जैन समाज ने की उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना

कोटा। दिगम्बर जैन मंदिर विज्ञान नगर में दशलक्षण महापर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना की गई। मंदिर समिति अध्यक्ष राजमल पाटोदी ने बताया कि सुबह 6.30 बजे मूलनायक भगवान महावीर का प्रथम अभिषेक राजेन्द्र पाटनी ने किया। इसके बाद मंत्रों के साथ वृहद शांतिधारा महावीर युवा मण्डल के सदस्यों ने की।

नित्य नियम पूजन व दशलक्षण मण्डल विधान के तहत उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की पूजन करते हुए भगवान महावीर को अर्घ्य अर्पण किए। मंत्री पीके हरसोरा ने बताया कि दोपहर में मंदिर से श्रीजी को चांदी की पालकी में विराजमान कर शोभायात्रा के साथ वीर सन्मति भवन में लाया गया। वीर सन्मति भवन में श्रीजी की पूजन एवं अभिषेक किया गया। कार्यक्रम में महामंत्री अनिल ठौरा, कार्याध्यक्ष पारसमल, बाबूलाल, कैलाशचन्द, पदम पाटनी, रितेश सेठी, अमित, चीकू उपस्थित रहे। शाम को महावीर युवा मंडल द्वारा 108 दीपकों से भगवान महावीर की संगीतमय आरती की।

6पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर महावीर नगर प्रथम में पर्यूषण पर्व पर सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ। इसमें अध्यक्ष इंद्रमल जैन ने दीप प्रज्वलित किया। बच्चों ने रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए। तोषी जैन की टीम ने कार्यक्रम की शुरूआत की गई।

मन पर नियंत्रण ही सच्ची ब्रह्मचर्य साधना है : बालाचार्य निपुर्णनंदी महाराज

बालिता रोड स्थित पदमप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर में रविवार को मूलनायक भगवान पदमप्रभु के अभिषेक बालाचार्य निपुर्णनंदी मुनिराज ससंघ के सानिध्य में हुए। मंदिर समिति अध्यक्ष गणपतलाल जैन ने बताया कि भगवान वासुपूज्य का मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया गया। मंदिर समिति महामंत्री बाबूलाल जैन ने बताया कि निर्वाण अध्याय पढ़ा गया, फिर अर्घ्य के साथ श्रद्धालुओं ने निर्वाण लड्डू अर्पित किया। आज मुनि निर्भयनंदी मुनिराज के केशलोच हुए। बालाचार्य निपुर्णनंदी मुनिराज ने दशलक्षण पर्व के दसवें और अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि मोक्ष महल का अंतिम सोपान उत्तम ब्रह्मचर्य है। आत्मा का सो आत्मरमण, आत्म मलिनता और आत्मचर्चा में जीना ही उत्तम ब्रह्मचर्य है। योगी समाधि में जीता है। भोगी भोग में, वासना कई बार ममता का गला घोंट देती है। इसलिए कामांधता छोड़कर जीवन को ब्रह्मचर्य व्रत पालन में लगाना चाहिए। मन पर नियंत्रण ही सच्ची ब्रह्मचर्य साधना है।

ब्रह्मचर्य का मतलब भोग विलास व वासना पर नियंत्रण : संबुद्ध सागर

तलवंडी दिगम्बर जैन मंदिर में मुनि संबुद्ध सागर ने पर्यूषण दशलक्षण पर्व पर रविवार को नियमित प्रवचनों में उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म पर कहा कि इसका मतलब पत्नी का त्याग नहीं है। प्यार का त्याग नहीं है। भोग विलास और वासना का त्याग है। द्रव्यों से रहित शुद्ध बुद्ध अपनी आत्मा में जो चर्या होती है, उसे ही ब्रह्मचर्य कहते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी प्रकार की खुशबू भावना में परिवर्तन करती है, जो जैसा चाहता है उसकी वही सेाच बन जाती है। इन पर नियंत्रण आवश्यक है। बिना अंकुश के गड़बड़ होनी की आशंका रहती है। धर्म समाज के लिए यही काम करता है। यह अंत: की बात करता है बाह्य की नहीं। इसके पूर्व मंदिर में शांतिधारा व अभिषेक तथा सामुहिक भक्तांबर विधान हुआ।

ओमप्रकाश जैन ने ली दीक्षा, भावुक हो गए परिजन

बालाचार्य निपुर्णनंदी मुनिराज ने ओमप्रकाश जैन को सप्तम प्रतिमा का व्रत प्रदान किया। अपने संघ में शामिल करने की घोषणा की। इस दौरान ओमप्रकाश के परिजन भावुक हो गऐ। ओमप्रकाश जैन के तीन भाई और 3 बहन हैं। दो बेटे-बहू और 3 बेटियां दामाद हैं। सब की शादी कर दी, पारिवारिक उलझनों से मुक्त होकर अब मुक्ति पथ पर चल पड़े।

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