मासूम पुलिस

कसम से उस की मासूमियत पर इतना प्यार आया कि बयान नही कर सकते। बयान करना भी चाहें तो शब्दों का टोटा। इसे पिरोएं तो वो छूट जाए, उसे पिरोएं तो ये छूट जाए। जेब में रेजगारी होती तो ‘घोळ कर देते। पूरी जेब खाली कर देते। मासूमियत तो देखी, पर ऐसी नहीं। नादानी तो देखी, पर वैसी नहीं। पुलिस में ऐसे मासूम कहां मिलते हैं। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

मासूम और मासूमियत का पढ-सुन कर पहले तो समझा होगा कि किसी बच्चे की बात चल रही होगी। बच्चे मन के सच्चे। बच्चे छल और कपट से दूर बच्चे निष्छल। बच्चे खरे। अपने यहां बच्चों को भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है। ऊपर के पेरेग्राफ की लाइनें पढ कर ज्यादातर लोग ‘पेलीपोत यही समझे होंगे कि बात बच्चों की चल रही है। अगर आप किसी के यहां लैंडलाइन पे फोन करो, फोन कोई बच्चा उठाए और ये कहे कि पापा कह रहे हैं, वो घर पर नहीं हैं.. तो इसे आप क्या कहेंगे। पापा ने भले ही उसे ऐसा करने के लिए कहा होगा।

पापा भले ही उसे झूठ बोलने को कहे मगर बच्चे की मासूमयित को नकारा नही जा सकता। जो था-साफ-साफ बोल दिया। सारे पत्ते खेल दिए। सच भी बोल दिया और पापा ने सिखाया वो भी उगल दिया। इसे कहते हैं बच्चे की मासूमियत। उसके बारे में सुन कर इतनी हैरत नहीं हुई जितनी पुलिस की मासूमियत के बारे मेें सुन कर हुई होगी। पुलिस और मासूम? यह तो सरासर झूठ है। दो सौ परसेंट धोखा है। ढाई सौ फीसदी छलावा है। तीन सौ प्रतिशत धराधरी है। साढे तीन सौ परसेंट फरेब है।

जानने वाले जानते हैं कि हथाईबाज हवा में बातें नही करते। कुछ देखा-सुना तभी तो परोसा। एक बात और। हमें सुनी-सुनाई बातों पर यकीन करने की आदत नहीं। हम जानते हैं कि लूण-मिरच-हलदी-धाणा-गरममसाला-जलजीरा-कालानमक-सेंधा नमक और अगड़म-बगड़म मसाले ‘भुरका कर बातें आगे से आगे परोसना लोगों की लत बनता जा रहा है। खामखा एक फूल का पूरा चौसरा बना देना उनकी फितरत में।

हमारी गली में रहने वाले शरमाजी अपने घर की बॉलकॉनी में खड़े होकर कुल्ला कर रहे थे। मुंह में मंथन कर पानी उगला तो बीच में कबूतर का पंख आ गया। जमीन पे पानी गिरा तो पंख साथ में। तभी वहां से बेशरमाजी गुजरे। उनने पानी के साथ पंख देखा तो नेशरमाजी को बताया-‘अरे भाई साहब, शरमाजी के मुंह से पंख निकला..। नेशरमाजी ने लेशरमाजी से कहा-शरमाजी के मुंह से दो-तीन पंख निकले। लेशरमाजी ने केशरमाजी को पंखों की पुरसगारी कर दी। कहा-शरमाजी के मुंह से पंख ही पंख निकले। केशरमाजी ने रेशरमाजी को देसी अंदाज में परोस दिया-‘शरमाजी रे मूंडा ऊं पांखड़ा ‘ इ पांखड़ा निकळिया। बात का बतंगड़ बनते तो सुनी। बिना बात का बतंगड़ वाली बात शरमाजी के कानों में गई तो हंस के बोले-‘हां भई, मेरे पेट में कबूतर-चिडिय़ा वास करते हैं। जब भी दातण-कुल्ला करता हूं। पंख निकलते रहते हैं..।

दूसरी बात ‘घोळ करने की। हमारी पीढी और परंपरागत लोग समझ गए होंगे। आज की नस्ल इसकी समझ से दूर। घोळ बोले तो अवारनी। अवारानी बोले तो घोळ। अपने यहां शादी-ब्याह व अन्य उत्सवों पर नृत्य-गान का प्रचलन है। कई लोग-लुगाइएं तो मन भावन नृत्य-नाच का प्रदर्शन करते हैं, कई लोग फुदकते हैं। ढोल-थाली पर किए नृत्य का जवाब ही नहीं। घूमर और देराण्यां-जेठाण्या रूसगी रे.. का तोड़ ही नहीं।

इसकी पलट में बारातों में अच्छे-भले गानों की ऐसी-तैसी कर दी जाती है। एक गाने की चार लाइन पूरी होने से पहले दूसरी की टूटरूटु..शुरू। पिछले चालीस साल से गा रहे एक बंदे का कहना है कि उसने किसी बारात में एक भी गाना पूरा नही गाया। उस दौरान ‘घोळ करने की परंपरा है। बणे-ठणे लोग नाचने-फुदकने वालें पर से नोट अवार कर बैंड अथवा ढोलवादक को पकड़ाते रहते है। ज्यों-ज्यों पैसा आता हैं-वादकों का जोश बढता जाता है। हमारी जेब में रेजगारी होती तो उस बंदे पे अवार देते। नोटों की बात इसलिए नही की कि लॉकडाउन के बाद से धंधा-मंदा है।

अब आते हैं मूल बात पर। उसमें पुलिस भी और पुलिस की मासूमियत भी। हवा बिना मात्रा के शहर अलवर से आई। एसीबी ने अलवर-ग्रामीण के पुलिस उप अधीक्षक और उसकी गाड़ी के चालक सिपाही को तीन लाख की घूल लेते धर लिया। ऐसा पहली बार नही हुआ। पुलिस और अन्य सरकारी विभागों में ऐसा लेन-देन और पकड़म-पकड़ी चलती रहती है। पर देखिए डीएसपी की मासूमियता पकड़ीजने के बाद बोला-यह तो उधारी थी। याने कि उधार वसूली कर रहा था। यह वसूली भी नए अंदाज में।

एसीबी ने उसके घर छापा मारा तो भाई अपने मकान की छत से पड़ोस के मकान की छत पे कूद कर भागने की कोशिश करने लगा, मगर पकड़ा गया। मान लें कि उसने उधार दिया पैसा वापस लिया, तो भाई भागा क्यूं। भाग कर डागळे पे क्यंू चढा। चढ के पड़ोसी की छत पे क्यूं कूदा। उधारी वसूली का यह कौन सा अंदाज है मासूम भाई। उसकी यह अदा देख कर रेजगारी का ‘घोळ करने का मन किया। डीएसपी की इसी अदा पे प्यार आया। पुलिस मे ऐसे मासूम भी होते हैं, इस का पता अब चला।