हर मामले को सियासत बानों की जुल्फों में उलझाना ठीक नही

आप क्या समझते हैं। कोई उन्हें समझाएगा और वो समझ जाएंगे। आप क्या समझते हैं। आप मनाओगे और वो मान जाएंगे। ऐसी सोच रखते हैं तो आप गलतफहमी में हैं, चाहे तो आजमा के देख लेना। समझ जाएं या मान जाएं तो हमें भी बताईयो। इसमें बताने की भी जरूरत नहीं। यदि समझ गए तो दुनिया ना सही। देश को तो पता चल ही जाएगा। शहर की एक हथाई पर आज उसी के चर्चे हो रहे थे।

समझ की व्याख्या करना बेमानी है। समझ पर जितना लिखा जाए-कम है। समझशास्त्र इतना मोटा तगड़ा और लंबा-चौड़ा है कि पढने में उमर गुजर जाती है। यदि किसी ने पठन-पाठन करना शुरू किया और करत-करत अभ्यास के सुजान बन कर राम प्यारा हो गया तो दूसरे के लिए ककहरा वापस से शुरू। यदि उस बंदे ने अपना ज्ञान और समझ बांटी तब तो उस का विस्तार संभव है अन्यथा उन के साथ उनकी ज्ञान गंगा का भी अंत। संत-सयाने कहते हैं कि ज्ञान बांटने से बढता है। समझ के बारे में भी उनका नजरिया जोरदार। वो कहते हैं समझ..समझ..के समझो..समझना भी एक समझ है।


समझ की अपनी कायनात है। वह भी भरी-पूरी और रंग-बिरंगी। समझ को शब्दों में कैद करना असंभव है। समझ के अपने रंग है। समझ की अपनी तरंग है। तरंगे ऐसे ठाठे मारती है कि सात समंदर पार तक दिखाई-सुनाई देती है। समझ को ना तो तोला जा सकता है ना मोलाया जा सकता है। यह नीली छतरी वाले की ओर से दिया गया वो नायाब तोहफा है जो हर मानखे के खाते में जमा है। किसी के खाते में कम-किसी के खाते में ज्यादा। किसी की समझ पर चादर चलती नजर आती है किसी का समझ सागर रीता हुआ।

एकदम खाली। एकदम सूखा हुआ। समझ और इंसानी जमात का रिश्ता सबसे धाकड़ और सबसे अलहदा है। आम लोगों में यह धारणा हैं कि मनुष्य के अलावा किसी ओर जीव में बुद्धि नही होती। हो सकता है वो अपनी जगह पे सही हो मगर हम को इस पर एतराज है। दुनिया भले ही उनके कथन-उपदेश पर विश्वास करती हो, हमें उस पर संदेह। हमारे हिसाब से भगवान ने हर जीव को बुद्धि दी है। हर जीव को समझ दी है। हर जंतु को बुद्धि दी है। हर जिनावर को समझ दी है। जिसके पास जित्ती समझ वो उसी के अनुसार उस का उपयोग करता है।

एक बात और। लोगबाग पक्षियों और पशुओं को मूक प्राणी कहते रहे हैं। हम को उसपे भी एतराज। शेर दहाड़ता नहीं है क्या। गाय-भैंस रंभाती नहीं है क्या। कुत्ते भौंकते नही है क्या। मिनकी म्याऊं..म्याऊं..नहीं करती है क्या। चिडिय़ा चीं..चीं.. नही करती है क्या। हाथी चिंघाड़ता नही है क्या। यह सब उन की बोलिए हैं। यह सब उनकी भाषाएं है। जो उनकी जात-जमात ही पहचान सकती है। हमारी बोली उन की समझ मे नही आती-उनकी बोली हम नही समझ पाते। इसका मतलब यह थोडे ही है कि पशु-पक्षी मूक होते है। ंगूंगे होते तो कबूतर गुटरगंू..कैसे करता और घोड़ा कैसे हिनहिनाता। समझ उन में भी होती है। यह बात दीगर है कि इंसानों में सबसे ज्यादा समझ होती है। तभी तो उसने जल-थल-नभ और पाताल में झंडे गाड दिए।


समझ के बारे में अलग-अलग धाराएं फूटती दिखाई देती है। समझ ऊपर वाले की नियामत है। कही कम-कहीं अणूती। कही टोटे। भगवान समझ सब को देते है। दीन और दुनियावी शिक्षा उसको आगे बढाते है। संस्कार समझ को सींचते है। कई बार कई लोगों को समझाना पड़ता है। माता-पिता अपने बच्चों को कुछ ना कुछ समझाते रहते है। हमारी अभिभावकों से करबद्ध विनती है कि वो अपने बेटों में नारी शक्ति का सम्मान करने की सीख विकसित करें और बच्चा उस सीख को जीवन में उतार ले तो समाज को घटिया और शरमनाक वारदातों से छुटकारा मिलना तय। इसके अलावा समझ की अपनी समझ। बड़े छोटों को समझाते हैं।

दोस्त-दोस्त को और साथण-साथण को समझाती है। हमदर्द-हमदर्द को समझाता है। गुरू शिष्य को समझाता है। अनुभवी नौ सीखिए को समझाता है। कई समझ जाते हैं। कई हंस के रह जाते हैं। हंसी में जोरदार कटाक्ष-बड़े आए, हम को समझाने वाले। इनमें चचा सियासत अली सबसे आगे। हमने भतेरा समझाया-रे, भाई हर बात पे सियासत मति करो। कुछ स्थानों को तो बख्शो। पर वो समझने वाले कहां।


आपको, आप की सियासतें गिनाकर फिर विनती करते हैं कि हर बात पे राजनीति ठीक नही है। मानते हैं-आप का काम-धंधा राजनीति करना ही है। राजनीति करना आपका पेशा है। आप की नौकरी है। राजनीति से रोटिएं मिलती है मगर किसानों पर सियासत ठीक नहीं। देश की सुरक्षा पर सियासत ठीक नहीं। सेना पर सियासत ठीक नही। सीमा-सरहदों पर राजनीति ठीक नही। गंभीर मसलों पर राजनीति ठीक नही। देश की इज्जत पर सियासत ठीक नहीं। घुसपैठ पर सियासत ठीक नहीं। तुष्टिकरण की राजनीति ठीक नहीं। मां-बहनों के सम्मान पर राजनीति ठीक नहीं। कोरोना और वेक्सीन पर सियासत ठीक नहीं। हम यही तो समझा रहे हैं पर वो समझें तब ना। हर मामले को सियासत बानों की जुल्फों में उलझाना ठीक नहीं।