर उसके अंदर देशभक्ति की भावना जागृत होती है। वर्ष 1962 में चीन ने जब भारत पर अचानक हमला बोल दिया था, तब हमारे सैनिकों के पास शून्य से नीचे तापमान में रहने के लिए न तो गर्म कपड़े थे, न ही ऐसे क्षेत्रों में प्रयोग किए जाने वाले विशेष साधन उपलब्ध थे।फिर भी हमारे सैनिकों ने चीनी सेना का मुकाबला किया था।

ऐसे ही, 1965 के युद्ध में भारतीय सेना के हवलदार अब्दुल हमीद की वीरता ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। पंजाब में अमृतसर के पास खेमकरण सेक्टर में पाक सेना की पूरी डिविजन ने 120 टैंक के साथ हमला कर दिया था। तब भारतीय सैनिकों के पास वही पुरानी आरसी एल तोपें थीं। पर हवलदार अब्दुल हमीद ने अपने पराक्रम से पाकिस्तान के 10 टैंकों को चुन-चुनकर बर्बाद कर दिया था।

खेमकरण के उस युद्ध को सैनिक इतिहास में असल उत्तर के नाम से पुकारा जाता है, क्योंकि वह पाकिस्तान को उसी की भाषा में उत्तर था। ऐसे ही, 1971 के बसंतर युद्ध में 21 साल के लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने पाकिस्तानी टैंकों को बर्बाद करते हुए अपनी पोजीशन की रक्षा की थी। इसी तरह का उदाहरण कारगिल युद्ध में भी तब देखने में आया, जब इस युद्ध के नायक कैप्टन विक्रम बत्रा ने कहा था कि या तो मैं टाइगर चोटी पर तिरंगा फहरा कर लौटूंगा, नहीं तो तिरंगे में लौटकर वापस आऊंगा। उपरोक्त वीरता के उदाहरण हमारी सेना द्वारा लड़े गए हर युद्ध में मिलते हैं।

आज के युग में बढ़ते उपभोक्तावाद के कारण समाज के नैतिक मूल्य बिकाऊ हो गए हैं, जिससे तरह-तरह के अनैतिक कृत्य आम हो गए हैं। देश की नौकरशाही तथा पुलिस व्यवस्था में भी यह सब आ गया है, जिस वजह से देश में चारों तरफ अपराध और अव्यवस्था फैल रही है। पर इन हालात में भी सेना सीमा पर दुश्मन को किसी प्रकार का मौका नहीं दे रही। फिल्में समाज का आईना कहलाती हैं, पर आजकल फिल्में तथा मीडिया विज्ञापन का बड़ा साधन बनने के कारण तरह-तरह के काल्पनिक आपराधिक तथा चरित्र पतन के दृश्य नमक-मिर्च लगाकर प्रस्तुत करते हैं।

इसी के प्रभाव में सेना के बारे में भी यह फिल्म निर्माता इस सब को वेब मीडिया इत्यादि पर बिना सेंसर बोर्ड की अनुमति के दिखा रहे थे, जिनमें समाज के अन्य भागों की तरह सेना का चित्रण भी उसी तरह करने की कोशिश की गई थी, जो उचित नहीं था। इसी के मद्देनजर सरकार ने फिल्म निर्माताओं पर लगाम लगाते हुए आदेश जारी किया है, ताकि भविष्य में कोई ऐसी कोशिश न कर सके। यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी आवश्यक है।