बच्ची के दिमाग में लगाई सुनने-बोलने वाली मशीन

एसएमएस अस्पताल की नई उपलब्धि

सरकारी मेडिकल कॉलेज में पहली बार हुई ऐसी सर्जरी, 7 घंटे लगे

जयपुर। राजधानी के एसएमएस हॉस्पिटल में शनिवार को पहला ऑडिट्री ब्रेनस्टेम इंप्लांट किया गया। करीब 5 साल पहले एक बच्ची (14) जिसके दिमाग में इंफेक्शन होने के बाद सुनने और बोलने की क्षमता खत्म हो गई थी। बच्ची के पिता ने जब डॉक्टर को दिखाया और डॉक्टरों ने उसकी जांच की तब कॉकलियर इंप्लांट के बजाए ऑडिट्री ब्रेनस्टेम इंप्लांट करने का निर्णय लिया था, लेकिन पैसे नहीं होने के कारण ऑपरेशन नहीं हो सका था। 2021 में दो डॉक्टर अचल शर्मा और डॉ. मोहनीश ग्रोवर ऑडिट्री ब्रेनस्टेम इंप्लांट की ट्रेनिंग लेकर आए। अलग-अलग फंड के जरिए ऑपरेशन के पैसों की व्यवस्था की गई। परिवार से एक रुपए भी नहीं लिए गए। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि यह सर्जरी राजस्थान में पहले कभी नहीं की गई। देश के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में भी यह पहली बार हुई है।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज के प्रिंसीपल डॉ. राजीव बगरहट्टा ने बताया कि शनिवार को एसएमएस हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने चेन्नई से आए स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की मॉनिटरिंग और निर्देशन पर इस ऑपरेशन को 7 घंटे की मशक्कत के बाद किया। उन्होंने बताया कि सुबह करीब 9 बजे ऑपरेशन शुरू किया गया, जो शाम 4 बजे तक चला। इस दौरान बच्ची के दिमाग का ऑपरेशन कर उसमें मशीन को फिट किया गया। इस दौरान न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के हैड डॉ. अचल शर्मा, ईएनटी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मोहनीश ग्रोवर, न्यूरो सर्जन डॉ. गौरव जैन, एनिस्थिसिया डिपार्टमेंट की सीनियर प्रोफेसर डॉ. शोभा पुरोहित के साथ ही अन्य डॉक्टर्स की टीम भी मौजूद रही।

2-3 साल का लगेगा समय

हॉस्पिटल के ईएनटी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मोहनीश ग्रोवर ने बताया कि इस बच्ची को अभी पूरी तरह से सुनने, समझने और बोलने में 2-3 साल का समय लगेगा। एक महीने बाद अब एक मशीन बच्ची के कानों के पास लगाई जाएगी। जो रिसिवर का काम करेगी। दिमाग के अंदर लगी मशीन को इंनपुट भेजेगी। इस मशीन के फिट होने के बाद बच्ची को 2 महीने बाद धीरे-धीरे सुनाई देने लगेगा। हालांकि 2 या ढाई साल तक स्पीच थैरेपी करवाई जाएगी। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन बड़ा जटिल था, क्योंकि इसमें दिमाग की कवरिंग हड्डी को हटाया और दोबारा लगाया जाता है। इस दौरान सबसे बड़ा डर रहता है कि कहीं कोई ऐसी नस दबी न रह जाए या डेमेज न हो जाए, जिससे मरीज के शरीर का कोई अन्य हिस्सा न प्रभावित हो।

16 लाख रुपए से ज्यादा का आता है खर्च

जिस बच्ची का ऑपरेशन हुआ है, उसकी के माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। इसके चलते ये इंप्लांट रुका पड़ा था। डॉ. ग्रोवर ने बताया कि इस पूरे ऑपरेशन पर करीब 16 लाख रुपए का खर्चा आया है, लेकिन बच्ची के परिवार का एक भी रुपया खर्च नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री सहायता कोष के अलावा अन्य स्त्रोतों से फंडा जुटाकर इस ऑपरेशन को किया गया है। इस ऑपरेशन में जो मशीन दिमाग के अंदर फिट की गई है, वही केवल 14 लाख रुपए की है, जिसे ऑस्ट्रिया से मंगवाया गया है।

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