चौके का पंजा

कभी-कभार मन में विचार आता है कि हम जो सारिणी तय करते हैं उन में दो और बिंदू जोड़ देने चाहिए। एक तो जीवन का कुछ हिस्सा कार्ड बनवाने के नाम और दूसरा कमाई का कुछ हिस्सा जुरमाने को अरपित।

आज अगरचे पुरातन प्रथा वापस स्थापित हो तो चार की जगह पांच आश्रम की सिफारिश तो बनती है। यह बात दीगर है कि कोई किसी की सिफारिश पे गौर करे या ना करे। करने पे शक। ना करे तो जैसा चल रहा है, वैसा चलने दो। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

विचारों को बांधना अथवा उनपे पहरे बिठाना किसी के बूते की बात नहीं। आप चाहे फौज लगा द्यो। संगीनें सजा द्यो। विचारों को रोक नहीं पाओगे। फौज की बात इसलिए की कि आखे देश को अगर किसी पे विश्वास है, तो वह है हमारी सेना।

वो है हमारी फौज। आसमां की बात करे तो वायु सेना। जल-समंदर की बात करें तो जल सेना और जमीन-जंगल-पहाड़-बर्फ-रेगिस्तान और पठार की बात करें तो थल सेना। देश को ना तो नेतों पे विश्वास-ना पांडु पुलिस पे। हां, पांच-पच्चीस नेते ऐसे हैं जिन पे लोगों को विश्वास है। पण ज्यादातर बातों के बलवंत। अधिकांश फेलियर। ज्यादातर झूठे। अधिकांश मक्कार।

जो लोग देश की सुरक्षा और कोरोना वैक्सीन जैसे गंभीर मसलों पर सूगली सियासत करने से बाज नहीं आते उनपे जनता कैसे भरोसा कर ले। कुछ नेते तो ऐसे हैं जिन्हें खुद की पार्टी में कोई गंभीरता से नहीं लेता मगर सामने लल्ला-पुच्चू करने में वन परसेंट भी कमी नही। पीठ मुड़ते ही भूंडे शुरू। पुलिस पर विश्वास इसलिए नही कि उसकी कार्यप्रणाली किसी से छुपी हुई नही है।

फर्ज करों कि यदि पांडु पुलिस को सीमा-सरहदों पर बनी चौकियों और बीओपी’ज पर लगा दिया जाए तो क्या होगा। पहली बात तो ऐसा हो ही नही सकता। गुजारिश फर्ज करने की की गई है तो किए देते है। एक पल के लिए मानने में क्या हर्ज है।

अगर ऐसा हो जाता है या हो जाए तो पांडु सौ-पचास रूपए लेकर इधर का बंदा उधर-उधर का बंदा इधर करने में कमी नही रखने वाले। माल-मलीता इधर से उधर करने-करवाने में तनिक भी मूंजीपना नहीं। इसी कारण देश का विश्वास फौज पर। विचारों और सपनों पर बंदिशें ठोकना उसके बस की बात नहीं। तभी तो मन में भांत-भांत के उमड़ते-घुमड़ते विचार और ज्यादा परवान चढते हैं। जीवन सफर में दो और बिन्दू जोडऩा उनमें से एक विचार।

मन मे विचारों का उभरना-बनना-बिगडऩा मानवीय प्रवृति है। बुद्धिजीवियों और श्रमजीवियों के जेहन में विचारों का कौंधना भगवान का दिया नायाब तोहफा है। विचार शून्य और विवेकशून्य व्यक्ति को किस रूप-सिणगार में देखा जाता है, सब जानते हैं। हमारे मन में विचार उठे कि आज अगर आश्रम व्यवस्था वापस कायम हो जाए तो उसे एक कदम बढा दिया जाए। पुराने जमाने में बाल आश्रम-गृहस्थ आश्रम-सन्यास आश्रम और वानप्रस्थ आश्रम की व्यवस्था हुआ करती थी, आज की व्यवस्था में कार्डाश्रम को जोड दिया जाए। दूसरा विचार कमाई का एक हिस्सा जुरमाने के नाम।

अपने यहां ऐसा माना-बताया और समझाया जाता है कि मानखों को अपनी कमाई का एक हिस्सा गरीबों-असहायों की सहायता में लगाना चाहिए। हमारा विचार ये कि श्रद्धा हो तो इसे बढाकर दो हिस्से किए जा सकते हैं वरना एक के दो हिस्से। आधा हिस्सा दान-पुण्य और जरूरतमंदों के नाम और आधा हिस्सा जुरमाने पर कुरबान। कोई पूछे ऐसा क्यूं तो इसका जवाब भी हमारे पास तैयार है। कोई यह ना समझे कि हथाईपंथी खालीपीली सवाल दागना जानते हैं। उन्हें सवाल का जवाब भी देना आता है और बखूबी देना आता है। अच्छी तरह देना आता है।

पहले बात करें आश्रमों की संख्या पांच करने की, तो उसके पीछे लॉजिक ये कि इंसान की जिंदगी का एक हिस्सा तो कार्ड और प्रमाण पत्र बनवाने में खप जाता है। हमने इस पर कार्डाश्रम का ठप्पा ठोक दिया। राशन कार्ड से लेकर आधार कार्ड। बीपीएल से लेकर एपीएल कार्ड। यह तो आम आदमी के गहनों के समान। शादी के कार्ड भी सबसे जुड़े हुए। मतदाता कार्ड-आईकार्ड-विजिटिंग कार्ड। सरकारी औपचारिकताओं में किसी ना किसी कार्ड की जरूरत तो पड़ती रहती है। ऑनलाइन बनवाने जाओ तो वहां भी लाइन के साथ सौ झंझट। ऑफ लाइन बनवाने की झंझट कौन मोल लेवे। सीधा इ मित्र का रास्ता बता के टरका दिया जाता है। उनके तो होंठ हिल गए और यहां कार्ड बनवाने के लिए कितने पापड़-सलेवड़े बेलने पड़ते हैं, यह हमारा जी जाणता है।

दूसरी बात दान-पुण्य सहायता की, या तो इस का बजट बढाया जा फिर दो हिस्से किए जाएं। कारण ये कि जुरमाने इतने हो गए कि भरते रहो.. भरते रहो..। बिल भरने से देर हो जाए तो जुरमाना। फीस भरने मे देरी हो जाए तो शुल्क बढोतरी। थूकने पे जुरमाना। सुट्ठे मारने पे जुरमाना। इधर से निकल गए तो जुरमाना-उधर से निकलों तो जुरमाना। इतने जुरमाने कि आदमी भन्ना जाए। दुकान का शटर डाउन करने में तनिक देर हो जाए तो जुरमाना। पहले तो हेलमेट ही था अब मुंह ढकाई नहीं की तो जुरमाना। अब आप ही बताइए-ऐसे में मन में ऐसे-वैसे विचार उभरना लाजिमी है या नहीं।