गंगाराम अधकुंआरा रह गया…

गंगाराम कुंआरा रह गया… की सुर लहरियां तो सुनी थी। गंगाराम अधकुंआरा रह गया… पहली बार सुनाई दे रहा है। वह भी दो बार। हिन्दुस्तान का यह पहला बंदा होगा जो शादी के लड्डू दो बार खाते-खाते रह गया। लड्डू मुंह में जाने से पहले छिटक गए। इसे उसकी किस्मत कहें या बदकिस्मती। जिसे जो कहना है कहें। हमने तो सुर बिखेर दिए-”गंगाराम अधकुंआरा रह गया…। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

शादी का नाम सुनकर कुंआरे छोरों की बांछे खिल जाती है, तो कई विवाहितों के रोंगटे खड़े हो जाते है। शादी के नाम से उन्हें डर लगने लगता है। घिग्गी बंध जाती है। भारतीय संस्कृति में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है। हम आप भी इससे सहमत। इनकी वो जाणे-उनकी वो। हो सकता है आप के विचार अलग हो। सहमति के साथ हमारा यह कहना कि घर-परिवार में ख_ा-मीठा चलता रहता है।

इनने कही-उनने सुन ली। उनने कही-इनने सुन ली तो ना कोई लोचा ना कोई लफड़ा। चार बरतन होंगे तो खनेकेंगे ही। उनकी जगह कांच के ले आओ तो हर हफ्ते तोड़भांग का खतरा। हो सकता है रोजिना टूटे। और अगर परिवार संयुक्त है तो हर सदस्य को त्याग और समझदारी के साथ बड़ा दिल रखना निहायत जरूरी है। नसीब वाले हैं वो लोग जिन्हें आई-बाबा के आशीर्वाद रूपी छत के नीचे भाई-भोजाईयों के सानिध्य में रहने का अवसर मिला हुआ है। एक जमाने में साझा परिवार ही हुआ करते थे। पांच-छत भाईयों के परिवार एक साथ। साझा चूल्हा। भाई काम पर। देराणिए-जेठाणिएं मिलकर सारा काम निपटा लेती। अम्मा-बाबा का सानिध्य।

घर की बागडोर उन्हें के हाथों में। उनने कह दिया वो फुल एंड फाइनल। वो भी सब की राय लेते थे। ऐसा नहीं कि हिटलर की तरह हंटर चलाया और फैसला कर दिया। कई बार पूरा कुनबा जुट के सामूहिक फैसला करता। कई बार सब की व्यक्तिगत राय जान कर निर्णय किए जाते। परिवार में इतना प्यार कि पूछो मती। बाहर वालों को पता ही नहीं चलता कि कौनसा डिकरा किसका है और कौन सी छोरी किसकी। समय ने ऐसा पसवाड़ा फेरा कि संयुक्त परिवार बिखर गए। साझे चूल्हे शांत हो गए। घरों में दीवारे खड़ी हो गई। जहां देखो तहां-”मैं अर म्हारों गीगलो की भावना। ऐसे समय में भी कुछ परिवार ऐसे हैं जहां आज भी बुजुर्गों की आशीर्वाद रूपी छत के नीचे सारे सदस्य हंसी-खुशी के साथ रह रहे हैं। कुछ परिवार तो दो-तीन पीढिय़ों से साथ।

थुथको फैंको भाई… भगवान उन का प्रेम-प्यार-एका सहयोग बनाए रखे। घर में कोई फंक्शन हो तो बाहर वालों का इंतजार करने की जरूरत ही नहीं। खुद का भरा-पूरा कुनबा ही काफी है। ऐसे परिवार भले ही कम हों लेकिन है सीख-संदेश देने वाले। कोई उनसे सीखना चाहे तो काफी कुछ सीख सकता है और जो ना सीखना चाहे उनके लिए क्लास-एक्सट्रा क्लास-ट्यूशन-उपदेश सब बेकार। शादी से पहले तो परिवार का साथ और लड्डू चखते ही सुर अलग।

शादी को एक पक्ष सात जनमों का पवित्र बंधन मानता है तो दूसरा पक्ष अच्छा खासा था कुंआरा की लहरियां बिखेरने से बाज नहीं आता। शादी कर के फंस गया यार… अच्छा खासा था कुंआरा…। तीसरे पक्ष का कहना है कि शादी वो लड्डू है खाए सो पछताए… नहीं खाए वो ललचाए और पछताए भी कि हमें लड्डू क्यूं नहीं मिल रहा। शादी ना कर के पछता रहे हैं। इससे अच्छा तो यही हैं कि लड्डू खा के ही पछताया जाए। अपने यहां यह भी कहावत कही जाती है कि जोड़े ऊपर से तय हो के आते है। किस की शादी किससे होती है। किस का हथलेवा किस से जुडऩा है। किस के फेरे कब होणे हैं। यह सब तय है। कुछ बंदों की हथेली में शादी की रेखा ही गायब। कुई दूजब्याह-तीज के लिए उतावले। कुछ के तो हो भी जाते है। कुछ दुल्हे तो बन जाते हैं पर फेरे नहीं हो पाते। कुछ के साथ वरमाला के समय स्टेज पे ही लोचा। उस भाई को देख ल्यो। जो दो बार दुल्हा तो बन गया पर शादी ना हो पाई।

हवा गाजियाबाद, यूपी के कालवी गढी क्षेत्र से आई। वहां एक गंगाराम बारात चढा रहा था कि पुलिस आ गई और उस को थाने ले गई। हुआ यूं कि उसका विवाह पूर्व में तय हो चुका था। तब भी वो दुल्हा बनकर घोड़ी पे बैठने वाला था कि पुलिस आ गई। किसी ने शिकायत कर दी कि लड़की नाबालिग है। जांच में पुष्टि भी हो गई। फिर तय हुआ कि लड़की बालिग हो जाएगी तब शादी करवा दी जाएगी। इस बीच गंगाराम के परिजनों ने वादा तोड़ दिया और पहली वाली लड़की के परिवार को सूचना दिए बिना दूसरी लड़की से शादी पक्की कर दी। भनक लगने पर पहली वाली लड़की के घर वालों ने पुलिस से शिकायत कर दी और शादी रूक गई।

इसे क्या कहें। विडम्बना कहे या उतावली का फल। धोखा कहें या किस्मत का खेला। बिचारे ने दुल्हे का रूप तो धारण कर लिया पर ना वरमाला हुई ना फेरे पड़े-उल्टा सुर जरूर बिखर गए ”गंगाराम अधकुंआरा रह गया…।

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