आजादी के माने नंगाई नहीं

बधाई.. बधाई.. बधाई.. इन को बधाई, उनको बधाई। जहां-जहां रात वाली बंदिशें लागू थी, उन सभी जिलों के रहवासियों को बधाई। इस बात की कि बंदिशें हट गई। रात्रिकालीन-कफ्र्यू खल्लास हो गया। अब दिन के साथ-साथ रात की भी आजादी, मगर याद रहे कि आजादी की भी एक रेखा होती है। हमें उस सीमा में रहना है। आजादी का मतलब नंगाई नहीं। शहर की लगभग सभी हथाईयों पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

बधाई के साथ सीमा-रेखा में रह कर आजादी मनाने की सीख इसलिए दी कि हमें हर चीज का दुरूपयोग करने की आदत पड़ चुकी है, यदि हम ने यह बुरी आदत ना छोड़ी तो आगे चल कर लत में बदल जाएगी। कहते हैं कि लत से छुटकारा बड़ी मुश्किल से मिलता है लिहाजा बुरी आदत को पास ही नहीं फटकने देणा। दुनिया में खाने के लिए भतेरी वस्तुएं हैं। बाबा तुलसी ने भी फरमाया था-सकल पदारथ है जग माही..।

जब खाने को स्वादिष्ट, लजीज और स्वास्थ्यवर्धक वस्तुएं मौजूद हैं तो मांस-गोश क्यूं खाना। क्यूं अमल-अफीम खाणा। खाना ही है तो फल खाओ.. फ्रूट खाओ.. भांग खाणा जरूरी है क्या। दुनिया में पीने को भतेरी चीजे है। छाछ पीओ..मट्ठा पीओ। राब-गलवाणी पीओ। दूध पीओ। लस्सी पीओ। दारू पीणा जरूरी है क्या। नशा नाश कर द्वार है। नशा करने से शरीर खराब होता है। प्रतिष्ठा पर खरोंच आती है। लोग शराबी-नशेडिय़ों से बात ‘इ करना पसंद नही करते। उन से दूर रहना हरेक कोण से फायदेमंद है। नो आदत-नो लत। आदत ही डालनी है तो सेवा-प्यार-सद्भाव और साथी हाथ बढाना साथी रे.. की डालो। लत ही डालनी है तो राष्ट्रप्रेम-जीव प्रेम और शांति-अहिंसा की डालो मगर हम ऐसा नही कर रहे। ज्यादातर लोग दुरूपयोग करने की ओर झुके नजर आते है।

हथाईबाजों ने देखा कि अपने यहां ‘अवेयरनेस की जबरदस्त कमी है। समझदार और अपने-आप को पढा-लिखा कहने-समझने वाले लोग भी-‘चलता है के नाम पर वो कर डालते हैं, जो नही होना चाहिए। हम जहां चाहा वाहन खड़े कर देते हैं। जहां चाहा ‘पिच्च कर देते है। जहां चाहा हलके हो लेते हैं।

कई लोग कचरा वहीं डालते हैं जहां- ‘यहां कचरा ना डालें की विनती लिखी होती है। वहीं थूकेंगे जहां गुटखे की पीक ना थूकने का आग्रह लिखा होता है। हम सड़कों पर वाहन ऐसे ‘चूंचाते हैं मानों घर में ज्यादा हों। दफ्तर सूना और लाईट-पंखे चल रहे हैं। टूटी चल रही है और हमारा ध्यान कहीं ओर। भाई कोरोना में हाथ धोते रहने का आग्रह किया गया-टंकी साफ करने का नहीं। बेपरवाह हम। हम लापरवाह। हम भूल जाते हैं कि सरकारी संपत्ति हमारे खून-पसीने की कमाई से खडी होती है और हम उसका संरक्षण करने की बजाय नुकसान पहुंचाने से बाज नहीं आते।

माना कि हम आजाद हैं। संविधान ने हमें कई अधिकार दे रखे हैं। पण आमतौर पर यह देखा जाता है कि ज्यादातर लोग आजादी का गलत प्रयोग कर रहे हैं। वो नहीं जानते कि हमें आजादी पंसारी की दुकान से नही मिली। हमारे पुरखों ने इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाई। पहले मुगलिया शासकों और फिर अंगरेजों ने हम भारतीयों पर खूब अत्याचार किए। हमारा जम के शोषण किया।

जोरदार दोहन किया। हमें अपने ही देश में गुलाम बना के रखा। हम अपनी ही सरजमीं पे बंधुआ बन के रहे। बंधन तोडऩे के लिए हमारे पुरखों और स्वतंत्रता सेनानियों ने लाठी-गोली खाई। पीड़ा भुगती। अत्याचार सहे। जेल गए। काला पानी भुगता। मां-बाप के बुढापें की लाठी टूट गई। मातृ शक्ति के माथे का सिंदूर उजड़ गया। बहनों की राखी उदास हो गई। लाखों लोगों ने जंग-ए-आजादी के यज्ञ में आहुतियां दीं, तब कही जाकर हमारा देश आजाद हुआ।

हम ने खुली फिजां में सांस ली। देश हमारा। झंडा हमारा। हवा हमारी। पानी हमारा। संविधान हमारा। अफसोस इस बात का कि हमने आजादी का मोल नही समझा और दुरूपयोग कर बैठे। यान तो यान ही चाल सी… ने सब कुछ बिगाड़ के धर दिया। आजादी के नाम पर हम नंगे हो गए। हमने अधिकारों को तो याद रखा-कर्तव्यों को बिसरा दिया। उसी का नतीजा आखा देश भुगत रहा है।


हथाईबाजों ने कई दफे आगाह किया। चेताया। सजग किया। आज फिर चूंटिया भर रहे हैं कि रात्रि कफ्र्यू से मिली छूट का दुरूपयोग मती करना वरना हमारे त्याग-तपस्या पर पानी फिर जाएगा। हम घूम-फिर के वापस वहीं आएंगे, जहां से कदम बढाए थे। हम कोरोनाकाल की पीड़ा पिछले नौ-दस माह से भुगत रहे हैं। हम घरों में कैद रहे। सारी व्यवस्था छिन्न-भिन्न होते देखी। अपनों को खोया। पड़ोसी की बात क्या करें, घरवाले भी दूर हो गए। अंगरेजी नया साल सुखद पैगाम लेकर आया।

पहले वैक्सीन से राहत और अब रात्रिकालीन कफ्र्यू से छुटकारा। कफ्र्यू के कारण बाजार धड़ाम हो गया। धंधे मंदे हो गए। अब तो बड़े बच्चों की स्कूलें भी खुल गई। कुल जमा सुखद खबरें आ रही है। हमें भी सचेत रहने की जरूरत है। रात्रिकफ्र्यू हटने का मतलब यह नहीं कि आधी रात तक उधम मचाते रहे। स्कूलें खुलने का मतलब यह नही कि धमा चौकड़ी करते रहें। हम आजादी का मान रखते हुए सरकारी गाइड लाइन की पालना करते रहें। मास्क लगाए। देह दूरी रखें। हाथोंं को समय-समय पे धोते रहें। रात को टेमोटेम घर जाएं। लापरवाही ना बरतें। ऐसा ना हो कि सरकार को फिर हमें कैद करके रखना पड़ जाए। याद रहे कि आजादी के माने नंगाई नही है।