जैन समाज ने पर्यूषण का 8वां दिन उत्तम त्याग धर्म के रूप में मनाया, अभिषेक किया

कोटा। दशलक्षण महापर्व का आठवां दिन उत्तम त्याग धर्म के रूप में मनाया। बालिता रोड स्थित पदमप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में मूलनायक भगवान पदमप्रभु के अभिषेक व शांतिधारा का वाचन बालाचार्य निपुर्णनंदी मुनिराज ने किया। मंदिर समिति अध्यक्ष गणपतलाल जैन ने बताया कि बालाचार्य निपुर्णनंदी मुनिराज ने कहा कि आहार, औषधि, अभय तथा शास्त्र ये चार प्रकार का दान करना ही त्याग धर्म कहलाता है।

त्याग जीवन का अंलकार है, क्योंकि गृहस्थ अवस्था में भले ही राग से विभिन्न प्रकार में अंलकार धारण किए जाते हैं, लेकिन मुनि आश्रम में त्याग भाव ही अंलकार है। त्याग को सारी दुनिया में सर्वोच्च माना है। परिग्रह को नियंत्रित करने का नाम ही दान है। अंत मे जिनवाणी स्तुति हुई। सभा में पारसमल जैन, अशोक पापड़ीवाल, राजवीर जैन, वीरेन्द्र मारवाड़ा, शांतिलाल जैन, विजय जैन मौजूद रहे।

अपमान को याद करोगे तो बीपी बढ़ेगा और त्याग करोगे तो प्रसन्नता : संबुद्ध सागर

तलवंडी दिगम्बर जैन मंदिर में मुनि संबुद्ध सागर ने पर्यूषण दशलक्षण पर्व के सातवें दिन शुक्रवार को नियमित प्रवचनों में उत्तम तप त्याग पर कहा कि जो लोग हमेशा पुराने अपमान को याद करते हैं, उनका रक्तचाप बढ़ जाता है, जो त्याग करते है। उनमें प्रसन्न्ता बढ़ जाती है। संसार में जितने भी महापुरुष हुए सभी ने अपार धन संपदा को त्यागा। मोह, माया और लगाव भी त्यागा तभी वे हमारे लिए पूज्य हैं। जैन धर्म वीतराग धर्म माना जाता है। राग, लगाव, आसक्ति का त्याग ही वीतराग है। यह तयाग प्रधान धर्म है, भोग प्रधान नहीं। सभा में सकल दिगम्बर जैन समाज के कार्याध्यक्ष जेके जैन, महामंत्री रविंद्र लुहाडिय़ा, चातुर्मास समिति अध्यक्ष अशोक पहाडिया, महामंत्री राजेश मंगलम, कार्याध्यक्ष मनोज पाटनी, पंकज सेठी, बसंत झांझरी, राजकुमार लुहाडिया मौजूद रहे।

प्रिय-मूल्यवान वस्तु का ही दान दें : सुधासागर महाराज

चांदखेडी जैन मंदिर खानपुर में चल रहे प्रवचन में मुनि सुधासागर महाराज ने कहा कि बडों को, पूजनीय को दान देना चाहिए, छोटो और समानता वाले को दिया गया धन सहायता होती है। दान में प्रिय वस्तु, शुभ, मूल्यवान का दान ही दिया जाता है। बचा कुचा दान नहीं भीख होती है, मकान बाद में बनवाएं पहले मंदिर बनवाएं, मंदिर में दान करें। उन्होंने कहा कि कुछ लोग भारत भूमि को छोड़कर धन के लिए चले गए, लेकिन ये तीर्थंकर की भूमि है, देवताओं का यहां वास है, धन के लिए धर्म को नहीं छोडऩा चाहिए, धन के लिए परिवार व धर्म को छोडऩा अशुभ है।

धर्म के लिए धन का त्याग करें, उन्होंने अपने पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण करने की बात कही। पिता से अंतिम समय में पूछे कि वे अधिक से अधिक क्या दान करना चाहते हैं, उनकी इच्छा की पूर्ति करें। हमे बुराईयों के साथ अच्छाईयों का त्याग करना चाहिए, भगवान को आवास दान देना तपस्वियों का काम है। उन्होंने दान को सुबह के समय देने की बात कही।

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