पीपीपी बोले तो-परीक्षा पे पंगा

‘ जब कुछ ना बन सका, तो तमाशा बना दिया। यह बात किस ने कही। यह पंक्ति किस ने लिखी। कब लिखी। क्यूं लिखी। किस प्रसंग में लिखी। किस को सामने बिठा कर लिखी। इसके आगे की पंक्तियां क्या है। हम को इस बहस में नही पडऩा। पड़ भी जाएं तो नतीजा कुछ निकलना नही। हम तो इतना जानते हैं कि लोगबाग उस पंक्ति को जमीन पर उतारने से बाज नही आ रहे। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।
पीपीपी का आगे चल कर खुलासा नही होता तो लोगों की सोच अलग दिशा की ओर चली जाती। ऐसा होना कोई नई बात नही है। जहां विश्वास है। जहां रिश्ते मजबूत हैं। जहां सकारात्मकता है।

जहां आपसी समझ हैं। जहां इच्छा शक्ति दृढ है, वहां कुछ होणा-जाणा नहीं अन्यथा लोगों की सोच और सोच की दिशा बदलते देर नही लगती। ऐसा होना कमजोरी की निशानी है। कमजोरी के माने शारीरिक कमजोरी नही। कोई लूकड़ी सा हो। किसी का वजन बीस किलो सात सौ ग्राम हो। हड्डी-सड्डी दरक जाए तो एक्स-रे करवाने की भी जरूरत नहीं। बांचिए बैठे हों या चार कदम चल कर हांफ जाए वरन मानसिक कमजोरी। यह कमजोरी शारीरिक कमजोरी से भी ज्यादा घातक होती है। ज्यादा जहरीली और विषैली होती है। इस कमजोरी से ग्रस्त मानखों का कोई इलाज नहीं। वो हमेशा नकारात्मक ही सोचते हैं। ऐसे लोग हर गली-गुवाड़ी में मिल जाएंगे। घर-घर में मिल जाएंगे। टेम मिले तो खुद का दिल-दिमाग टटोलने की कोशिश करना, हो सकता है किसी कोने मे पड़ी मिल जाए। पीपीपी सुन-पढ कर दिशा भटक सकती है।

इसके अपने कारण। पीपीपी और डबल पीई इन दिनों छाए हुए हैं। कुछ अरसा पहले ज्यादातर लोगों ने इसका नाम भी नही सुना था। सुना भी होगा तो अलग अंदाज में-अलग अर्थों में। जन भागीदारी से जो प्रोजेक्ट चलाए जाते हैं उन पे प्रशासनिक स्तर पर पीपीपी का टेग टांगा जाता है। मगर हथाईबाज उसकी नही बल्कि कोरोनाकाल में छाए डबल पीई किट की बात कर रहे हैं। कोरोना योद्धा सिर से लेकर नख तक उस मे ढके हुए। उन्हें धिन है। उन्हें सेल्यूट है जो घंटे-दो घंटे में शरीर पसीना-पसीना हो जाने के बावजूद एलियन बन कर पीडि़तों की सेवा में जुटे हुए हैं। दो ‘पी में से ‘ई को हटा दें तो स्थानीय निकाय निशाने पर। कोटे के अनुसार नगर पालिका-परिषद और निगमों में महिलाएं चुन कर आती है। ज्यादातर महिलाएं नाम की। पार्षद के बतौर नाम तो उन्हीं का चलता है। काम उनके पति या अन्य रिश्तेदार करते हैं। पति काम देखे तो ‘पीपी अर्थात पार्षद पति। कुछ महिला पार्षदों के काम भाई-देवर-जेठ या अन्य रिश्तेदार देखते हैं मगर ज्यादा संख्या पीपी की। इनका रूख गांवों की सरकार की तरफ करें तो एसपी मिल जाएंगे। एसपी बोले तो-सरपंच पति। पीपी भी मिल जाएंगे। वहां पार्षद पति और यहां पंच पति। अगर शीर्षक में चस्पा तीन पीपियों का खुलासा नही होता तो सोचें दूसरी ओर मुडऩी तय थी।


अब बात बहस अथवा चर्चा की, तो इन की सार्थकता भी-दबी-कुचली नजर आती है। इन में भी वो बात नही रही जो पुराने बखत में थी। उन दिनों हर गंभीर मसले-मुद्दे पर जोरदार चर्चा होती। विचार होता है। गौर किया जाता। परिणाम सोचे जाते। राय-सलाह ली जाती। मश्विरा किया जाता उसके बाद निर्णय होते थे। अब वो बातें हवा हो गई। खबरिया चैनल्स को ही ले ल्यो। वहां बहस कम हाके ज्यादा। नेते लोग.. की तरह लड़ते नजर आते हैं। उनका बस चले तो सामने वाले का मुंह नोच लें। गाबे फाड़ दें। बाल उखाड़ दें। कई बार तो नेते इतनी बद्तमिजी पे उतर जाते है कि बेशरमाई को भी शरम आने लग जाती है। सदनों में भी यही स्थिति। वहां मसलों-मुद्दों पर चर्चा कम-हंगामें ज्यादा होते है। जिला परिषद की बैठक से लेकर दिल्ली दरबार तक में हंगामा। हंगामें पे हम-आप की गाढी कमाई के करोड़ो रूपए फुंक जाते हैं, पर उनकी सेहत पे कोई फरक नही पड़ता। मगर हथाईबाज जिस पीपीपी की बात कर रहे हैं, उसका खुलासा शीर्षक में पहले से ही कर दिया गया। हथाईबाज देख रहे हैं कि हंगामा करना शगल बनता जा रहा है।

जिसे देखो, वो हंगामें में गोते लगा रहा है। सियासतखोर इसमें सबसे आगे। खुद की सत्ता हो तो मुंख बंद बगल में हाथ और विपक्ष में हो तो हंगामा-तमाशा करना पहली प्राथमिकता। और कुछ नही तो नीट और जेईई परीक्षा पर ही हंगामा। अरे भाई जितनी चिंता तुम को बच्चों की है, उससे ज्यादा हम को है। जान है तो जहान है। जान भी रहे और जहान भी। अभिभावक भी चिंता मे है। पर तुम्हारी चिंता सियासी है-तभी तो खामखा की पंगापंथी हो रही है। बात करें राजस्थान की तो यहां कोरोनाकाल में परीक्षा हो चुकी है। आने वाले दिनों में और भी होने वाली है जिनमें लाखों बच्चे भाग लेंगे। उनके लिए तो पक्के इंतजामों का दावा और नीट-जेईई का विरोध। यह दोगलापन क्यूं भाई। तुम होटलों में मजे कर सकते हो। तुम पंगापंथी दिखा कर विधानसभा सत्र बुलाकर विश्वासमत प्राप्त कर सकते हो। तुम राजभवन पे धरना दे सकते हो और परीक्षा का विरोध कर रहे हो, क्यूं भाई। देने के तोल अलग और लेने के तोल अलग। ऐसा नही चलेगा। हम विद्यार्थियों के साथ है। उनके अभिभावकों के साथ हैं।